कांग्रेस में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़


-पंजाब में अमरेन्द्र और सिद्दू के नहीं मिल रहे हांथ
-राजस्थान में नहीं थम रही पायलट की गहलौत विरोधी उड़ान
-सीएम बदलने को लेकर छत्तीसगढ़ में आपस ही छत्तीस का आंकड़ा

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। कांग्रेस इस समय अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। कांग्रेस शासित राज्यों में जहां भी मुख्यमंत्री है वहां उनके खिलाफ गुटबंदी और केन्द्रीय नेतृत्च से दोचार होने की खबरे आ रही है। और जहां वह विपक्ष में है वहां के संगठन में ही लोग एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोके हुए है। इस समय कांग्रेस शासित राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब तीनों राज्यों में जो खींचतान मची है उसने केन्द्रीय नेतृत्व की पेशानी पर बल डाल दिया है। केन्द्रीय स्तर पर कांग्रेस में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। वहां पहले से ही पूर्णकालिक अध्यक्ष न होने की दशा मेंं पार्टी के वरिष्ठï नेता गांधी परिवार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। पिछले दिनों जो जी-२३ की मीटिग हुई उसमें गांधी परिवार से किसी को आमंत्रित नहीं किया गया। कांग्रेस में पिछले दो साल से कोई पूर्णकालिक राष्टï्रीय अध्यक्ष नहीं है। अगस्त २०१८ को राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद ही सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था उसके बाद अभी तक कांग्रेस अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं तलाश कर पाई है।

 
राज्यों में देखे तो पंजाब कांग्रेस में मची अन्र्तकलह से अभी कांग्रेस उबर भी नहीं पाई थी कि एकाएक छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग जोर पकडऩे लगी जबकि राजस्थान का झगड़ा भी जगजाहिर है। पंजाब में मुख्यमंत्री कै प्टन अमरेन्द्र सिंह और प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्दू के बीच खिंची तलवारे वापस म्यान में जाने का नाम ले रही है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के विरोध के बावजूद वहां सिद्दृ को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया। बावजूद इसके वहां डिनर और ब्रेकफास्ट पालीटिक्स के जरिए एक दूसरे को नीचा दिखाने की गलाकाट स्पर्धा जारी है। पार्टी के भीतर ही ईट से ईट बजाने की बात हो रही है। अंजाम से बेपरवाह कांग्रेस के नेता वर्चस्व की लड़ाई में किसी भी हद तक जाने को तैयार है। 

केन्द्रीय नेतृत्व का कोई हस्तक्षेप वहां काम नहीं आ रहा है। बता दे कि अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होना है उनमें पंजाब में शामिल है। एक ओर वहां जहां अकाली दल सहित बाकी दल प्रत्याशियों के चयन में लगे है तो कांग्रेस में भीतर लोग एक दूसरे से पंजा लड़ाकर नीचा दिखाने में लगे है।

 
यहीं स्थिति राजस्थान में भी है जहां मुख्यमंत्री और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोके खड़े हुए है। मुख्यमंत्री अशोक गहलौत और सचिन पायलट जो गहलौत सरकार में डिप्टीसीएम भी रहे है। दोनों के बीच सांमजस्य नहीं है। केन्द्रीय नेतृत्व की दोनेा के बीच सुलह कराने की सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी है। दोनों के बीच जयपुर से लेकर दिल्ली तक कई बार शक्ति परीक्षण की नौबत आ चुकी है। गहलौत के सीएम बनने से पहले पिछले विधानसभा चुनाव में मिले बहुमत के बाद पायलट के ही सीएम बनाये जाने की अटकले थी लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने उनके बजाय एक बार फिर कई बार सीएम रहे गहलौत पर भी भरोसा किया। सरकार गठन से लेकर शुरू हुआ मनमुटाव अभी तक जारी है दोनो के बीच मचे मनमुटाव के बीच ही ज्योतिरादित्य की तरह उनके भी भाजपा में जाने की अटकले थी। लेकिन पायलट को समझाने मेंं कुछ हद तक केन्द्रीय नेतृत्व कामयाब रहा वे डिप्टी सीएम पद से हटे और अब संगठन में सक्रिय है। 

इनसबके बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस में सबकुछ ठीकठाक चल रहा है। राजस्थान में गहलौत सरकार को वहां भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी का यह अन्र्तद्वन्द कांग्रेस को अन्य राज्यों की तरह हाशिए पर लाकर खड़ा कर देगा। इस संभावना से राजनीतिक प्रेक्षकों को भी इंकार नहीं है।


छत्तीसगढ़ में सरकार गठन से यह मसौदा तय हुआ था कि ढाई-ढाई साल के लिए सीएम बनायेगी उस हिसाब से भूपेश बघेल पहले सीएम बन गए उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद उनके स्थान पर टीएस सिंह देव के सीएम बनने की आकांक्षाएं हिलोर मार रही है। राजस्थान और पंजाब में मची खिचखिच से केन्द्रीय नेतृत्व अभी उबर भी नहीं पाया था कि छत्तीसगढ़ की कलह ने उसकी दुश्वारियां बढ़ा दी है।

 
सीएम भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच छत्तीस के सियासी आंकड़े ने कांग्रेस को पूरी तरह से उलझी हुई है। सीएम बदलना है या नहीं इस बारे में कोई निर्णय लेने से पूर्व अपने नफानुकसान का आकलन करने में लगी है। फिलहाल दोनो नेताओं और उनके समर्थकों को बुलाकर दिल्ली बात करने का क्रम जारी है। हालांकि जानकारों की माने तो केन्द्रीय नेतृत्व भूपेश बघेल को हटाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी। 2018 में जब से कांग्रेस की सरकार बनी है तभी से भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच झगड़ा जगजाहिर है। हालांकि टीएस सिंहदेव ने कभी बगावती तेवर नहीं दिखाए। मगर अब जब बघेल के सीएम की कुर्सी पर बने हुए ढाई साल हो गए हैं तो ऐसे में टीएस सिंह गुट का कहना है कि कांग्रेस को अब मुख्यमंत्री बदल देना चाहिए।


आगामी चुनावों और अन्य राज्यों में पार्टी के आंतरिक कलह को देखते हुए कांग्रेस ओबीसी मुख्यमंत्री को बदलने का जोखिम नहीं उठाना चाह रही है। भूपेश बघेल एक ओबीसी नेता हैं। यदि उन्हे हटाया जाता है तो छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी गलत संदेश जाएगा।

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