
बात आज से दस साल पहले की है
जब मैं 18 साल की उम्र में अपना छोटा सा शहर या यूं कहें गाँव छोड़ कर पुणे जैसे आधुनिक और विशाल शहर में कदम रखा। पैदाइस भले ही छोटे से शहर में हुई थी पर हौसलों और उम्मीदों की इमारते बहुत बड़ी थी। इसी वजह से आर्थिक तंगी के बावजूद घर वालो से लड़ते लड़ाते 12वी के एग्जाम के बाद बड़े बड़े सपनो के साथ बी.बी.ए. करने मैं सीधा पुणे चला गया।
दुनिया की सच्चाई के सामने घुटने मोड़ने लगे सपने
जैसे जैसे पुणे में दिन बितते गए वैसे वैसेे जीवन की सच्चाइयों और कठिनाइयों से रुबरु होता गया। शहर की भाग दौड़ और बढ़ती महँगाइयों की बराबरी कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। पढ़ाई में तो मैं तेज़ था और क्लास में परफॉरमेंस भी ठीक था पर इतने से बात नही बन पा रही थी। जैसे तैसे पहला साल निकल गया पर अभी तक उस अजनबी शहर में मेरा अपना कोई नही था। कॉलेज से किराये का घर और फिर घर से कॉलेज बस मेरी दुनिया इतने में ही सिमट के रह गई थी।
फिर मेरी जिंदगी में वो आई और सबकुछ बदल गया
अब मैं कॉलेज के तीसरे सेमेटर में पहुंच चुका था। और हमारे जूनियर्स भी आ गये थे तब सुरवाती दिनों में हमारे क्लास के लड़के और लड़कियां मिलकर जूनियर्स को क्लास के अंदर बुला के उनका रैगिंग लिया करते थे। उस दिन मैं भी क्लास के कोने में चुपचाप अकेले बैठे बैठे सबकुछ देख रहा था। तभी मेरी नज़रे एक जूनियर लड़की से मिली जो वहां रैगिंग के लिए बुलाई गई थी। हलकी सी पिंक कलर की स्लीवलेस टीशर्ट और नीचे डेनिम पहने हुए वो बार बार झुकी नज़रों से मुझे ही देख रही थी। वो बहुत डरी और सहमी हुई सी थी। उसे पहली बार देखने पर लगा जैसे वो बस मेरे लिये ही बनी है और उसपर सिर्फ मेरा हक है।
जब मैंने ध्यान से दोबारा उसकी तरफ देखा और सुना तो पता चला कि सीनियर्स उससे मेरा नाम पूछ रहे थे और इसलिए मेरी तरफ वो बार बार देखकर चेहरा पहचानने की कोशिश कर रही थी। सीनियर्स को ये पूरा पता था कि जूनियर्स तो छोड़ो मुझे मेरे ही क्लास के बहुत से लोग नही पहचानते। मुझसे ये सब देखा नही गया और मैं क्लास से बाहर आ गया।
जब हम एक दूसरे के एकदम करीब आमने सामने थे
क्लास से निकल सीधे कैंटीन चला गया और वहीं कहीं कोने में बैठ कर उस लड़की के बारे में सोचने लगा। तभी मेरे कंधों में एक लड़की का स्पर्श हुआ और वो बोली “मैं तनुजा, माफ कीजियेगा मैं क्लास में आप को पहचान नही पाई”
ये वहीं जूनियर लड़की थी जिसे मैंने कुछ देर पहले क्लास में रैगिंग देते हुए देखा था। मैं ज्यादा कुछ बोल ही नही पा रहा था। मैं उसकी प्यारी सी मुस्कान और बातें करते समय चेहरे पे जो उसके बाल आ जाते थे उसी को देखता रहा। उसके शरीर से भीनी भीनी परफ्यूम की खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी। उस दिन से मेरी ज़िंदगी बदल गई और हम दोनों एक अच्छे दोस्त और फिर कुछ सालों में वो प्यार में बदल गया।
फिर वो मौका आया जिसका हर प्रेमी जोड़ी को राहत है इंतेज़ार
इस एक साल में हम दोनो के बिच एक-दो छोटी मोटी kiss के अलावा और कुछ ज्यादा नही हुआ था। हालांकि उम्र के उस पड़ाव में जिस्मानी रिश्ता एक जरूरत सी बन गई थी और ये हम दोनो एक दूसरे को बिना कहे ही समझ रहे थे। पर भीड़ भाड़ की इस दुनिया और पुणे जैसे व्यस्त शहर में हमे वैसा एकांत माहौल ही नही मिल रहा था।
तभी एक दिन उसने मुझे बताया कि उसकी दीदी जो मेडिकल की स्टूडेंट थी एजुकेशनल टूर के लिए शहर से बाहर जा रही है और वो अपने किराये के मकान में दो दिन अकेली है।
सारी रात हम एक दूसरे को प्यार करते रहे
उसी शाम सीधे मैं गुलदस्तों और चॉकलेट के साथ उसके घर पहुंचा जहाँ वो बिल्कुल अकेली थी। उसने पूरा घर सजा रखा था और जैस्मीन की खुशबू से पूरा रूम महक रहा था। पतली सी टीशर्ट और पैजामे में वो कमाल की लग रही थी। उसका ऐसा रूप मैं पहली बार देख रहा था। आज दस साल बाद भी वो दृश्य मेरे दिमाग मे एक फोटो की तरह छपा हुआ हैं।
बिना कुछ कहे उसने मेरे हाथ पकड़े हुये अपने कमरे में ले गई और हम दोनों एक दूसरे से लिपट गये। फिर उसके बाद जो होना था वहीं हुआ सारी रात हम एक दूसरे को प्यार करते रहे। सारी दर्द सहते हुए उसने मुझे अपने आप मे समा लिया। उसकी आँखों मे खुशी और दर्द दोनो के आँशु थे। उस पूरी रात और अगला दिन हम सिर्फ बिस्तर पे ही थे। सालों की दबी आग बार बार बाहर आती थी। आखिर में ना चाहते हुए भी मुझे तीसरे दिन उसे छोड़ कर वापस आना पड़ा।
कुछ भयानक घटने वाला था हमारे साथ
उस घटना के बाद भी हमारे बीच सबकुछ सामान्य चल रहा था पर लगभग एक महीने बाद वो मेरे पास आकर अचानक रोने लगी। मैंने कारण पूछा तो बोली कि दीदी को हमारे बारे में सबकुछ पता चल गया है और वो बहुत नाराज है। वो तुमसे मिलना चाहती है हमारे घर पर।
उन लम्हो की बदौलत तनुजा प्रेग्नेंट हो गई थी
जिस कमरे में हमने एक दूसरे के साथ कभी न भुला पाने वाले हसीन लम्हे गुजरे थे उसी कमरे में आज मैं एक बार फिर खड़ा था और और उसकी दीदी मुझे जलील किये जा रही थी। खरी खोटी सुना रही थी। मेरी गरीबी और अपनी अमीरी की दूरियां नाप रही थी। मैं चुप चाप सब सुनता जा रहा था। आखिर मैं करता भी क्या। वो जो भी बोल रही थी सब सही था।
मेरे तो होश उड़ गए जब तनुजा की दीदी ने बताया कि तनुजा प्रेग्नेंट हो गई है। उसकी दीदी ने बच्चा अबो्र्ट करने के लिए 25 हज़ार रुपयों का इंतज़ाम करने को कहा। कुछ दिन पहले ही मैंने घरवालों से फीस भरने के लिए 15 हज़ार रुपये लिये थे। उस शहर में मेरा कोई और नही था जो मदद कर सकता था।
कॉलेज से लैपटॉप चोरी करने के अलावा और कोई रास्ता नही बचा
तब मेरे पास कॉलेज से लैपटॉप चोरी करने के अलावा और कोई रास्ता नही बचा। तनुजा को बिना बताये ही मैंने ये फैसला लिया और अगले दिन कॉलेज से एक नया लैपटॉप चोरी कर के घर ले लाया। अब अगले दिन उसे बेच के पैसे का इन्तेज़ाम करने का प्लान था।
पर वो अगला दिन आया ही नही। मेरी चोरी उसी दिन पकड़ी गई और पूरे कॉलेज में ये बात आग की तरह फैल गई। लैपटॉप मुझे वापस करना पड़ा। कॉलेज की बदनामी को देखते हुए कोई पुलिस कंप्लेन नही हुआ पर मैं पूरा जलील हो चुका था। दूर दूर तक तनुजा भी उस दिन कॉलेज में नही दिख रही थी।
पर मुझे तो अभी और बहुत कुछ देखना और झेलना था
कॉलेज ने मुझे कुछ दिनों तक क्लास ना आने की हिदायत दी। ये सब मुझसे बर्दास्त नही हो पा रहा था। मैं पूरी तरह से टूट चुका था। कॉलेज में जो एक दो दोस्त थे वो भी आज दूर दूर खड़े नजर आ रहे थे। तनुजा भी कहीं दिखाई नही दे रही थी। शायद उसे भी एक चोर बॉयफ्रेंड की जरूरत नही थी। बार बार मेरे आंखों में वो दृश्य सामने आता जिसमे बच्चे के हाथ मे “मेरा बाप चोर है” लिख देते हैं। क्या कोई हमारे बेटे के भी हाथों में भी ऐसा कुछ लिख देगा। इन्ही सब सोंच के बीच मैं पागल होता जा रहा था।
मैं अब हार चुका था और इन सब झंझटों से कहीं दूर चले जाना चाहता था। कायर की तरह बिना किसी को बताये उसी दिन में अपने गांव के लिए रवाना हो गया।
गाँव मे मुझे अब लगभग एक महीना हो गया था
घर वालों के भी सवालों को टाल टाल के मैं थक गया था। आखिर उन्हें कैसे बताता की उनका बेटा एक लड़की को प्रेग्नेंट कर चुका है या कॉलेज में चोरी करते पकड़ा गया है। इन सब के बीच पिताजी की तबियत लगातार खराब होता जा रहा था और उनका देखभाल करने के लिए भी मेरी जरूरत थी।
तब उसकी चिठ्ठी आई और मेरा प्यार से भरोसा ही उठ गया
हेलो रवि
बड़ी मुश्किल से तुम्हारे गांव का एड्रेस मिला और तुम्हे ये खत लिखने की हिम्मत जुटा पायी हूँ।
हो सके तो मुझे माफ़ कर देना तुम्हारी इन सारी परेशानियों की वजह मैं हूँ। हमारे बीच गुजरा हर वो लम्हा हमारा था और मैंने तुम्हें दिलो जान से चाहा है। हमारे बीच जो कुछ भी हुआ वो सब सच और हकीकत है सिवाए इस बात के कि मैं माँ बनने जा रही हूँ। मैंने हमेशा तुमसे सच्चा प्यार किया पर मेरी कुछ मजबूरी थी। दीदी को ड्रग्स की लत है और वो हमारे बीच गुजरे उन रातों के बारे में जान गयी थी। बिस्तर में लगे दागों को मैं उससे छुपा नही पाई। एजुकेशनल टूर में दीदी ने बहुत सारा ड्रग्स लिया और उसके लिए 25 हज़ार का इंतज़ाम कर के पैसे देने थे नही तो वो लोग दीदी को जान से मार देते। दिदी बार बार हमारे बारे में घर वालों को बता देने की धमकी देती थी इएलिये मुझे उनके इस प्लान में साथ देना पड़ा और प्रेगनेंसी का बहाना करना पड़ा ताकि 25 हज़ार का जल्दी से जल्दी इन्तेज़ाम हो जाये। मैंने दीदी को बार बार समझाया कि ये तुम्हारे लिए मुश्किल होगा पर वो नही मानी।
उम्मीद है तुम मुझे माफ़ कर के वापस आ जाओगे।
तुम्हारी तनुजा
10 साल हो गये पर मैं वापस नही गया
वर्तमान । पिताजी गुजर चुके हैं और माँ का मेरे सिवा यहाँ कोई नही है। एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हूँ और सच बताऊ तो आज दस साल बाद भी मैं 25 हज़ार नही जुटा पाया।
तनुजा मेरी पहला और आखिरी प्यार थी। पिताजी के गुजर जाने के बाद आज मेरी माँ 55 के उम्र में ही विधवा साड़ी में 70 की लगती है। बार बार मुझे शादी कर लेनी की जिद्द करती है पर इतना कुछ देखने के बाद अब मेरा प्यार में यकीन नही रहा।














