भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से हो रही नशीले पदार्थों की तस्करी…कौन चला रहा है यह नेटवर्क?

नई दिल्ली । म्यांमार में अफीम की खेती के बढ़ते रुझान ने भारत के लिए एक गंभीर सुरक्षा चुनौती खड़ी कर दी है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार से अफीम और सिंथेटिक ड्रग्स की तस्करी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के माध्यम से हो रही है। यह रुझान केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है।

बता दें कि भारत और म्यांमार के बीच 1,643 किमी लंबी सीमा है, जो अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम से होकर गुजरती है। इसी सीमा का उपयोग तस्कर अफीम, हेरोइन, गांजा, और एम्फेटामाइन टाइप स्टिमुलेंट्स (एटीएस) जैसे नशीले पदार्थों की घुसपैठ के लिए करते हैं।

एनसीबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 2024 में ही भारी मात्रा में ड्रग्स जब्त किया गया है। मिजोरम से 849 किग्रा एटीएस, 742 किग्रा गांजा, 204.23 लीटर कोकीन, 134.30 किग्रा हेरोइन। त्रिपुरा से 29,530 किग्रा गांजा, 9.39 किग्रा कोकीन। असम से 26,217 किग्रा गांजा, 78 किग्रा एटीएस, 0.36 किग्रा कोकीन, 186.40 किग्रा हेरोइन जब्त किया गया। वहीं मणिपुर से 130 किग्रा गांजा, 49 किग्रा एटीएस, 22.32 किग्रा हेरोइन पकड़ा है। मेघालय से 5,439 किग्रा गांजा, 6.13 किग्रा हेरोइन और नागालैंड से 545 किग्रा गांजा, 1 किग्रा एटीएस, 16.56 किग्रा हेरोइन जब्त किया गया। वहीं अरुणाचल प्रदेश से 2,518 किग्रा गांजा, 3.65 किग्रा हेरोइन और सिक्किम से 2.48 किग्रा हेरोइन जब्त किया गया।

वहीं राष्ट्रीय स्तर पर जब्ती (2024) के अनुसार एटीएस 8,211 किग्रा और कोकीन 1,483.30 किग्रा पकड़ा गया। ड्रग्स की तस्करी अब केवल सीमाओं तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि नई दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे हवाई अड्डों पर भी भारी मात्रा में मेथाक्वालोन और मैन्ड्रैक्स जैसे प्रतिबंधित पदार्थ पकड़े जा रहे हैं।
एनसीबी और सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, आतंकवादी संगठन अब मादक पदार्थों की तस्करी को अपने वित्तपोषण का जरिया बना रहे हैं। वे तस्करों को सुरक्षित रास्ता प्रदान करते हैं और बदले में वित्तीय लाभ उठाते हैं। भारत में ड्रग्स तस्करी की समस्या अब सीमा पार अपराध से आगे बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बन चुकी है। पूर्वोत्तर राज्यों में तस्करी का नेटवर्क लगातार फैल रहा है, जिसे रोकने के लिए सुरक्षा एजेंसियों, सीमावर्ती राज्यों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की तत्काल आवश्यकता है। साथ ही, सामाजिक जागरूकता और स्थानीय स्तर पर पुनर्वास कार्यक्रमों को भी मजबूत करने की ज़रूरत है।

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