क्या आपने कभी सोचा है कि सती प्रथा क्या हमेशा से हमारे सनातन धर्म का हिस्सा रही है या नहीं… क्या है इसके पीछे का सच…
असल में ऐसा कहा जाता है कि हमारे धर्म में सती प्रथा कभी थी ही नहीं। बीच में कुछ दुष्ट लोगों ने अपनी मनमानी के लिए ये प्रथा शुरू करी जरुर थी लेकिन सती प्रथा सनातन के हिसाब से थी नहीं कभी क्योंकि अगर ऐसा होता तो दशरथ जी की मौत के बाद उनकी तीनों रानियों क्यों नहीं उनकी चिता में बैठ कर सती हो गई…
वहीं जब पांडु जी की मृत्यु हो गई थी तब उनकी रानी माद्री ने अपनी मर्जी से अपना देह त्यागा था… उनके मन में पति के बिना जीने की इच्छा नहीं थी… वो किसी दबाव में आकर ऐसा कदम नहीं उठाई थीं… वहीं दूसरी तरफ कुंती सती नहीं हुईं…. अगर ये प्रथा होती तो क्या माता कुंती को देह त्याग न करना पड़ता….
तो इन सब उदाहरणों से पता चलता है कि हमारे धर्म में ये कुप्रथा कभी थी ही नहीं… हां ऐसा जरूर थी की कोई अपनी इच्छा सो पती के मरने के बाद देहत्यागना चाहे तो वो त्याग सकता था…
जैसे रावण के बेटे मेघनाथ की मौत के बाद उसकी पत्नी सुलोचना सती हो गई उसे किसी ने पकड़के आग में डाला नहीं था… ये कदम उसने अपनी मर्जी से उठाया था…
सती प्रथा फिर बाद में क्या थोप दिया गया की नहीं अगर पत्नी पतिव्रता हो या नहीं हो कैसे भी हो तुम्हें पति के साथ जलना पड़ेगा। वो तैयार नहीं है तब भी हाथ पांव बांध के लोग जलती चिता में डाल दिया करते थे। ये पूरी तरह से गलत था। बता दें, ये कुछ मूर्खों ने शुरू किया था।
साफ शब्दों में कहा जाए तो कुछ लोगों ने ये सती प्रथा पूरी में लोगों पर थोप दी थी… फिर आगे चलकर इसे राजा राममोहन राय और कई महापुरुषों ने इसे बंद किया क्योंकि थोपी हुई परंपरा ज्यादा दिन तक नहीं चल पाती है…
वहीं दोस्तों एक प्रथा ऐसी भी है जो हमारे धर्म की बताई जाती है… घुंघट प्रथा…. सवाल ये उठता है कि ये कितनी सही है…
असल में हमारे सनातन धर्म की मानें तो घूंघट की परंपरा बुरी नहीं है। ये परंपरा एक पर्दा है। जैसे अगर कोई स्त्री किसी पराए पुरुष से बात कर रही है तो ये पर्दा, एक मर्यादा को दर्शाता है। और इसी मर्यादा में रहना हमारे धर्म में बहुत अच्छा माना गया है।
अब मान लीजिए हम भोजन करने बैठे हैं। तो हमें इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी जगह भोजन करें जहाँ सबकी दृष्टि ना पड़े। अब हम घर के द्वार पर बाहर निकलकर थाली लगाकर बैठे… औऱ सब लोग निकल रहे हैं, वहाँ भोजन करें तो क्या ये शोभा देगा… बिल्कुल भी नहीं… ये अमर्यादित हो गया….
इसके साथ ही आपको बता दें कि पति पत्नी आपस में बात करें, हँसी मजाक करे। एक दूसरे को प्रेम करें… पर ये भी पर्दे के अंदर ही अच्छा लगता है। पर्दे के बाहर कोई करें तो ये अशलील माना जाएगा, अमर्यादित माना जाएगा। उसी प्रकार हमारे शास्त्रों में मर्यादा बनी है की स्त्री अपने जेठ को मुँह नहीं दिखाती, पर्दे में रहती है, ये सिर्फ जेठ का आदर हैं… ठीक उसी तरह जिस तरह घर की बहु अपने ससुर के सामने भी घुंधट में रहती है….
घूंघट कोई बुरी चीज नहीं है और ऐसा भी नहीं की लंबा सा घूंघल लेने को कहा जाता है…. आपको बस सम्मान जताते हुए हल्का सा पल्ला अपने सिर पर रखना है….
कई बार ऐसा भी हुआ है कि घुंघट में कई स्त्रियों को बड़ा कष्ट भी होता है। लेकिन अगर आप इस बात को फॉलो नहीं करेंगे तो ये आपके ही संस्कारों और धर्म के प्रति सम्मान को दर्शाता है….
इसी लिए कहा जाता है कि अगर आपक भी अपने धर्म को लेकर कट्टरवादी बनना चाहते हैं तो सिर्फ मन में ही सोचने से कुछ नहीं होता है इसके लिए आपको वो कदम भी उठाने होंगे जो हमारे धर्म में बताए गए हैं….
पर आज के मॉडर्न जमाने में लोग इन्हें बस ढकोसले मानते हैं…. शायद सच्चाई से रुबरु होना इन जैसे लोगों को आता ही नहीं और अपने धर्म के प्रति इन जैसे लोगों के अंदर सम्मान भी नहीं होता है।