आरजेडी का वोट बैंक खतरे में? जानें कैसे असर डालेंगे तेज प्रताप यादव….पढ़ें इनसाइड स्टोरी

बिहार में एक कहावत मशहूर है— “घर टूटे, जंवार लूटे।” यानी जब घर के भीतर ही फूट पड़ जाए, तो बाहरी ताकतें उसका फायदा उठाती हैं। यही तस्वीर आज आरजेडी (RJD) में देखने को मिल रही है। पार्टी संस्थापक लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने आरजेडी से बाहर निकलकर अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी नई पार्टी का नाम और स्वरूप कहीं न कहीं आरजेडी से मेल खाता है। सवाल उठता है—क्या तेज प्रताप की यह बगावत तेजस्वी यादव और आरजेडी को नुकसान पहुंचा पाएगी?

2013 की रैली से 2025 की बगावत तक

15 मई 2013 को पटना के गांधी मैदान में आयोजित परिवर्तन रैली में लालू यादव ने अपने दोनों बेटों—तेजस्वी और तेज प्रताप—को एक साथ राजनीति में उतारा था। लेकिन बारह साल बाद वही दोनों भाई अलग-अलग रास्ते पर चलते नजर आ रहे हैं। लंबे समय से चल रही अनबन का नतीजा है कि तेज प्रताप ने अब अलग पार्टी बनाकर खुलेआम अपने छोटे भाई पर हमला बोल दिया।

तेज प्रताप का दावा और नई पार्टी

तेज प्रताप ने अपने संबोधन में कहा कि उन्होंने जनशक्ति जनता दल का गठन 2020 में ही कर दिया था। उनका कहना है कि यह संगठन सामाजिक न्याय और गरीब जनता की आवाज बनेगा। वे खुद को जमीनी नेता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। तेज प्रताप कहते हैं—“गरीब का नेता वही होता है जो पैदल चलता है। जनता को देखते ही हम भीड़ में उतर जाते हैं।”

जनाधार की चुनौती

तेजस्वी यादव के मुकाबले तेज प्रताप के पास न तो कोई मजबूत संगठन है और न ही जनाधार। यही कारण है कि राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि नई पार्टी बनाने भर से वह कोई बड़ा बदलाव नहीं ला पाएंगे। लेकिन फिर भी उनके कदम से आरजेडी के वोट बैंक में सेंध लग सकती है। खासकर यादव और मुस्लिम बहुल इलाकों में वे असर डाल सकते हैं।

लालू की विरासत का हवाला

तेज प्रताप बार-बार खुद को लालू प्रसाद यादव की विरासत से जोड़ते हैं। एक वीडियो में उन्होंने कहा—“मेरी रगों में लालू यादव का खून है। अगर आप मुझे जिताते हैं, तो समझिए लालू यादव को जिताते हैं।” यह बयान भले ही उनके कद को तेजस्वी जितना न बना पाए, लेकिन आरजेडी के परंपरागत वोटरों में हलचल जरूर मचा सकता है।

चुनावी गणित पर असर

बिहार की राजनीति में हर वोट की अहमियत है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी केवल 0.23% वोटों से एनडीए से पीछे रही थी। कई सीटों पर जीत का अंतर 5,000 से भी कम था। ऐसे में अगर तेज प्रताप अपने पिता की छवि और नाम के सहारे कुछ हजार वोट भी खींच लेते हैं, तो नतीजों पर बड़ा असर पड़ सकता है। इसका ट्रेलर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखा जा चुका है, जब जहानाबाद सीट पर तेज प्रताप के समर्थक उम्मीदवार को मिले वोटों की वजह से आरजेडी हार गई थी।

परिवार की कलह और तेजस्वी की चिंता

तेजस्वी यादव इस खतरे को भली-भांति समझते हैं। यही कारण है कि वे परिवार में चल रही कलह को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं। तेज प्रताप की तरह उनकी बहन और लालू यादव की किडनी दान करने वाली रोहिणी आचार्य भी नाराज चल रही हैं। इस पर तेजस्वी ने सफाई देते हुए कहा—“रोहिणी और मिशा ने कभी भी स्वार्थ नहीं देखा। उन्होंने पार्टी को आगे बढ़ाने में हमेशा सहयोग किया है। न उन्होंने टिकट मांगा और न किसी को दिलवाने की कोशिश की।”

नतीजा क्या होगा?

तेज प्रताप की नई पार्टी भले ही भाजपा-जदयू (BJP-JDU) के लिए कोई बड़ी चुनौती न बने, लेकिन आरजेडी और तेजस्वी यादव के लिए यह बड़ी मुसीबत साबित हो सकती है। इससे पार्टी की छवि कमजोर होगी और विरोधियों को यह कहने का मौका मिलेगा कि तेजस्वी अपने परिवार को भी नहीं संभाल पाए।

निष्कर्ष यही है कि लालू परिवार की यह अंदरूनी लड़ाई बिहार की राजनीति में नए समीकरण बना सकती है। अगर समय रहते मतभेद नहीं सुलझे, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान आरजेडी को ही उठाना पड़ेगा।

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