आदिवासी आरक्षण का मुद्दा भाजपा पर पड़ेगा भारी

कांकेर (ईएमएस)। क्या भाजपा छत्तीसगढ़ में होने जा रहे भानुप्रतापपुर उपचुनाव में पनप पायेगी अथवा तमाम उपचुनावों की तरह कांग्रेस से मात खायेगी, इस बारे में आदिवासी आरक्षण कटौती का मुद्दा भाजपा के गले की फांस बन सकता है क्योंकि कांग्रेस उसे ही जिम्मेदार ठहराते हुए आरोपों और सवालों की बारिश कर रही है। भाजपा शासनकाल में 20 से बढ़ाकर 32 फीसदी किया गया आदिवासी आरक्षण कांग्रेस की हुकूमत में आये अदालती फैसले से घटकर वापस 20 प्रतिशत हो गया। इससे छत्तीसगढ़ में भर्ती प्रक्रिया पर भी व्यापक असर पड़ा है। आदिवासी समाज आरक्षण कटौती को लेकर नाराज है और राजनीति भी उबल रही है।

 भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही हैं। भाजपा के निशाने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं तो कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को जिम्मेदार ठहरा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह से पूछ रहे हैं कि कंवर कमेटी और मुख्यसचिव कमेटी के बारे में हाईकोर्ट से क्यों छुपाया था? अब आदिवासी सीट भानुप्रतापपुर के विधायक मनोज मंडावी के निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है तब आदिवासी आरक्षण में कटौती के मामले का साया इस पर पडऩा ही है। भानुप्रतापपुर का परिणाम यह बतायेगा कि आदिवासी समाज की नजर में कौन सही है।उपचुनाव के कारण कांग्रेस और भाजपा के बीच इस मुद्दे पर जबरदस्त टकराव चल रहा है। कांग्रेस कह रही है कि वह हर मंच से भाजपा की बदनीयती को बेनकाब करेगी। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा पर आदिवासी समाज से धोखेबाजी करने का आरोप लगाएगी।


इस उपचुनाव में राजनीतिक मुद्दा आरक्षण कटौती ही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मरकाम कह रहे हैं कि कांग्रेस सरकार आदिवासी समाज को 32 फीसदी आरक्षण देने प्रतिबद्ध है। कांग्रेस कह रही है कि तत्कालीन भाजपा सरकार की लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में आदिवासी समाज का आरक्षण कम हो गया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम पूर्व मुख्य मंत्री रमन सिंह से पूछ रहे हैं कि हाइकोर्ट में तत्कालीन मंत्री ननकी राम कंवर की कमेटी और मुख्य सचिव की कमेटी के बारे में क्यों छुपाया गया था? जब आरक्षण बढ़ाने के लिए इन कमेटियों का गठन किया गया था और इनकी सिफारिशों को ही आरक्षण बढ़ाने का महत्वपूर्ण आधार बनाया गया था। तब अदालत में जब 50 फीसदी आरक्षण को बढ़ा कर 58 फीसदी किये जाने के खिलाफ वाद दायर हुआ, तब रमन सरकार ने अदालत में इस मुकदमे के सम्बंध में जो एफिडेविड दिया, उसमें इन दोनों ही कमेटियों के बारे में उल्लेख क्यों नहीं किया?

 यह सामान्य भूल नहीं हो सकती। अदालत में सरकार की तरफ से महाधिवक्ता और वरिष्ठ वकीलों का पैनल खड़ा होता है। इसलिए यह माना ही नहीं जा सकता कि इन कमेटियों को बिना किसी कारण के अदालत से छुपाया गया होगा। जबकि इस मुकदमे को जीतने का बड़ा आधार ही आदिवासी समाज की 32 प्रतिशत जनसंख्या और इन दोनों कमेटियों की सिफारिश थी। कांग्रेस कह रही है कि यह कोताही बताती है कि रमन सरकार ने आदिवासी समाज के आरक्षण के खिलाफ मुकदमे को जानबूझ कर हारने की नीयत से ही यह षड्यंत्र रचा था। अदालत में चले मुकदमे में समय अधिक लगने के कारण यह फैसला तब आया, जब रमन सरकार की बिदाई हो चुकी है। मरकाम के अनुसार अदालत में कांग्रेस सरकार के महाधिवक्ता ने जब दोनों कमेटी की सिफारिशों को रखना चाहा, तब अदालत ने यह कह कर अनुमति नहीं दी कि पूर्व में दायर एफिडेविड में इन कमेटियों के अस्तित्व के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। 

इससे साफ जाहिर है कि आदिवासी समाज का आरक्षण कम होने की गुनाहगार भाजपा है। मरकाम कह रहे हैं कि कांग्रेस सरकार प्रदेश के आदिवासी वर्ग को 32 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है। आदिवासियों के हित में राज्य सरकार देश के नामी वकीलों को खड़ा कर 32 प्रतिशत आदिवासी आरक्षण के पक्ष को मजबूती से रख रही है और कानूनी लड़ाई लड़ रही है । आदिवासी वर्ग को उसका अधिकार देने के लिए आवश्यकता पड़ी तो राज्य सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने से भी पीछे नहीं हटेगी। जरूरत पड़ेगी तो अध्यादेश भी लाया जायेगा।

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