बढ़ी रार : मोदी सरकार ने RBI पर छोड़ा ब्रह्मास्त्र, क्या इस्तीफा देंगे उर्जित?

नई दिल्ली   : केन्द्रीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय अरुण जेटली के बीच जारी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. आरबीआई ऐक्ट, 1934 के तहत केंद्र सरकार को मिले इस अधिकार का इस्तेमाल इतिहास में पहली बार किया गया है। जहां मंगलवार वित्त मंत्री  ने देश में बैंक एनपीए का ठीकरा आरबीआई से सिर फोड़ा है, वहीं अब उर्जित पटेल के पास मौजूद विकल्पों में इस्तीफा देना भी शामिल है. एक प्रमुख बिजनेस चैनल के मुताबिक मौजूदा परिस्थिति में उर्जित पटेल के इस्तीफा की संभावना बनी हुई है. आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन 7 के तहत सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सार्वजनिक हित के मुद्दे पर आरबीआई को सीधे-सीधे निर्देश दे सकती है, जिसे आरबीआई मानने से इनकार नहीं कर सकता।

सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली के बयान के बाद आरबीआई और सरकार के बीच दरार बढ़ गई है। इसे देखते हुए आरबीआई गवर्नर इस्तीफा दे सकते हैं। आपको बता दें कि पिछले दिनों वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक कार्यक्रम में रिजर्व बैंक की जमकर आलोचना की थी। वित्तमंत्री जेटली ने कहा था कि जब 2008 से 2014 के बीच बैंक मनमाने ढंग से कजऱ् दे रहे थे तो रिज़र्व बैंक इसकी अनदेखी करता रहा।

इसके ठीक पहले आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने शुक्रवार को एक भाषण में कहा था कि सरकार अगर आरबीआई की स्वायत्तता में दखल देती है तो ये ख़ासा नुकसानदेह हो सकता है। केंद्र सरकार इस बात से नाराज है कि आरबीआई के साथ उसके मतभेद सार्वजनिक क्यों हो गया है। सीनियर अधिकारियों ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि सरकार को डर है कि इससे निवेशकों के बीच देश की छवि खराब न हो जाए।

इस्तीफा दे सकते हैं उर्जित पटेल: सूत्र
इस बीच, आशंका जताई जाने लगी है कि सरकार और आरबीआई के बीच खटास बढ़ सकती है। आशंका यह भी जताई जाने लगी है कि आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि पटेल अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।

सरकार ने रखा अपना पक्ष
वहीं, केंद्र सरकार ने सेक्शन 7 के इस्तेमाल पर अपना पक्ष रखा है। वित्त मंत्रालय ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए कहा है कि आरबीआई ऐक्ट की परिधि में रिजर्व बैंक की स्वायत्ता निहायत ही जरूरी है और वह इसका सम्मान करती है। सरकार का पूरा वक्तव्य यहां पढ़ें।

दो पत्र के जरिए RBI को निर्देश
मीडिया को पता चला है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1934 के सेक्शन 7 के तहत सरकार को मिले अधिकार के तहत बीते एक-दो सप्ताह में आरबीआई गवर्नर को दो अलग-अलग पत्र भेजे जा चुके हैं। सरकार ने केंद्रीय बैंक को पत्र भेजकर नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों (NBFCs) के लिए लिक्विडिटी, कमजोर बैंकों को पूंजी और लघु एवं मध्यम उद्योगों (SMEs) को कर्ज प्रदान करने का निर्देश दिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार के इसी प्रत्याशित कदम से आरबीआई के डेप्युटी-गवर्नर विरल आचार्य को आगबबूला हो गए थे और केंद्र सरकार को आरबीआई की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करने के घातक परिणामों की चेतावनी + दे डाली। बहरहाल, आरबीआई के प्रवक्ता को ईमेल से भेजे गए सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

कैसे उठी सेक्शन 7 की बात?
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1934 की धारा 7 कहती है, ‘केंद्र सरकार सार्वजनिक हित के लिए अनिवार्य मानते हुए बैंक के गवर्नर से मशविरे के बाद समय-समय पर इस तरह के निर्देश दे सकती है।’ सेक्शन 7 के तहत आरबीआई को निर्देश दिए जाने का मामला पहली बार तब आया जब कुछ बिजली उत्पादक कंपनियों ने आरबीआई के 12 फरवरी को जारी सर्कुलर को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। इस सर्कुलर में डिफॉल्ट हो चुके लोन को रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम में डालने से रोका गया है। आरबीआई के सलहाकार ने जब बताया कि कानूनी तौर पर सरकार सेंट्रल बैंक को आदेश दे सकती है, तो कोर्ट ने अगस्त महीने में जारी अपने आदेश में कहा कि सरकार ऐसा निर्देश देने पर विचार कर सकती है।

बढ़ सकता है बवाल

सरकार के इस आक्रमक रवैये से अकैडमिक्स और एक्सपर्ट्स का एक खेमा उत्तेजित होकर आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर सकता है। इसकी बनागी दिखने भी लगी है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट कर आरोप लगाया है कि सरकार अर्थव्यवस्था के तथ्यों को छिपा रही है और बेचैन है।

भविष्य का डर
दरअसल, सेक्शन 7 के इस्तेमाल के बाद केंद्रीय बैंक के पास अपनी मर्जी से फैसले करने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है। एक डर यह भी है कि अब आगे की सरकारें आरबीआई के साथ छोटे-छोटे मुद्दों पर भी मतभेद होने पर इस सेक्शन का इस्तेमाल करते हुए अपना अजेंडा थोपने लगेंगी।

क्या मजबूर हो गई केंद्र सरकार?
सरकार पावर सेक्टर में फंसे कर्जों (नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स यानी एनपीए) को लेकर तय नियमों में ढील चाहती है। मौजूदा नियमों के तहत लोन डिफॉल्ट पर कंपनियों को बैंकरप्ट्सी कोर्ट में घसीटने का प्रावधान है। एक बार कंपनियां इस कोर्ट में चली गईं तो उन्हें या तो बिकना पड़ता है या उसे बचाने के लिए सरकार को फंडिंग देनी पड़ती है।

वहीं, प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्श यानी पीसीए को लेकर सरकार की चिंता यह है कि पीसीए के वर्गीकरण से सार्वजनिक क्षेत्र के 11 बैंकों और निजी क्षेत्र के एक बैंक पर कर्ज देने को लेकर कड़ी शर्त लगा दी। सरकार को लगता है कि इससे कुछ क्षेत्रों में फंडिंग का सूखा पड़ रहा है। सरकार MSMEs के भविष्य को लेकर भी चिंतित है, इसलिए चाहती है कि बैड लोन की परिभाषा को लचीला बनाया जाए।

इनके साथ-साथ, सरकार सितंबर महीने में आईएलऐंडएफएस (IL&FS) के बार-बार डिफॉल्ट करने से हालात और बिगड़ने से भी चिंतित है। IL&FS के डिफॉल्ट्स से कई स्तर पर विपरीत प्रभाव पड़े।

 

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