शुरू हुई ब्रज होली की तैयारियां, दूर दूर से मंगवाए जा रहे है टेसू के फूल

ब्रज की होली अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। होली पर पहनावा हो, होली पर खानपान हो या फिर होली पर खेले जाने वाले रंग को तैयार किये जाने का तरीका। इसकी चर्चा हर जगह होती है।

ब्रज के मंदिरों में टेसू के फूलों से रंग तैयार किया जाता है। उसी से भगवान भक्तों के साथ होली खेलते हैं। कैसे तैयार होता है टेसू के फूल से रंग और क्या है टेसू के फूलों का मध्य प्रदेश से कनेक्शन। जानने के लिए पढ़ें दैनिक भास्कर की ये खास रिपोर्ट:-

फूलों से रंग को तैयार किया जाता है

होली की जैसे ही चर्चा शुरू होती है, वैसे ही मन में रंगों में डूबने की कल्पना शुरू हो जाती है। होली पर लोग अलग-अलग रंगों को एक दूसरे पर डालते हैं और होली खेलते हैं। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग और क्या महिलाएं सभी रंगों के इस त्यौहार की मस्ती में डूब जाते हैं। होली पर अलग-अलग तरह के रंग बाजारों में उपलब्ध हैं। लेकिन आज भी ब्रज के मंदिरों में परंपरागत रंगों का ही प्रयोग किया जाता है। यहां मंदिरों में प्रकृति से मिले फूलों से रंग को तैयार किया जाता है और उससे ही होली खेली जाती है।

ब्रज की होली में मध्य प्रदेश से आते हैं टेसू के फूल

होली पर मंदिरों में तैयार होने वाले रंगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं टेसू के फूल। टेसू के फूल पलाश के वृक्ष पर आते हैं। इसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। पलाश के फूल को ढाक भी कहा जाता है। यह बसन्त ऋतु में खिलता है। पलाश 3 प्रकार का होता है। एक वह जिसमें सफेद फूल आते हैं। दूसरे पर पीले और तीसरे पर लाल नारंगी फूल आते हैं। पलाश मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के शिवपुरी, भिंड और मुरैना में होता है। यहीं से हर साल होली पर टेसू के फूल ब्रज में लाये जाते हैं।

ऐसे तैयार होता है टेसू के फूल से रंग

मध्य प्रदेश से टेसू के फूल ब्रज के मंदिरों में पहुंचता है। यहीं पर रंग बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। टेसू के फूलों को सबसे पहले गर्म पानी मे डाला जाता है। फिर उसको आग पर लगातार गर्म किया जाता है। इस प्रक्रिया में फूल अपना रंग छोड़ देते हैं, जो चटक रंग होता है। इस रंग को कई दिनों तक गर्म किया जाता है। इसके बाद इसमें खुशबू लाने के लिए केशर, गुलाब जल या इत्र का प्रयोग किया जाता है।

ब्रज में हर साल 2 टन टेसू के फूलों से रंग तैयार होता है

ब्रज के सभी प्रमुख मंदिरों में टेसू के फूलों से बने रंग का ही प्रयोग किया जाता है। बरसाना में जहां तीन कुंतल फूल मंगाए जाते हैं। वहीं नंदगांव में करीब 2 कुंतल, द्वारिकाधीश में करीब 5 कुंतल, बांके बिहारी जी में 2 कुंतल, रमण रेती में करीब 3 से 4 कुंतल टेसू के फूल मंगाए जाते हैं। इसके अलावा गोकुल, गोवर्धन और वृंदावन के अन्य मंदिरों में भी कुंतल में टेसू के फूल आते हैं।

टेसू के फूल से बना रंग शरीर को नहीं पहुंचाता नुकसान

बरसाना के श्री जी मंदिर पर टेसू के फूलों से रंग तैयार कर रहे मंदिर के सेवायत किशोरी श्याम गोस्वामी ने बताया कि टेसू के फूलों से बने रंग का प्रयोग द्वापर युग से ही हो रहा है। यह प्राकृतिक रंग है। इससे शरीर को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। इसको बनाने की प्रक्रिया करीब 35 दिन चलती है। टेसू के फूलों से बना रंग इस कदर होता है कि कपड़ा फट जाये लेकिन यह रंग नहीं हटता।

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