लड़कियां तनाव में हैं, लड़कों से कहीं ज्यादा। बचपन से किशोर और किशोरावस्था से जवानी तक वे कई मानसिक दबावों से गुजर रही हैं। शायद इतिहास के इस दौर में वे सबसे ज्यादा तनावग्रस्त हैं। कई स्टडीज से यह पता चला है कि लड़कियों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी बहुत ज्यादा बढ़ी है।
यह कहना है न्यूरोसाइंटिस्ट और लेखिका डोना जैक्सन नकाजवा का। अपनी किताब ‘गर्ल्स ऑन द ब्रिंक : हेल्पिंग ऑवर डॉटर्स थ्राइव इन ऐन एरा ऑफ इन्क्रीज्ड एंग्जाइटी, डिप्रेशन एंड सोशल मीडिया’ में वे विस्तार से इसकी वजहों की पड़ताल करती हैं।
प्रदर्शन-प्रतियोगिता की दौड़ में बच्चे अपना बचपना खो रहे
डोना कहती हैं, ये दौर प्रदर्शन और प्रतियोगिता की दौड़ का है। हमारे 7 से 13 साल के बच्चे बचपन खो रहे हैं। जब उन्हें दोस्तों के साथ खेलना चाहिए, प्रकृति की गोद में दौड़ लगानी चाहिए, वे करिअर बनाने के दबाव से गुजर रहे हैं। इसमें सोशल मीडिया ने और इजाफा किया है।
13 साल की उम्र से पहले बच्चों को पर्सनल स्मार्टफोन न दें। सोशल मीडिया पर आते ही लड़कियां अपने लुक्स को लेकर ज्यादा फोकस हो जाती हैं। वे अपने शरीर पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने लगती हैं। इसके अलावा लड़कियां शारीरिक और मानसिक हिंसा का ज्यादा शिकार होती हैं।
किशोर से वयस्क बनने के दौरान दिमाग का विकास संवेदनशील
डोना का मानना है कि लड़कियों के किशोरावस्था से युवावस्था में पहुंचने के दौरान दिमाग का विकास सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है। लड़कों के साथ भी ऐसा ही होता है। इस दौरान शरीर से निकलने वाला एस्ट्रोजन हॉर्मोन तनाव पैदा करता है। लड़कियां इस दौरान अपने शरीर के बारे में सबसे ज्यादा कमेंट सुनती हैं। हालांकि, ज्यादातर लड़कियां इस तरह के कमेंट के लिए सकारात्मक रहती हैं।
लड़कियों के दिमाग से पहले शरीर युवा हो रहा
डोना कहती हैं, तब जब दिमाग तैयार नहीं होता, लड़कियां युवावस्था तक पहुंच रही हैं। उनका दिमाग ऐसी स्थिति में उस तरह से प्रतिक्रिया नहीं दे पाता, जैसा कि वे महसूस करती हैं।