सौंदर्य प्रसाधन की तमाम आधुनिक सामग्री की मौजूदगी के बीच जैसे सिंदूर की अहमियत आज भी बनी हुई है, वैसे ही सिंहोरा की भी। दरअसल सिंहोरा केवल सिंदूर रखने का काष्ठ पात्र ही नहीं बल्कि हर सुहागिन का सौभाग्य भी है। डोली चढऩे से लेकर अर्थी उठने तक सुहागिनों का साथ निभाने की अपनी आस्थापरक अहमियत की वजह से ही आधुनिकता की दौड़ में भी वह कभी पीछे नहीं छूटा।
वक्त के साथ सिंहोरा के परंपरागत स्वरूप में थोड़ा बदलाव जरूर हुआ लेकिन उसकी मान्यता ज्यों कि त्यों बनी है। इसे लेकर किसी भी संदेह को गोरखपुर के पांडेयहाता स्थित सिंहोरा बाजार में दूर किया जा सकता है। वह बाजार, जो जिले या प्रदेश ही नहीं बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्यों की मांगलिक जरूरत को भी पूरा करता है। गोरखपुर के बने सिंहोरा की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आज भी 50 परिवारों के 200 कारीगरों की रोजी-रोटी इसी से चलती है।
देश भर में है गोरखपुर के इस बाजार की अहमियत
गोरखपुर के पांडेयहाता की बात हो और सिंहोरा की चर्चा न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। ऐसा हो भी क्यों न, बाजार से सिंहोरा का नाम अनिवार्य रूप से दो-चार वर्षों से नहीं बल्कि सौ से अधिक वर्षों से जुड़ा है। सिंहोरा गढ़ते और सजाते कारीगर और उससे सजी दुकानों को पांडेयहाता का प्रतीक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सुहाग के प्रतीक के प्रति कारीगरों और दुकानदारों की प्रतिबद्धता ने गोरखपुर के इस बाजार की अहमियत को देश भर में बनाए रखा है।
मान्यता और आस्था का पूरा ख्याल
तीन पीढ़ी से सिंहोरा बना रहे कारीगर विनोद कुमार सिंह बताते हैं कि आधुनिकता और परंपरा के संतुलन ने गोरखपुर के सिंहोरा को लंबे समय तक इस बाजार में कायम रखा है। यहां के बने सिंहोरा में मान्यता और आस्था का पूरा ख्याल रखा जाता है। समय के साथ इसके निर्माण कुछ मशीन की भूमिका जरूर बढ़ी है लेकिन जो हिस्सा आस्था से जुड़ा है, उसके लिए आज भी हाथ का ही इस्तेमाल किया जाता है। सुहाग के प्रतीक चिन्ह स्वास्तिक, ओम, शुभ लाभ, चुनरी, कमल का फूल आदि को सिंहोरा पर हाथ से उकेरा जाता है।
विदेशों तक जाता है गोरखपुर का सिंहोरा
दुकानदारों की माने तो गोरखपुर के सिंहोरा की डिमांड दुनिया भर में बसे भारतीयों के बीच है। कई बार लोग यह कहकर भी सिंहोरा खरीदते हैं कि उन्हें उसे विदेश भेजना है। अमेरिका, ब्रिटेन, त्रिनिदाद, मारिशस, सिंगापुर, बैंकाक जैसे देशों में, जहां बड़ी संख्या में भारतीय बसे हुए हैं, वहां तो हर लग्न में यहां का सिंहोरा जाता है। नेपाल की मांग तो पूरी तरह से गोरखपुर से पूरी की जाती है।
आम की लकड़ी से सहज उपलब्धता बनी वजह
गोरखपुर में सिंहोरा बनाए जाने की शुरुआत की वजह को लेकर जब कारीगर विनोद से चर्चा हुई तो उन्होंने इसका कारण आम की लकड़ी की सहज उपलब्धता बताया।
चूंकि आम की लकड़ी आनुष्ठानिक मान्यता है, ऐसे में सिंहोरा का निर्माण उसी लकड़ी से किया जाता है। इसे लेकर सिंहोरा निर्माण में कोई समझौता नहीं किया जाता।
सिंहोरा की आस्था में रमे हैं दुकानदार
सिंहोरा बेचना हर किसी के बस की बात नहीं। हम लोग तीन पीढ़ी से इस व्यवसाय से जुड़े हैं, इसलिए इसे बेचने के रीति-रिवाज से पूरी तरह वाकिफ हैं। – दुर्गा प्रसाद
सिंहोरा की बिक्री का आस्था से जुड़ा अपना सिद्धांत होता है। इसमें खरीदार की आस्थापरक भावनाओं का ख्याल भी दुकानदार को रखना होता है। – दुर्गेश कुमार
खरीदार की आंख देखकर भांप जाते हैं कि उसे कैसा सिंहोरा चाहिए। खरीदार को किसी तरह की कोई शिकायत का मौका न मिले, इसका हमेशा ख्याल रखते हैं। – सद्दाम
सिंहोरा की खरीद और बिक्री की अपनी मान्यताएं है। इस बात का ख्याल हमें हमेशा रखना होता है। लग्न के दौरान हमें भी हमेशा मांगलिक माहौल में रहना होता है। – जयप्रकाश