ऑस्कर के लिए विधु नाॅमिनेट तो हुए, अफसोस, बदन पर सूट न होने के कारण सेरेमनी में नहीं जा सके

विधु विनोद चोपड़ा ने 1978 की शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री, एन एनकाउंटर विद फेसेज बनाई थी, जिसके लिए उन्हें 1979 में ऑस्कर अवाॅर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था। मगर उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो इस सेरेनमी में शिरकत के लिए जा पाएं। सेरेमनी में पहनने के लिए सूट खरीदने या उधार लेने तक के पैसे नहीं थे। इस कारण वो कुर्ता पायजामा पहन कर सेरेमनी में गए थे।

वहीं पासपोर्ट दिलाने में तत्कालीन I&B मंत्री लालकृष्ण आडवाणी उनकी सहायता के लिए आगे आए थे।

पिता ने खुशी से लगाया था गले

एक इंटरव्यू में विधु विनोद ने खुलासा किया है कि शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री को ऑस्कर के लिए नॉमिनेट की जाने वाली बात उन्होंने सबसे पहले अपने पिता को बताई थी। उन्होंने कहा- मैंने बहुत ही खुशी के साथ पिता जी को इस बात की जानकारी दी थी। ये सुनकर वो भी बहुत खुश हुए थे, गले भी लगाया था। फिर उन्होंने सवाल किया था- इस काम के बदले तुम्हें कितने रुपए मिलेंगे। मैंने कहा- एक भी रुपया नहीं मिलेगा। फिर पिता जी ने कहा कि तब क्यों मैं इतनी खुशी मना रहा हूं।

सूट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, कुर्ता- पायजामा पहन इस सेरेमनी का हिस्सा बने

विदु विनोद ने आगे बताया कि सेरेमनी में वो कुर्ता पायजामा पहन कर गए थे। उन्होंने कहा- मेरे पास सूट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। मुझे किसी ने सुझाव दिया कि मैं एक टक्सीडो किराए पर ले लूं, लेकिन मेरे पास उसके लिए भी पैसे नहीं थे। फिर मैं सफेद खादी कुर्ता पायजामा पहन कर इस सेरेमनी में गया।

तत्कालीन I&B मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने की थी मदद

एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था- जब मैं ऑस्कर अवाॅर्ड के लिए नॉमिनेट हुआ था, तब मेरे पास टिकट नहीं थे और ना ही पासपोर्ट या वीजा। इस कारण मैं वहां जा नहीं सकता था। फिर दिल्ली गया और तब के तत्कालीन I&B मंत्री लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की। फिर उन्होंने मुझे एयर इंडिया की टिकट दी और हर दिन के हिसाब से 162.6 रुपए दिए। वो मुझे वीजा नहीं दिला पाए थे लेकिन उन्होंने कुछ दिनों में बिना पुलिस वेरिफिकेशन के लिए 6 महीने का पासपोर्ट दिलाया था।

एक सज्जन की मदद से मिला वीजा

इसके बाद विधु विनोद को वीजा पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी थी। उन्होंने का कहना था- मैं वीजा के लिए मुंबई ऑफिस चला गया था। मैं शनिवार को वहां पहुंचा था और ऑस्कर सोमवार को था। ऑफिस के गार्ड ने मुझे सोमवार को आने कहा। ये सुन मैं उस पर चिल्लाने लगा।

फिर एक दुबला आदमी, सफेद शर्ट पहने हुए ऑफिस से बाहर आया और मुझे पूछा कि क्या हुआ। मैंने उनसे कहा- ‘सर, सोमवार को ऑस्कर है। ये सुन वो शख्स सोच में पड़ गया कि मेरे ऑस्कर से क्या लेना देना है। फिर मैंने उसे बताया कि मेरा नाम इस बार ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुआ है। ये सुन उस शख्स ने कहा- क्या तुम साबित कर सकते हो कि तुम्हारा नाम ऑस्कर में गया है।

फिर मैंने अखबार में छपे हुए आर्टिकल को दिखाया जिसमें ये खबर छपी हुई थी। छुट्टी का दिन होने के बावजूद वो शख्स मुझे ऑफिस में ले गया और लगभग एक घंटे के बाद मुझे 3 महीने का सिंगल एंट्री वीजा दिया। इस तरह उस वीजा और आडवाणी जी के टिकट के साथ, मैं ऑस्कर सेरेमनी का हिस्सा बना।

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