
वक्फ (संशोधन) कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतरिम फैसला सुनाया। कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कहा कि कानून पर केवल दुर्लभतम मामलों में ही रोक लगाई जा सकती है। हालांकि, कुछ धाराओं पर रोक लगाई है।
फैसले की अहम बातें
- बोर्ड के कुल 11 सदस्यों में से 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।
- राज्यों के बोर्ड में 3 से ज्यादा गैर मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।
- कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसके अनुसार वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था। यह प्रावधान तब तक के लिए स्थगित रहेगा जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए नियम नहीं बना लेतीं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।
- कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम के उस प्रावधान पर रोक लगा दी है, जिसके तहत सरकार की तरफ से निर्धारित अधिकारी को यह तय करने का अधिकार दिया गया था कि वक्फ संपत्ति ने सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण किया है या नहीं।
इससे पहले 22 मई को लगातार तीन दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने कानून को मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बताया और अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने कानून के पक्ष में दलीलें रखी थीं।
बहस सरकार की उस दलील के आसपास रही थी, जिसमें कहा गया था कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इसलिए यह मौलिक अधिकार नहीं है।
वक्फ को इस्लाम से अलग एक परोपकारी दान के रूप में देखा जाए या इसे धर्म का अभिन्न हिस्सा माना जाए। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था, ‘ परलोक के लिए…. वक्फ ईश्वर को समर्पण है। अन्य धर्मों के विपरीत, वक्फ ईश्वर के लिए दान है।’
CJI बोले थे- धार्मिक दान केवल इस्लाम तक सीमित नहीं
CJI बीआर गवई ने कहा था, धार्मिक दान केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है। हिंदू धर्म में भी ‘मोक्ष’ की अवधारणा है। दान अन्य धर्मों का भी मूल सिद्धांत है। तभी जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने भी सहमति जताते हुए कहा, ‘ईसाई धर्म में भी स्वर्ग की चाह होती है।’
सुप्रीम कोर्ट में 5 याचिकाओं पर सुनवाई हुई
वक्फ (संशोधन) कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने 5 मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई की। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका शामिल थी। CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई की। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन पैरवी कर रहे थे।
लगातार 3 दिन चली सुनवाई में क्या कुछ हुआ…
- 22 मई: SG तुषार मेहता ने सेक्शन 3E का जिक्र किया था: केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता ने सेक्शन 3E पर बात की थी। कहा था कि सेक्शन 3E अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली भूमि पर वक्फ के निर्माण पर रोक लगाता है। यह प्रोविजन अनुसूचित जनजाति के संरक्षण के लिए था। वहीं, कपिल सिब्बल ने कहा था कि नए कानून में ऐतिहासिक और संवैधानिक सिद्धांतों को दरकिनार कर दिया गया है। सरकार गैर-न्यायिक प्रक्रिया से वक्फ को हथियाना चाहती है।
- 20 मई: कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा- राहत के लिए मजबूत दलीलें लाइए: 20 की सुनवाई में बेंच ने कहा था कि मुस्लिम पक्ष को अंतरिम राहत पाने के लिए मामले को मजबूत और दलीलों को स्पष्ट करना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कोई संपत्ति ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के संरक्षण में है तो वह वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती।
- 21 मई: सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे दिन केंद्र सरकार की दलीलें सुनीं: दूसरे दिन की सुनवाई में CJI गवई की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने केंद्र सरकार की ओर से सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दीं। उन्होंने कहा, वक्फ बाय यूजर मौलिक अधिकार नहीं। यह विधायी नीति द्वारा 1954 में दिया गया था। संविधान के तहत इसे वापस लिया जा सकता है। सरकार ने यह अधिकार वापस ले लिया।
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 5 अप्रैल को वक्फ बिल कानून बना
केंद्र ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 को अप्रैल में अधिसूचित किया था। इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई थी। इस बिल को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे।
नए कानून को लेकर कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, सिविल राइट्स संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी अलग-अलग याचिका लगा चुके हैं।