आज किस्मत अच्छी है. मगर ये कब रूठ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. आप यकीन नहीं मानेंगे मगर ये किस्मत कब और कहा लाकर खड़ा कर देगी इसका अंदाजा लगा पाना उतना ही मुश्किल है, जितना एक फूल को पैरों तले मसलकर उससे दोबारा खुशबू की उम्मीद करना. ऐसी ही एक कहानी है हंसी प्रहरी की. ये वही हंसी प्रहरी हैं, जो किसी दौर में छात्रसंघ चुनाव और विधानसभा चुनाव लड़ चुकीं हैं. ये अपने छात्र जीवन में कुशल वक्ता रह चुकी हैं मगर नियति का खेल तो देखिए. ससुराल की कलह से तंग आकर घर की चौखट के बाहर कदम रखने वाली एक महिला को कदम-दर-कदम कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ रहा है. ये महिला इन दिनों हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांगकर अपना पेट पालने को मजबूर हैं.
अगर हंसी के छात्र जीवन को देखें, तो आप हैरान रह जाएंगे और कहानियां खतम नहीं होंगी. इन्होंने ना केवल अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की. बल्की 1998-99 में उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय के छात्र संघ की वाइस प्रेसिडेंट बनकर खूब सुर्खियां बटोरी थीं. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में सोमेश्वर सीट से उन्होंने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था. इन सब के बीच इस महिला ने इन हालातों से इस कदर गुजरने की शायद ही कभी कल्पना की होगी.
बकौल हंसी, ससुराल की कलह से परेशान होकर 2008 में वो लखनऊ से हरिद्वार चली आई. यहां शारीरिक रूप से कमज़ोर होने के कारण वो नौकरी नहीं कर पाई और रेलवे स्टेशन, बस अड्डे जैसी जगह पर भीख मांगने लगी. हां, मगर इनके हौसले को सलाम है, जो इतने बुरे हालातों का सामना करने के बाद भी हार मानने को तैयार नहीं हैं और लंबी उड़ान भरने की जो कसर खुद के साथ रह गई वो अब अपने बेटे के लिए पूरी करने में जुट गई हैं. हंसी हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांगते हुए अपने बेटे को अफसर बनाने के सपने देखती हैं.
इनसब के बीच अल्मोड़ा के रणखिला गांव की रहने वाली हंसी के लिए सुकून वाली बात ये है, कि मीडिया की नजरों में आने के बाद कई हाथ उसकी मदद को आगे आए हैं. जिसके बाद इस संबंध में भेल स्थित समाज कल्याण आवास में महिला को कमरा उपलब्ध कराए जाने की खबर है. अब उम्मीद यही है की इन हालातों के बाद हंसी का जीवन हँसी और खुशी के साथ गुजरे. साथ ही अपने बेटे के लिए जो ख्वाब उन्होंने बुने हैं वो जल्द ही जरूर पूरे हो.