ब्राजील के फर्नांडो डी नोरोन्हा द्वीप समूह के सफेद रेत वाले तटों और हरे-भरे पहाड़ी जंगलों तक सभी नहीं पहुंच पाते हैं. यहां आने की चाहत रखने वालों की कमी नहीं है, लेकिन रोजाना सिर्फ 420 मेहमानों को ही फर्नांडो डी नोरोन्हा आने की इजाजत मिल पति है. ब्राजील के उत्तर-पूर्वी तट से साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित इन 21 खूबसूरत द्वीपों के तीन चौथाई हिस्से को 1988 में संरक्षित राष्ट्रीय समुद्री वन एवं अभयारण्य घोषित किया गया था.
मुख्य द्वीप 28.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है. इसका निर्माण ज्वालामुखीय चट्टानों से हुआ है. इसके आसपास 20 छोटे द्वीप हैं. ये द्वीप हमेशा ऐसे नहीं थे. 16वीं सदी में इसे सबसे पहले पुर्तगाल के समुद्री यात्री फर्नांडो डी नोरोन्हा ने खोजा था. डच और पुर्तगाल दोनों देशों की सेनाएं इसका उपयोग करती थीं. लेकिन 1700 ईस्वी के आसपास इसे जेल में बदल दिया गया था. 20वीं सदी के मध्य तक यहां के मुख्य द्वीप का इस्तेमाल कैदखाने की तरह होता था जहां ब्राजील के सबसे खतरनाक अपराधियों को रखा जाता था. कातिलों, चोरों, बलात्कारियों और राजनीतिक कैदियों को सजा काटने के लिए इस द्वीप पर भेजा जाता था.
फर्नांडो डी नोरोन्हा को अब भी एकांत की जगह ही माना जाता है, हालांकि अब यह उतना अलग-थलग नहीं हो पाया है जितना पहले कभी हुआ करता था. जन्नत जैसी खूबसूरती के लिए मशहूर इस द्वीप को ब्राजील के लेखक गैस्टाओ पेनाल्वा ने “फोरा डो मुंडो” कहा था जिसका मतलब है इस दुनिया से बाहर. फर्नांडो डी नोरोन्हा को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है. ब्राजील तट से दूर यह एकमात्र द्वीप है जहां आबादी रहती है. आज की तकनीक और इंटरनेट होने के बावजूद यह एक दूर की जगह है. अलग-थलग होने के कारण ही 18वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक इसका इस्तेमाल कैदखाने की तरह होता रहा. अच्छे चाल-चलन वाले कैदी अपने परिवार वालों को भी यहां भेजने की गुजारिश कर सकते थे. वे आम कैदियों के सेल से अलग रहा करते थे.