टोक्यों (ईएमएस)। बुलिंग पीड़ित बच्चों में अब मनोविकृति की शुरुआत हो रही है। इससे लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है। जापान के शोधकर्ताओं ने 500 से ज्यादा किशोरों पर अध्ययन कर खुलासा किया है कि पीड़ित किशोर एक ऐसी मानसिक स्थिति का सामना करते हैं जो वास्तविकता के संपर्क से बाहर होता है। शोधकर्ताओं ने पीड़ित किशोरों की भावनाओं को नियंत्रित करने में अहम पूर्वकाल सिंगुलेट कॉर्टेक्स (एसीसी) में न्यूरोट्रांसमीटर ग्लूटामेट का निम्न स्तर देखा है। बुलिंग पीड़ित किशोरों में मनोविकृति की शुरुआत हो रही है जिसके बारे में चिकित्सा जांच से भी पता नहीं लगाया जा सकता। इसके पीछे मुख्य कारण विकृति के वह लक्षण हैं जो काफी प्रारंभिक हैं और किसी भी चिकित्सक के लिए इन्हें पहचान कर उपचार या काउंसलिंग देना संभव भी नहीं है।
एक चिकित्सा अध्ययन में यह सच भी सामने आया है कि पीड़ित किशोर एक ऐसी मानसिक स्थिति का सामना करते हैं जो वास्तविकता के संपर्क से बाहर होता है। आमतौर पर ग्लूटामेट सबसे प्रचुर न्यूरो ट्रांसमीटर होता है जो मूड को नियंत्रित करने सहित व्यापक कार्यों में शामिल रहता है। दरअसल बदमाशी या बुलिंग का मतलब किसी कमजोर व्यक्ति पर धौंस जमाना है। यह एक आम तरह की आक्रामकता है, जो 12 से 18 साल के बीच के 22 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करती है।
शोध में बताया गया कि किसी को ताना देना या चिढ़ाना, लोगों को किसी के बारे में बुरा महसूस कराने के लिए गपशप करना, थूकना, धकेलना, चीजें तोड़ना यह बुलिंग के तरीके हैं जो पहले मस्ती-मजाक, धक्का-मुक्की और टांग खिंचाई तक ही सीमित थी, लेकिन अब यह भावनात्मक, यौन उत्पीड़न और यहां तक कि साइबर बुलिंग बहुत ज्यादा बढ़ गई है। शोधकर्ताओं ने इन किशोरों में एक प्रश्नावली का भी उपयोग किया और उनके अनुभवों का आकलन करने के लिए औपचारिक मनोरोग माप विधियों पर काम किया।