पीलीभीत: शाहजहांपुर की कोठी से है पुश्तैनी रिश्ता , जितिन तैयार कर रहे राजनीतिक जमीन

पीलीभीत। शाहजहांपुर की कोठी से पीलीभीत के लोगों का गहरा ताल्लुक रहा है और यह रिश्ते पुश्तैनी भी कहे जा सकते हैं। पीलीभीत के लिए बाबा साहब की कोठी का नाम नया नहीं है और समस्याओं से घिरने पर या फिर खुशी के मौके पर पीलीभीत के लोग अक्सर शाहजहांपुर की कोठी पर पहुंचते रहे हैं। बाबा साहब और पीलीभीत का रिश्ता बरसों बरस रहा है। यह पुश्तैनी रिश्ते ही हैं जो बाबा साहब के बेटे जितिन प्रसाद को लोकसभा चुनाव तक खींच कर ले आए हैं।

पीलीभीत और शाहजहांपुर के रिश्तों की बात करें तो अतीत के आईने में देखने को मिल जाएगा की वर्ष 1991 से लेकर 1994 तक भाजपा उम्मीदवार जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद बाबा साहेब प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी रहे, उनको लगातार दिल्ली से विशेष सम्मान मिलता रहा। प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद भारत के प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हा राव के कार्यकाल में भी बाबा साहब का रुतबा काम नहीं हुआ। प्रधानमंत्री के सलाहकार रहते हुए बाबा साहेब ने पीलीभीत के लोगों से मधुर संबंध बनाए रखें। पड़ोसी जनपद होने के साथ ही राजनीतिक मामलों में पीलीभीत और शाहजहांपुर की साझेदारी पुश्तें गुजरने के बाद भी चलती रही।

इसके बाद वर्ष 2021 में 9 जून को जितिन प्रसाद ने भाजपा के वरिष्ठ नेता पीयूष गोयल के समक्ष पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और पूर्व में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाने के लिए पीलीभीत पहुंचे। पीलीभीत के विधानसभा चुनाव में पूरनपुर से भाजपा के उम्मीदवार बाबूराम पासवान के लिए कई सभाएं की गई और चुनावी मेहनत सफल रही, बाबूराम पासवान भारी मतों से विजई हुए।

शाहजहांपुर से पीलीभीत पहुंचे जितिन प्रसाद को राजनीतिक रिश्तों में पुश्तैनी धागे नजर आए और उन्होंने मंच से कई बार पीलीभीत में लौटकर आने की बात कही। उसके बाद पीलीभीत के राजनीतिक समीकरण में वरुण गांधी के विकल्प को तलाश रही भाजपा ने जितिन प्रसाद को पीलीभीत बहेड़ी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतार दिया। जनपद में जितिन प्रसाद का यह पहला चुनाव है और कहा जा सकता है कि शाहजहांपुर की कोठी से पीलीभीत के पुश्तैनी रिश्तो को आधार बनाकर जितिन प्रसाद राजनीति की नई जमीन तैयार कर रहे हैं।

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