-सरकार गठन से लेकर सीएम बनने तक पर रही ऐसी स्थिति
देहरादून (हि.स.)। उत्तराखंड के सियासी इतिहास में वर्ष 2022 को मिथकों की नई इबारत लिखने के लिए याद किया जाएगा। विधानसभा के चुनाव में कुछ मिथक धराशायी हुए, तो कुछ मिथकों ने अपनी जगह और पक्की की। उत्तराखंड के 22 वर्ष के इतिहास में यह पहली बार हुआ, जबकि पांच साल में सत्ता परिवर्तन का अनिवार्य सा मिथक चकनाचूर हो गया। भाजपा को विधानसभा चुनाव में फिर से जबरदस्त बहुमत मिला।
पड़ोसी राज्य हिमाचल के विधानसभा चुनाव में पांच साल में सत्ता परिवर्तन का मिथक बरकरार रहा, तो पूरे देश में उत्तराखंड के चुनाव नतीजों की नए सिरे से चर्चा हुई और तो और ये भी उत्तराखंड की सियासत ने पहली बार देखा कि विधानसभा का चुनाव हार जाने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी पर भरोसा जताते हुए भाजपा के हाईकमान ने उनकी मुख्यमंत्री बतौर ताजपोशी कर दी।
इस बार के विधानसभा चुनाव की शुरूआत में ही यह सबसे बड़ा बहस का मुद्दा था कि क्या भाजपा पांच साल में सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ पाएगी। चुनाव हुए, परिणाम निकले, तो सभी चौंक पडे़। प्रदेश में 47 सीटें जीतकर भाजपा ने सत्ता में वापसी की। पिछले चुनाव में भाजपा को 57 सीटें मिली थी और प्रचंड बहुमत से उसकी सरकार बनी थी। इस बार भी 47 सीटें प्रचंड बहुमत सरीखी है, क्योंकि यहां पर बहुमत का जादुई आंकड़ा 26 सीटों का है। इससे पहले, वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पांच साल में सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ने के करीब पहुंच गई थी, लेकिन सिर्फ एक सीट के उसके नुकसान ने उसे सत्ता हटाकर विपक्ष में बैठा दिया था। तब मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूडी के चेहरे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था और उसे कुल 31 सीटें मिली थीं। एक सीट यानी 32 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सत्ता हासिल कर ली थी। हालांकि उसकी अल्पमत की सरकार थी, जिसे बाद में निर्दलियों का सहारा मिल गया था।
भाजपा ने वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा, लेकिन उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही सीएम उम्मीदवार घोषित किया गया था। धामी खटीमा से चुनाव लडे़, लेकिन हार गए। यह भाजपा के लिए अजीबोगरीब स्थिति थी, कि उसे बहुमत तो मिल गया, लेकिन उसका सीएम उम्मीदवार ही चुनाव हार गया। मगर पार्टी हाईकमान ने धामी पर ही भरोसा किया और पहली बार चुनाव हारने वाले नेता की दोबारा मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी का इतिहास बन गया।
एक सियासी मिथक इस बार रानीखेत सीट को लेकर भी टूटा। अब तक यही होता आया था कि इस सीट पर जिस राजनीतिक दल का उम्मीदवार विजयी होगा, उसकी सरकार नहीं बनेगी। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। भाजपा के प्रमोद नैनवाल ने यह सीट जीती और सरकार भी भाजपा की ही बनी। इससे मिलता-जुलता गंगोत्री सीट का सियासी मिथक अपनी जगह पर कायम रहा। यहां पर यूपी के जमाने से जिस पार्टी का विधायक रहता है, उसी की सरकार बनती है। इस बार भी यहां से भाजपा ने जीत दर्ज की और उसी की सरकार बनी। एक सियासी मिथक इस बार नए रूप में सामने आया। अभी तक ये होता आया था कि जो भी शिक्षामंत्री होता था, वह अगला चुनाव नहीं जीत पाता था। इस बार पूर्व शिक्षामंत्री अरविंद पांडेय बाजपुर से चुनाव तो जीत गए, लेकिन मंत्री नहीं बन पाए। इससे पहले, के चुनाव में शिक्षा मंत्री कभी चुनाव ही नहीं जीत पाए थे।