
बीकानेर। डायबिटीज और दिल की बीमारियों के बीच के गहरे नाते को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (AHA) के अनुसार डायबिटीज से पीड़ित लोगों को बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में दो से चार गुना अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। लेकिन इन सब चुनौतियों के बीच, अच्छी की बात ये है कि ब्लड शुगर को असरदार तरीके से काबू में रखना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिस दिल की बीमारियों के खतरे को काफी हद तक काम किया जा सकता है।
डायबिटीज का दिल पर असर:
ग्लूकोज का लेवल बढ़ जाने की वजह से ब्लड वेसल्स को नुकसान हो सकता है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
डायबिटिक कार्डियोमायोपैथी के मामलों में बढ़ोतरी एक बड़ी चिंता का विषय है, जो दिल को कमजोर बना देता है और वह खून को अच्छी तरह से पंप नहीं कर पाता है, और यही हार्ट फेल्योर का सबसे प्रमुख कारण बन जाता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज एंड डाइजेस्टिव एंड किडनी डिजीज ने इस बात को उजागर किया है कि, डायबिटीज की वजह से कोरोनरी आर्टरी डिजीज (CAD), स्ट्रोक और पेरीफेरल वैस्कुलर डिजीज जैसी दिल की बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है।
कोरोनरी आर्टरी डिजीज के असामान्य लक्षणों की पहचान:
जब बात डायबिटीज और दिल की सेहत की हो, तो CAD के असामान्य लक्षणों की पहचान करना बेहद जरूरी हो जाता है। सीने में दर्द और भारीपन महसूस होने जैसे सामान्य लक्षणों के अलावा, डायबिटीज से पीड़ित लोगों को दांतों में दर्द, जबड़े में दर्द और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द जैसे असामान्य लक्षणों का अनुभव हो सकता है।
ब्लड शुगर को नियंत्रित रखकर दिल की सेहत को बेहतर बनाए रखने के उपाय:
डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए अपने ब्लड शुगर लेवल को काबू में रखना, दिल की अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। इसके लिए कुछ उपाय बेहद कारगर हैं:
1.खान-पान पर नज़र रखना: शरीर में ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर लेवल को बेहतर बनाए रखने के लिए खाने-पीने में ऐसी चीजों को प्राथमिकता दें, जिसमें भरपूर मात्रा में फाइबर हो, साथ ही सैचुरेटेड फैट, ट्रांस फैट और चीनी और सोडियम की मात्रा काफी कम हो।
2.दैनिक व्यायाम के लक्ष्यों को पूरा करना: रोजाना व्यायाम करने से इंसुलिन की संवेदनशीलता बढ़ती है, खून में शुगर लेवल कम होता है और ब्लड प्रेशर भी काबू में रहता है।
3.ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर पर लगातार नज़र रखना: इन पर लगातार नज़र रखने से पैटर्न का पता चलता है, जिससे खान-पान, व्यायाम और दवाओं में जरूरत के अनुसार बदलाव करने में मदद मिलती है।
4.डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयाँ लेना: ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर लेवल को काबू में रखने के लिए डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयाँ समय पर लेना बेहद जरूरी है।
दिल की बीमारी का खतरा पैदा करने वाले दूसरे कारकों पर ध्यान देना
ब्लड शुगर लेवल को काबू में रखने के अलावा, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर और धूम्रपान जैसे खतरा पैदा करने वाले दूसरे कारकों पर ध्यान देना भी जरूरी है। लाइफस्टाइल में बदलाव और दवाइयों से इस तरह के खतरों को असरदार तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे कुल मिलाकर दिल की सेहत को बेहतर बनाए रखने में मदद मिलती है।
शुरुआती रोकथाम के उपाय और एस्पिरिन थेरेपी:
डायबिटीज से पीड़ित 40 से 70 साल की उम्र के लोगों में शुरुआती रोकथाम के लिए एंटीप्लेटलेट दवा के रूप में एस्पिरिन को शामिल करने से दिल की बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है। एस्पिरिन के एंटीप्लेटलेट गुण खून का थक्का बनने से रोकते हैं, जिससे दिल के दौरे और स्ट्रोक की संभावना कम हो जाती है। हालाँकि, लोगों के लिए अपनी निजी हेल्थ प्रोफाइल और इसके संभावित दुष्प्रभावों पर सावधानी से गौर करना भी बेहद जरूरी है।