
ये किस्सा पकिस्तान की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बेनर्जी भुट्टो की किताब डॉटर ऑफ द ईस्ट (पूरब की बेटी) से लिया गया हैं. ये बात हैं साल 1971 में हुए भारत पाकिस्तान के युद्ध की. इस युद्ध में पाकिस्तान को भारत के आगे मजबूरन सरेंडर करना पड़ा था. इसके करीब 8 महीने बाद 2 जुलाई 1972 को भारत पाकिस्तान के मध्य शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. ऐसे में इस दौरान कौन कौन सी दिलचस्प घटनाएं घटी इसके बारे में बेनजीर भुट्टो ने अपनी किताब में बताया हैं. इस किताब में एक दिलचस्प कोड वर्ड ‘बेटा हुआ हैं’ का भी जिक्र हैं जिसके मायने हम आपको अंत में बताएंगे.

उस दौरान बेनर्जी भुट्टों के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. भारत से पाकिस्तान की हार के बाद वे शिमला समझौते के चलते इंडिया आए थे. यहाँ उनकी पहली बार मुलाकात भारत की उस समय की पीएम इंदिरा गांधी से हुई थी. उस दौरान जुल्फिकार ये बात अच्छे से जानते थे कि पाकिस्तान की सैन्य ताकत भारत के आगे नहीं टिक पाएगी इसलिए कश्मीर मुद्दे को शांति से हल करने में ही भलाई हैं. हालाँकि पाकिस्तान में उस समय पीएम से ज्यादा दूसरी ताकते ज्यादा पॉवर में थी जिसे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई शामिल हैं. ऐसे में उन्हें अपनी बात खुलकर रखने में इन लोगो से भी डर था. यदि जुल्फिकार इंडिया की सभी शर्ते मानकर समझौता कर लेते तो उनके विरोधी (पाकिस्तानी सेना) उनकी खटिया खाड़ी कर देते. दरअसल जुल्फिकार के पहले पकिस्तान में 14 साल तक पाकिस्तानी सेना का ही राज़ था. ऐसे में उनसे बगावत करने का मतलब था फिर से अपनी कुर्सी छोड़ देना.

इसलिए जुल्फिकार ने एक बीच का रास्ता खोजते हुए अपनी 84 सदस्यों की लंबी चौड़ी डेलिगेशन को लेकर शिमला आए थे. इतने सारे लोगो को लाने की वजह से उन्होंने भारत से माफ़ी भी मांगी थी. जुल्फिकार को लगता था कि यदि ये लोग इस समझौते की शर्तों से सहमत हो जाएँगे तो पाकिस्तान में भी सबकी अधिकतर सहमती हो ही जाएगी. इस समझौते की कमांड उस दौरान इंदिरा गांधी के प्रिंसिपल सेक्रटरी रहे परमेश्वर नारायण हसकर को दी गई थी. हसकर पाकिस्तान को इस समझौते के चलते घुटने टेकने पर मजबूर नहीं करना चाहता था क्योंकि वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो एक और युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं.

वैसे तो इस समझौते में भारत पाकिस्तान के बीच कई मुद्दों पर सहमती नहीं बन पाई लेकिन इनमे सबसे बड़ा मुद्दा कश्मीर का आकर अटक गया. भारत उस दौरान कश्मीर मुद्दे को लेकर आक्रामक नहीं था बल्कि संयम बरत रहा था. भारत की मांग थी कि जम्मू कश्मीर में बनी रेखा जो भारत पाकिस्तान को बंटती हैं उसे ‘सीजफायर लाइन’ नहीं बल्कि ‘नियंत्रण रेखा’ कहा जाए, पर पाकिस्तान इससे सहमत नहीं था. तब ऐसा लग रहा था मनो अब ये समझौता नहीं हो पाएगा लेकिन कहानी में ट्विस्ट था.

दरअसल 2 जुलाई को भारत का तीसरा समझौता ड्राफ्ट बन गया था जिसमे वो अपनी बात पर अदा रहा लेकिन पाकिस्तान की और से समझौता कर रहे प्रमुख अजीज ने कहा कि हम सारी शर्ते मानने को तैयार हैं लेकिन कश्मीर मुद्दे वाली नहीं. इस पर जुल्फिकार ने उन्हें समझाते हुए कहा था कि कह्स्मिर में यदि नियंत्रण रेखा बनती हैं तो बन जाने दो. इससे दोनों मुल्कों में शांति रहेगी और एक मुल्क के लोग दुसरे मुल्क में आ जा भी सकेंगे. हालाँकि इससे भी कोई ख़ास बात नहीं बनी थी और पाकिस्तानी टीम वापस जाने की तैयारी करने लगी थी. हर किसी को यही लग रहा था कि अब ये समझौता नहीं हो पाएगा. फिर अगले दिन 3 जुलाई को शाम 6 बजे जुल्फिकार ने इंदिरा गांधी के साथ बंद दरवाजे के पीछे एक मीटिंग की. इस मीटिंग में पता नहीं क्या बाते हुई कि ये समझौता दोनों पक्षों की और से मंजूर हो गया.
ये हैं ‘बेटा हुआ हैं’ कोड का मतलब
दरअसल इस समझौते के फाइनल हो जाने के बाद पाकिस्तान और भारत दोनों की धड़कने बढ़ गई थी. खासकर पाकिस्तान को ये चिंता थी कि कहीं इस समझौते की शर्ते उनकी मर्जी के खलाफ ना हो. ऐसे में पाकिस्तानी डेलिगेशन ने एक कोड वर्ड बनाया जिसमे यदि समझौता पाकिस्तान की शर्तों के खिलाफ जाता हैं तो ‘बेटी हुई हैं’ कोड होगा और यदि समझौता पाकिस्तान की मनमर्जी के मुताबिक होता हैं तो ‘बेटा हुआ हैं’ कोड होगा.
इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से पाकिस्तान इस समझौते के बाद सम्मान जनक शर्तों के साथ बाहर आया. इतना ही नहीं भारत ने उनके 93,000 बंदी सैनिकों को भी रिहा करने की हामी भर दी. जिस दौरान ‘बेटा हुआ हैं’ कोड का इस्तेमाल किया गया था.

ऐसा कहा जाता हैं कि यदि भारत उस दौरान ही पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दे पर सख्ती दिखता तो शायद आज ये दिन नहीं देखना पड़ता. उस दौरान जुल्फिकार और इंदिरा गांधी के बीच जो भी बाते हुई उनमे से कुछ मुंह जुबानी ही हुई. लिखित में नहीं हुई. जिसकी कीमत भारत को आज तक चुकानी पड़ रही हैं.