नया संकट : वैज्ञानिकों का अमेरिका से मोहभंग…इतिहास में पहली बार 75% देश छोड़ने को तैयार

-ट्रंप शासन की गलत नीतियों के कारण ऐसा हो रहा

वॉशिंगटन । अमेरिका दशकों तक वैश्विक वैज्ञानिक प्रतिभा का स्वर्ग रहा है। लेकिन ट्रंप शासन में अब यह अपनी चमक खो रहा है। 80 वर्षों में पहली बार देश एक इसतरह के ‘ब्रेन ड्रेन’ का सामना कर रहा है। इससे न सिर्फ उसकी वैश्विक हैसियत को चुनौती मिल रही है, बल्कि इनोवेशन के इंजन को भी झटका लग रहा है। हाल ही में हुए एक सर्वे में खुलासा हुआ कि 75 प्रतिशत वैज्ञानिक अमेरिका छोड़कर यूरोप और एशिया में नई जमीन तलाश रहे हैं, या पलायन कर चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कठोर नीतियां जैसे रिसर्च फंडिंग में कटौती, प्रवासी छात्रों पर रोक और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमले ब्रेन ड्रेन के पीछे की बड़ी वजहें ​हैं।

ट्रम्प प्रशासन ने नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के ग्रांट्स में 2026 के लिए 40 प्रतिशत की कटौती की है। इसके अलावा नेशनल साइंस फाउंडेशन से 13 हजार करोड़ रुपए के अनुदान रद्द करने की बात कही है। फंडिंग में कटौती से वैज्ञानिकों को प्रोजेक्ट्स बंद होने का डर सता रहा है। 2015 तक जहां अमेरिका में हर वर्ष 60 हजार से ज्यादा विदेशी शोधकर्ता आते थे। वहीं, 2024 में यह संख्या घटकर 23,000 पर आ गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक इस साल यह आंकड़ा और घटकर 15 हजार से भी कम होने वाला है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), क्लाइमेट साइंस, जेनेटिक्स व न्यूरोसाइंस जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे वैज्ञानिकों को अब दुनिया भर के देश अपने यहां आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के ऑफर दे रहे हैं। इसने वैश्विक स्तर पर एक नई प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है। यूरोपीय संघ ने तीन वर्षों में पांच हजार करोड़ यूरो का निवेश करने की घोषणा की है ताकि यूरोप को शोधकर्ताओं के लिए आकर्षक बनाया जा सके। फ्रांस के मार्सेल विवि ने वैज्ञानिकों को शरण देने को सेफ प्लेस फॉर साइंस कार्यक्रम शुरू किया है। कनाडा ने वैज्ञानिकों को आकर्षित करने को 200 करोड़ का निवेश किया है।

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