दिल्ली विधानसभा चुनाव में वोटर्स को लुभाने के लिए पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। दिल्ली की सत्ता में 12 साल से बैठी आम आदमी पार्टी को लेकर जनता के बीच एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर देखने को मिल सकता है। बीते 2 चुनाव से खाता खोलने को तरस रही कांग्रेस के पास दिल्ली चुनाव में हासिल करने को सब कुछ और खोने को कुछ भी नहीं है। वहीं लोकसभा चुनाव में AAP और कांग्रेस का सूफड़ा साफ करने वाली भाजपा चुनाव मैदान में पूरे दमखम के साथ नजर आ रही है।
महिला वोटर्स
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कई फैक्टर अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसमें महिला और मध्यम वर्गीय वोटर्स के साथ ही धार्मिक पहलुओं पर भी पार्टियां अपनी प्लानिंग तैयार कर सकती हैं। इसके चलते ही सभी पार्टियों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं पर ध्यान केंद्रित किया है। मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए काफी हद तक यह सही भी है। वहीं भाजपा ने अपने ‘संकल्प पत्र’ में महिलाओं के साथ ही बुजुर्गों और गरीबों पर भी फोकस किया है।
SBI रिसर्च की रिपोर्ट में सामने आया है कि साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में 18 करोड़ से अधिक महिलाओं ने वोट डाला था। इसके पीछे का कारण साक्षरता, प्रधानमंत्री आवास योजना और मुद्रा ऋण जैसी महिला केंद्रित योजनाओं को माना जा रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में 60% महिला वोटर्स ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था। वहीं केवल 35% महिलाओं का वोट BJP को मिल पाया था। इससे महिला वोट बैंक में AAP को भाजपा के मुकाबले सीधे तौर पर 25 फीसदी की बढ़त मिल गई थी।
वहीं पुरुष वोटर्स के आंकड़ों को देखें तो 2020 के चुनाव में 49 प्रतिशत पुरुषों ने AAP को वोट दिया था। वहीं, 43 प्रतिशत पुरुषों ने BJP को वोट दिया था। दिल्ली में महिलाओं की संख्या 46% के आसपास है। वहीं पुरुषों की संख्या 54% है। इसका मतलब है कि महिलाओं के वोट से आम आदमी पार्टी को करीब 12% की बढ़त मिली, वहीं पुरुषों के वोट से AAP को भाजपा की अपेक्षा 3% वोट अधिक मिले।
आंकड़ों के इस जाल को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि साल 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 54%, BJP को 39% और कांग्रेस 4% वोट मिला था। इसका मतलब साफ है कि AAP को 15% अधिक वोट मिले थे। इसे एक वाक्य में समझें तो, आम आदमी पार्टी को मिली बढ़त में से 80% बढ़त महिलाओं के वोट से हासिल हुई थी।
महिला वोटर्स को लुभाने के लिए AAP, कांग्रेस और BJP तीनों ने हर महीने नकद राशि देने का ऐलान किया है। AAP का ऐलान विवादों में भी रहा और LG ने जांच के आदेश भी दिए हैं। वहीं भाजपा AAP से अधिक राशि देने का वादा कर रही है। इसके अलावा, गैस सिलेंडर से लेकर स्वास्थ्य योजनाओं तक के लिए BJP ने एक तरह से महिलाओं के लिए खजाना खोलने का ऐलान किया है।
हिंदू-मुस्लिम-सिख
धर्म की राजनीति और राजनीति का धर्म भारतीय राजनीति के दो अलग-अलग विषय रहे हैं। लेकिन बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की बढ़ती घुसपैठ और इनकी आपराधिक घटनाओं के चलते न केवल दिल्ली बल्कि देश की राजनीति में भी घुसपैठिए बड़ा मुद्दा हैं।
अगर सिर्फ दिल्ली की बात करें तो यहां 82% हिंदू, 13% मुस्लिम और 5% सिख हैं। साल 2020 के चुनावी आंकड़ों को देखें तो आम आदमी पार्टी को 83% मुस्लिम वोट मिले थे। वहीं महज 3% मुस्लिम वोट भाजपा के हिस्से में गया था। 67% सिखों ने AAP को और 28% सिखों ने BJP को वोट दिया। इससे AAP को सीधे तौर पर 39% की बढ़त हासिल हुई थी।
हिंदू वोटर्स की बात करें तो साल 2020 में 49% हिंदुओं ने AAP को वोट दिया था। वहीं, 46% हिंदू वोट BJP के खाते में गए थे। इससे आम आदमी पार्टी को हिंदू वोटर्स में भी 3% की बढ़त मिल गई थी। कुल मिलाकर देखें तो 3% हिंदू, 10% मुस्लिम और 2% सिख वोटर्स के जरिए 2020 के विधानसभा चुनाव में AAP को 15% अधिक वोट मिले थे।
चूंकि बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम न केवल भारत के संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं बल्कि फर्जी दस्तावेजों के जरिए भारत की नागरिकता भी हासिल कर ले रहे हैं। इतना ही नहीं लगातार बढ़ रहे क्राइम के पीछे भी घुसपैठिए का ही हाथ है। बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान के घर में घुसकर हमला करने वाले आरोपित की पहचान भी बांग्लादेशी के रूप में हुई है। ऐसे में घुसपैठियों के मुद्दे को लेकर इस चुनाव राजनीतिक माहौल तेजी से बदलता नजर आने वाला है।
गरीब-मध्यम वर्गीय वोटर भी महत्वपूर्ण
बीते कुछ समय में हुए चुनावों को देखें तो किसी भी चुनाव में महिला-पुरुष या धर्म के वोट बैंक से बढ़कर सीधा लाभ और खासतौर से गरीबों या माध्यम वर्ग को टारगेट करते हुए जो योजनाएं या घोषणाएं होती हैं, उनका अधिक असर देखने को मिलता है। एक ओर जहां AAP ने अपनी पुरानी योजनाएं जारी रखने का ऐलान किया है। वहीं भाजपा ने गरीबों के लिए सब्सिडी वाली कैंटीन और सिलेंडर का ऐलान किया है। सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा ने कहा है कि गरीबों को सिर्फ 5 रुपए में थाली और 500 रुपए में एलपीजी सिलेंडर मिलेगा।
चूंकि दिल्ली की आबादी में 35% गरीब और 45% मध्यम वर्ग के लोग हैं। ऐसे में सब्सिडी वाली योजनाएं न केवल गरीबों को लुभाती हैं बल्कि वोट में तब्दील करने में भी सक्षम होती हैं। आंकड़ों पर एक बार फिर नजर डालें तो साल 2020 में, लगभग 61% गरीबों ने AAP वोट दिया था। वहीं 33% गरीबों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था। इससे AAP को 28% अधिक वोट मिले थे। इसी तरह, मध्यम वर्ग के 53% लोगों ने AAP को वोट दिया था और महज 39% ने भाजपा को वोट दिया था। इससे एक बार दिएर आम आदमी पार्टी को 14% की बढ़त मिली थी। अपर क्लास की बात करें तो 48%अमीरों ने भाजपा को वोट दिया था, जबकि 47% ने AAP को वोट दिया था। इससे भाजपा को सिर्फ 1% की ही बढ़त मिल पाई थी। मतलब साफ है कि गरीबों के वोट से आम आदमी पार्टी को 9% और मध्यम वर्ग के वोट से 6% की बढ़त के साथ कुल 15% अधिक वोट मिले थे।
BJP के पास क्या है रास्ता?
मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों को लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया का कहना था कि भाजपा सरकर में वापस नहीं आ पाएगी। सर्वे में भी ऐसे ही आंकड़े सामने आए थे। हालांकि जब चुनाव परिणाम सामने आए तो चौंकाने वाले थे। ऐसा ही महाराष्ट्र में भी हुआ था। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों ही राज्यों में महिलाओं को नकद राशि देने से ही अप्रत्याशित परिणाम सामने आए थे। ऐसे में दिल्ली की सत्ता में चला आ रहा वनवास खत्म करने के लिए भाजपा को 2500 रुपए प्रति माह नकद राशि देने के ऐलान को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। इससे महिलाओं का एक बड़ा तबका भाजपा के समर्थन में आ सकता है।
इसके अलावा BJP को इस बात की उम्मीद जरूर होगी कि कांग्रेस AAP के मुस्लिम और सिख वोटों में सेंध लगाएगी। इससे आम आदमी पार्टी को पिछले चुनाव में मिले वोट प्रतिशत में बड़ी कटौती हो सकती है। चूंकि कांग्रेस ने 8 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, वहीं AAP ने 5 मुस्लिमों को टिकट दिया है। ऐसे में भी कांग्रेस 10 मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर प्रभाव डालती नजर आ सकती है। कांग्रेस के पिछले प्रदर्शन को देखते हुए यदि यह कहा जाए कि दिल्ली में वह AAP का वोट काट सकती है तो गलत नहीं होगा। इससे सीधा फायदा BJP को ही होना है। इसके अलावा, शराब घोटाले और शीश महल समेत अन्य घोटालों के मुद्दे BJP को AAP के खिलाफ माहौल बनाने में कारगर साबित हो सकते हैं। साथ ही मनीष सिसोदिया का सीट छोड़कर दूसरे क्षेत्र से चुनाव लड़ना भी जनता की नजरों में AAP की छवि खराब कर रहा है।
दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव यानी साल 2020 में AAP को 62 सीटें मिली थीं, जोकि 2015 की तुलना में 5 कम थीं। वहीं BJP 5 सीटें अधिक जीतकर 8 तक पहुंच गई थी। 2024 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों को देखें तो भाजपा 52 विधानसभा क्षेत्रों में आगे थी, AAP 10 में और कांग्रेस महज 8 सीटों में ही बढ़त हासिल कर पाई थी। यदि यही वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव में भी रहा तो BJP अप्रत्याशित जीत हासिल करने में कामयाब हो जाएगी।
हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव का परिणाम एक जैसे आने की बातें करना है, लेकिन चुनाव परिणाम में इसे तब्दील करना बेहद कठिन होता है। ऐसे में यदि BJP को चुनाव जीतना है तो महिलाओं-गरीबों और मध्यम वर्ग को ध्यान में रखते हुए रणनीति तैयार करनी होगी। इसके अलावा मुस्लिम बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों के मुद्दे के जरिए ध्रुवीकरण के जरिए भी भाजपा बढ़त हासिल करने में कामयाब हो सकती है।