अब सुशांत सिंह खुद बताएंगे उनके साथ हुआ क्या था! दिमाग की होगी ‘साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी’

सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस की जांच सीबीआई के हाथ में आई तो हर दिन नया खुलासा हो रहा है. पूरा देश चाहता है कि उन लोगों को सजा होनी चाहिए जिन्होंने साजिश के तहत सुशांत की हत्या की है या फिर उनकी वजह से सुशांत को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा है. अब सीबीआई इस मामले की तह तक जाने के लिए सुशांत के दिमाग का ‘साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी’ कराएगी. जबसे ‘साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी’ नाम का टर्म सामने आया है तब से बहुत से लोग इसे लेकर भ्रमित हैं. तो आइए हम आपको बताएंगे कि ‘साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी’ है क्या और ये क्यों की जाती है.

बता दें कि साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी असल में दिमाग का पोस्टमॉर्टम है. लेकिन ये तभी होती है जब आप किसी केस को कहीं न कहीं सुसाइड के साथ जोड़कर देखते हैं.

इस मेडिकल जांच में पुलिस या सीबीआई जब ये देखती है कि क्या ये सुसाइड है. अगर हां तो उस वक्त उसकी मानसिक हालत क्या थी? इसमें ये देखा जाता है कि मौत से हफ्ता दस दिन पहले तक उसके बर्ताव में क्या बदलाव आए. जैसे वो किस तरह बात करता है. खोया खोया रहता है या नहीं रहता है. सामान्य तौर पर दोस्तों से जितनी बात करता है उतनी नहीं करता है. वक्त पर खाता है या नहीं खाता है. ठीक से सोता है या नहीं सोता है. उसकी मौत से हफ्ता 10 दिन पहले क्या कोई बदलाव आया. ये बदलाव बहुत बड़ा असर डालते हैं. ये पता करने और समझने में कि शायद कोई वजह थी.

साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी में दिमाग का पोस्टमार्टम होता है जिसमें देखा जाता है कि क्या आखिरी दिनों में कोई बदलाव आया था बर्ताव में. इसमें उनको दोस्तों और इर्द-गिर्द के सभी लोगों को शामिल किया जाता है और पूछा जाता है कि क्या कोई बदलाव आया था. ये देखते हैं कि क्या लिख रहा है वो. किस तरह की चीजें लिख रहा है.

क्या वो निजी बातें लिख रहा है, दुनिया की बातें लिख रहा, धर्म की बातें लिख रहा है. तो वो चीजें जो आपने कभी नहीं कीं. वो अगर आप कह रहे हैं, लिख रहे हैं, बोल रहे हैं तो ये सारी चीजों को मिलाकर. तब इसकी पूरी जो रिपोर्ट सामने आती हैं. कि पहले शख्स अलग था और आखिरी के दिनों में वो कैसा था ये सामने आता है.  इससे पहले ‘साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी’ तीन दो बार हो चुकी है. सुनंदा पुष्कर केस में सीबीआई ने ‘साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी’ की थी.

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