‘इक्ष्वाकु नगरी’ के नाम से बसेगी नई अयोध्या, दो हजार एकड़ जमीन ​चिह्नित

अब श्रीराम की नगरी अयोध्या में प्रथम सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के नाम पर नई नगरी बसाई जायेगी। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन की ओर से दो हजार एकड़ जमीन चिह्नित किया जा चुकी है।
योगी सरकार की ओर से ‘इक्ष्वाकु नगरी’ के नाम से नई अयोध्या बसाने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इसका प्रथम प्रेजेंटेशन मंगलवार की रात वाराणसी में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रमुख सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी, जितेन्द्र कुमार तथा आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश जोशी उपाख्या भैया जी, डा. कृष्ण गोपाल, चम्पत राय, सुनील बंसल समेत शीर्ष पदाधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
इक्ष्वाकु ने बसाई थी अयोध्या नगरी
इक्ष्वाकु अयोध्या के राजा थे। पुराणों में कहा गया है कि प्रथम सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु वैवस्वतमनु के पुत्र थे। इन्होंने ही अयोध्या में कोशल राज्य की स्थापना की थी। इनके सौ पुत्र थे। इनमें से पचास ने उत्तरापथ में और पचास ने दक्षिणापथ में राज्य किया। कहते हैं कि इक्ष्वाकु का जन्म मनु की छींक से हुआ था। इसीलिए इनका नाम इक्ष्वाकु पड़ा। इनके वंश में आगे चलकर रघु, दिलीप, अज, दशरथ और राम जैसे प्रतापी राजा हुए।
इस वंश में ये हुए राजा
इस वंश में ही राजा पृथु, मांधाता, दिलीप, सगर, भगीरथ, रघु, अंबरीष, नाभाग, त्रिशंकु, त्र्यरुण, नहुष और सत्यवादी हरिश्चंद्र जैसे प्रतापी व्यक्तियों ने जन्म लिया। सूत्रों की मानें तो इक्ष्वाकु नगरी का विस्तार सरयू की सीमाओं पर होगा। परियोजना के पहले चरण में सात हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। माना जा रहा है कि राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के शिलान्यास के साथ ही नई अयोध्या की इस परियोजना की भी घोषणा हो सकती है। नई इक्ष्वाकु नगरी के लिए अयोध्या के अलावा पड़ोसी जिलों बाराबंकी, अंबेडकर नगर और गोंडा की भी भूमि अधिग्रहित करने का प्रस्ताव है।
सूत्रों की मानें तो बुधवार को संघ के शीर्ष पदाधिकारियों और काशी विद्वत परिषद की अलग से  बैठक हुई, जिसमें राम मंदिर निर्माण को लेकर चर्चा हुई। इसमें मंदिर प्रतिष्ठापना पद्धति और पूजन विधि को शास्त्र सम्मत बनाने पर बात हुई। बैठक में राम मंदिर के लिए प्रस्तावित ट्रस्ट के स्वरूप पर भी विमर्श हुआ। उत्तर प्रदेश के पर्यटन, धर्माथ व संस्कृति मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को बताया कि इस नई अयोध्या में रामायणकालीन सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, राजनीतिक और सामाजिक इतिहास को विभिन्न माध्यमों से नए संदर्भों में पेश किया जाएगा। इसके लिए शोध केन्द्र, ऑडिटोरियम, गुरुकुल, गौशाला आदि बनाए जाएंगे।

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