ये खबर महाराष्ट्र के नागपुर से है। गोरेवाड़ा के साहेबराव नामक बाघ को शनिवार की सुबह बेहोश कर नकली टांग लगाई गई। लेकिन बाघ के होश में आते ही उसने शरीर से नकली टांग को अलग कर दिया। जिससे वन विभाग का मिशन साहेबराव फेल हो गया। हालांकि बाघ को वर्षों से होनेवाले दर्द से जरूर छुटकारा मिला है। आनेवाले समय में सबकुछ ठीक रहने पर फिर से बाघ को टांग लगाने का प्रयास कर सफलता हासिल करने का विश्वास डॉ. एस. बाबुलकर ने दिखाया है। ऑपरेशन के बाद दोपहर वन विभाग मुख्यालय में पत्रपरिषद में उन्होंने यह जानकारी दी। इस वक्त बाघ को नकली टांग लगाने का दुनिया का पहला प्रयोग फेल होने पर उन्होंने काफी अफसोस भी जताया है।
कौन है साहेबराव
साहेबराव एक नर बाघ है। वर्ष 2012 में वह चंद्रपुर के जंगल में अपने भाई के साथ शिकारियों के जाल में फंसा था। लोहे का ट्रैप रहने से दोनों शावक बुरी तरह से जख्मी हुए थे। वन विभाग की इन पर नजर पड़ने के बाद रेस्कयू किया गया लेकिन एक शावक बच नहीं पाया था। वही उपरोक्त बाघ के एक पैर की तीन उंगलियां कट चुकी थी। हालांकि बाघ की जान बचाने में वन विभाग को सफलता मिली थी। कुछ महीनों के बाद इसे महाराजबाग में लाया गया था। दिखने में लंबा-चौड़ा व शक्तिशाली दिखनेवाला यह बाघ लंगड़ाकर चलता था। उसे पैर का दर्द भी रहता था। जिससे चलते वक्त वह पीड़ा महसूस करता था।
वर्ष 2015 में इसे गोरेवाड़ा के रेस्कयू सेंटर में शिफ्ट किया गया। जून 2018 में डॉ. एस. बाबुलकर का उस पर ध्यान गया। बाघ की पीड़ा देख उन्होंने सारी बात समझी। बाघ को दत्तक लिया। वहीं उसे दर्द से छुटकारा देने का निर्णय लिया। इस बीच उन्होंने काफी अभ्यास कर बाघ को नकली टांग लगाकर उसे न केवल दर्द से छुटकारा देने का मन बनाया बल्कि उसे चलने में होनेवाली दिक्कतों को भी दूर करने के बारे में सोचा जिसे लेकर उपरोक्त ऑपरेशन को अंजाम दिया गया।
तीन चरणों में हुआ इलाज
साहेबराव बाघ को चलते वक्त तीनों पैरों की तुलना साढ़े तीन इंच का फर्क पड़ने से वह लंगड़ाकर चलता था। उसे दर्द हमेशा रहता था, जिसके कारण वह रोता भी था। ऐेसे में उसका तीन चरणों में इलाज किया गया। पहली प्रक्रिया गत वर्ष की गई। जिसमें बाघ के सारे टेस्ट आदि किये गये। दूसरी प्रक्रिया अक्तूबर 2019 में की गई। जिसमें बाघ को दर्द से मुक्ति मिल गई थी। तीसरी प्रक्रिया 18 जनवरी 2020 को ऑपरेशन कर की गई।
कैसे निकली टांग
सुबह 8 बजे तज्ञ चिकित्सकों के साथ टीम गोरेवाड़ा पहुंची थी। जिसके बाद एनेस्थेसिया देकर बाघ को बेहोश किया गया। 11 बजे ऑपरेशन शुरू किया गया। लगभग एक घंटे के बाद बाघ को नकली टांग लगाकर छोड़ा गया। लेकिन बाघ धीरे-धीरे होश में आने लगा। वह अभी पूरी तरह से होश में भी नहीं आया था। उसे एहसास हुआ कि, उसके पैरों में इसके अंग के अलावा कोई अन्य चीज जोड़ी गई है। ऐसे में उसने अपने शरीर को संकुचन कर एक ही पल में नकली टांग को अलग कर दिया। नकली टांग को चबाने से लेकर पटकने पर टूटे ना आदि बारे में एहतियात बरता गया था। इस तरह बाघ शरीर से नकली टांग निकालकर फेंक देना इस बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था।