SC में याचिका, जानिए क्या है मोदी सरकार का ” राम मंदिर” प्लान, बाबरी पक्षकार में उबाल…

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अयोध्या मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अविवादित जमीन से यथास्थिति का आदेश वापस लेने की मांग की है। केंद्र सरकार ने 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था और सिर्फ 2.77 एकड़ जमीन पर विवाद है। बाकी जमीन को रिलीज करने के लिए याचिका दायर की गई है। केंद्र सरकार ने 1993 में इस जमीन का अधिग्रहण किया था। आपको बता दें कि अयोध्या मामले की सुनवाई आज होनी थी लेकिन सुनवाई करने वाली बेंच के सदस्य जस्टिस एसए बोब्डे आज उपलब्ध नहीं हैं जिसकी वजह से आज सुनवाई टल गई है। 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई करनेवाली 5 जजों की नई बेंच का गठन कर दिया गया था जिसके सदस्य जस्टिस एस ए बोब्डे भी हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पिछले 10 जनवरी को जस्टिस यूयू ललित ने वकील राजीव धवन की ओर से एतराज जताए जाने के बाद खुद ही बेंच से हटने की बात कही थी।

धवन ने कहा था कि 1995 में जस्टिस ललित बतौर वकील यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए पेश हुए थे। जस्टिस यूयू ललित के सुनवाई से हटने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई टाल दी थी। 27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले से अयोध्या मसले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस्माइल फारुकी का मस्जिद संबंधी जजमेंट अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था। इसलिए इस मसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था जो उनके और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला था। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने अपने फैसले में कहा कि इस इस्माईल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए।

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राम मंदिर मामले में केंद्र सरकार की याचिका से संत खुश, बाबरी पक्षकार नाराज

। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किए जाने पर अयोध्या में माहौल गर्म हो गया है। बाबरी मस्जिद के पक्षकारों में इस याचिका को लेकर आक्रोश है।
बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बताया कि लोकसभा चुनाव को लेकर इस प्रकार का कदम उठाया गया है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि केंद्र सरकार और कोर्ट के द्वारा इस पर कोई कदम उठाया गया, तो 1992 जैसी घटना दोहराई जा सकती है।

दरअसल, साल 1992 में विवादित ढांचा गिराया गया था। इसमें हजारों की संख्या कारसेवकों की मृत्यु हुई थी। उसके बाद साल 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या में करीब 77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। विवादित ढांचा से संबंधित जमीन केवल 0.313 एकड़ जमीन है। कुल 2.77 एकड़ जमीन को लेकर हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया था। उसके बाद से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने कहा कि केंद्र सरकार ने रातों रात सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। 67 एकड़ अधिग्रहित परिसर को वापस दे दिया जाए। लेकिन दस्तावेजों के मुताबिक न्यास की कोई भी भूमि वहां पर नहीं है। साल 1993 में 2.77 एकड़ भूमि भी उसी विवादित स्थल के साथ अधिग्रहीत किया गया था। जब भी मंदिर या मस्जिद के पक्ष में फैसला आएगा तो उसे यह जमीन सौंप दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आखिरी पड़ाव आ चुका है तो इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट को करने दिया जाए। इसमें जिसके पक्ष में निर्णय आएगा, जमीन उसे मिल जाएगी। लेकिन राजनीति के तहत यह कार्य किया जा रहा है। देश में लोगों को पता है कि वर्तमान में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। इसके कारण केंद्र सरकार द्वारा एक नया कदम उठाया गया है। सरकार के कार्यकाल का चार साल बीत जाने के बाद ही इस तरह का कदम क्यों उठाया गया। यदि 4 साल पहले ही इस तरह का कदम उठाया जाता तो किसी को ऐतराज नहीं होता| इसलिए यह बहुत बड़ा खेल किया जा रहा है।

उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यदि अयोध्या में इस तरह का कोई भी कदम उठाया गया तो अयोध्या में एक बार फिर साल 1992 जैसी घटना दोहराई जा सकती है। इससे पूरे देश में भी आग लग जाएगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पड़े इस प्रकार के रीट को लेकर वकीलों से बात की जाएगी। सरकार द्वारा उठाया गया कदम बहुत ही गलत है। हमारा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मांग को स्वीकार नहीं करेगी। यह कार्य 2019 चुनाव को लेकर किया जा रहा है। यदि सरकार द्वारा इस प्रकार का कदम उठाया गया तो उसकी जिम्मेदार केंद्र सरकार और राज्य सरकार होगी।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की याचिका पर रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि विवाद केवल 2.77 एकड़ का है। बाकी जमीन केंद्र सरकार ले सकती है, लेकिन जब तक 2.77 एकड़ का निस्तारण नहीं होता, वहां राम मंदिर नहीं बन पाएगा।

रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास के उत्तराधिकारी महंत कमलनयन दास ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की याचिका पर कहा कि हिंदू समाज को राम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर का निर्माण चाहिए। केन्द्र सरकार संसद में कानून लाकर मंदिर का निर्माण कराए। रामजन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य पूर्व सांसद रामविलास दास वेदान्ती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की याचिका स्वागत योग्य है। मोदी सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए कदम उठाना चाहिए। 

राम मंदिर को बनाने में नहीं होनी चाहिए देरी: रीता जोशी

। आस्था के केन्द्र भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण में देरी नहीं होनी चाहिए। सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए इस फैसले में हो रही देरी अच्छी नहीं है। यह कहना है महिला एवं बाल पुष्टाहार मंत्री रीता बहुगुणा जोशी का। वह कुम्भ नगरी में पहली बार आयोजित कैबिनेट बैठक में शामिल होने आई थी।

कुम्भ नगरी प्रयाग में गंगा की पावन रेती पर मंगलवार को आयोजित ऐतिहासिक कैबिनेट बैठक में शामिल होने पहुंची पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा ने कहा कि बार-बार निवेदन किया जा रहा है कि करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र राम मंदिर के मामले में फैसला आए और मंदिर निर्माण हो जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर फैसला क्यों नहीं हो पा रहा है। इसमें देरी सामाजिक सौहार्द के लिए अच्छा नहीं है। जब पूरा भारत चाहता है कि मंदिर निर्माण हो और हमारे मुस्लिम भाई भी चाहते हैं तो फिर उसमें समस्या कहां आ रही है।

बताते चलें कि बीते रोज से शुरु हुई परम धर्म संसद के बाद संत समाज में जाग्रत आक्रोश के मामले में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए रीता जोशी मीडिया के सवालों का जवाब दे रही थीं।

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