दुनिया की सबसे खतरनाक द्वीप जहां मारे गए थे 1300 लोग, भटकती हैं ‘आत्माएं- 95 फीसदी हिस्से में लोगों की नो-एंट्री !

[ जापान का हाशिमा द्वीप ]

दैनिक भास्कर ब्यूरो ,

Hashima Island – Abandoned Island of Japan: हाशिमा द्वीप जापान में नागासाकी शहर (Nagasaki City) से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा वीरान द्वीप है, जो खुद में गुलामी के भयावह अतीत को समेटे हुए हैं. बताया जाता है कि यहां 1,300 प्रताड़ित नागरिकों और युद्धबंदियों के शव दफन हैं, जिनकी आत्माएं द्वीप के अंदर भटकती हैं. 40 सालों तक वीरान पड़े रहे इस द्वीप को घूमने के लिए बहुत ही खतरनाक माना जाता है. इसके 95 फीसदी हिस्से में अभी लोगों की एंट्री नहीं है.

द सन की रिपोर्ट के अनुसार, ये द्वीप 16 एकड़ में फैला हुआ है, जिसे गुंकनजिमा (Gunkanjima) नाम से भी जाना जाता है. युद्धपोत की तरह के आकार के कारण इसका उपनाम बैटलशिप द्वीप (Battleship Island) है. आज भी इस द्वीप को कंक्रीट से बनी हुई निर्जन इमारतों से घिरा हुआ देखा जा सकता है.

हाशिमा द्वीप का इतिहास –

1887 में अपने कोयला संसाधनों (coal resources) की खोज के बाद, मित्सुबिशी (Mitsubishi) ने 1890 में हाशिमा द्वीप खरीदा. यहां समुद्र के नीचे कोयला खदानों में काम करने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत थी, इसलिए द्वीप पर मजदूरों के लिए रहने के लिए बिल्डिंग्स बनाई गईं.

जापान की पहली बड़ी रीइन्फोर्स्ड कंक्रीट बिल्डिंग (reinforced concrete building) 1916 में इसी द्वीप पर बनाई गई थी, जिसमें खनिकों (Miners) के लिए 7 मंजिला अपार्टमेंट ब्लॉक थे. इसके तुरंत बाद खनिकों और उनके परिवारों के लिए एक स्कूल, किंडरगार्टन, हॉस्पिटल, कम्युनिटी सेंटर और एंटरटेनमेंट सुविधाएं बनाई गईं. एक समय इस द्वीप की आबादी 5300 थी.

जब द्वीप पर मारे गए 1300 लोग –

आगे चलकर ये जगह कोरियाई और चीनी कैदियों के लिए आतंक का स्थान बन गया. 1930 से सेकंड वर्ल्ड वॉर की समाप्ति तक कैदियों और अप्रवासियों को द्वीप पर ले जाया गया और फिर उनसे कोयला खदानों में गुलामी की तरह काम करने को मजबूर किया गया. अनुमान है कि द्वीप पर अंडरग्राउंड एक्सीडेंट्स, थकावट और कुपोषण सहित विभिन्न कारणों से 1,300 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई, जो लोग जिंदा बच गए उन्होंने गुंकनजिमा (Gunkanjima) को नरक द्वीप कहा.

1974 में द्वीप को छोड़ दिया खाली –

1960 के दशक में जापान की कोल इंडस्ट्री (Japan’s coal industry) बुरी तरह से ठप्प पड़ गई. 1974 में, जब कोयले का भंडार खत्म होने वाला था, तब मित्सुबिशी को द्वीप पर अपने सभी ऑपरेशंस को मजबूरन बंद करना पड़ा. इसके तुरंत बाद सभी निवासी चले गए, जिससे द्वीप एकदम वीरान हो गया. इसे अप्रैल 2009 में एक बार फिर खोला गया. अब ये पर्यटन के लिए खुला है, द्वीप का 95 फीसदी से अधिक हिस्सा असुरक्षित माना गया है और पर्यटन के दौरान इसे सख्ती से प्रतिबंधित (Ban) किया गया है.

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