
- आका की गिरफ्तारी के बाद कंपनियों के शटर डाउन
- भाई-भतीजी के साथ माली और ड्राइवर भी डायरेक्टर
- शहर के तमाम सर्ऱाफ और बिल्डर्स के साथ गठजोड़ था
- 20 फीसदी कमीशन पर काली कमाई को व्हाइट करते थे
कानपुर। अखिलेश दुबे सिंडिकेट की कमर तोड़ने में जुटी खाकी वर्दी को साकेत दरबार की 16 बोगस कंपनियों के पुख्ता साक्ष्य हासिल हुए हैं। कागजों पर आबाद कंपनियों के जरिए शहर के तमाम ज्वैलर्स और रियल इस्टेट कारोबारियों का काला धन 20 फीसदी कमीशन पर व्हाइट-मनी में बदला जाता था। एसआईटी और लोकल इंटेलीजेंस की पड़ताल में सामने आया है कि, ज्यादातर कंपनियों में परिवार के करीबी सदस्यों के साथ घर-बंगले की जिम्मेदारी संभालने वाले नौकर, माली और ड्राइवर भी डायरेक्टर थे। पीएफ और अन्य झमेलों से बचने के लिए किसी भी कागजी कंपनी में दस से ज्यादा कर्मचारी नहीं दिखाए गए थे। ज्यादातर कामकाज आउटसोर्स के जरिए दिखाया जाता था। अखिलेश दुबे की गिरफ्तारी के बाद ज्यादातर कंपनियों के शटर डाउन कर दिये गये हैं। कंपनियों के रजिस्टर्ड पते पर मौका-मुआयना के दरमियान, कुछ दिन पहले बोर्ड-बैनर उतरने की जानकारी हुई। अब कंपनी रजिस्ट्रार आफिस तथा जीएसटी दफ्तर के जरिए अहम जानकारी जुटाने की कवायद है।
बोगस कंपनियों में दस से ज्यादा कर्मचारी नहीं
पुख्ता सूत्रों के मुताबिक, एसआईटी और लोकल इंटेलीजेंस की पड़ताल में सामने आया है कि, अखिलेश दुबे ने परिवार के सदस्यों का डायरेक्टर बनाकर आठ बोगस कंपनियां बनाई थीं, जबकि आठ कंपनियों में नौकर-चाकर को निदेशक बनाया गया था। कंपनी रजिस्ट्रार आफिस से प्राप्त दस्तावेजों में सभी कंपनियां शहर के अलग-अलग पतों पर रजिस्टर्ड थीं, लेकिन किसी भी कंपनी में दस से ज्यादा कर्मचारी नियुक्त नहीं दिखाई गए थे। जानकारों के मुताबिक, 10 से ज्यादा कर्मचारी नियुक्त करने पर सैलरी और फंड आदि के लेखा-जोखा का झंझट होता है, इसी कारण बोगस कंपनियों में ज्यादातर जिम्मेदारी आउटसोर्स के हवाले दिखाई जाती है। चर्चा है कि, कुछेक कंपनियों में अखिलेश दुबे के भाई डायरेक्टर हैं, जबकि कुछेक में भतीजी। सूत्रों के मुताबिक, कुछेक बोगस कंपनियों में दरबार के करीबी पिता-पुत्र के साथ माली और ड्राइवर भी निदेशक हैं।
बड़े सर्ऱाफ और बिल्डर्स की काली कमाई खपाई
सूत्रों के मुताबिक, एसआईटी की पड़ताल में बोगस कंपनियों के जरिए काली कमाई को व्हाइट मनी में बदलने का खेल काफी वक्त से जारी था। बोगस कंपनियों में सिर्फ कागजों में करोड़ों की ट्रेडिंग होती थी। इसी फर्जीवाड़े के जरिए काली कमाई को व्हाइट करने का खेल होता था। प्रारंभिक तफ्तीश में बिरहाना रोड के पांच बड़े ज्वैलर्स के साथ-साथ रियल इस्टेट के अनमोल रतन ने बड़े पैमाने पर काली कमाई को कमीशन देकर व्हाइट मनी में बदलवाया है। दावा है कि, साकेत दरबार की बोगस कंपनियां 20 फीसदी कमीशन के एवज में ब्लैक एंड व्हाइट का काम करती थीं। लोकल इंटेलीजेंस यूनिट ने बोगस कंपनियों से लेन-देन करने वाले कारोबारियों की शिनाख्त के लिए जीएसटी दफ्तर से दस्तावेज मांगे है।
बोर्ड-बैनर नदारद, रजिस्ट्रेशन सरेंडर
बोगस कंपनियों की खबर तनिक देर से हुई। नतीजे में साकेत दरबार के सिंडिकेट ने आनन-फानन में जीएसटी रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ कंपनी रजिस्ट्रार आफिस में पंजीकरण को रद्द करा दिया है। लोकल इंटेलीजेंस टीम मौका-मुआयना करने गई तो कंपनियों के रजिस्टर्ड पते पर सन्नाटा पसरा था। आसपास पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि, कुछ दिन पहले बोर्ड-बैनर हटाकर परिसर खाली कर दिया गया है।