नई दिल्ली । माइग्रेन के प्रमुख कारणों में तनाव, हार्मोनल बदलाव, और अनियमित नींद शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या ज्यादातर युवतियों में अधिक पाई जाती है और इसके ट्रिगर फैक्टर में शोर, लगातार तनाव, और तेज ध्वनि का संपर्क प्रमुख हैं, जो सिरदर्द के अटैक को बढ़ा सकते हैं।
माइग्रेन एक गंभीर और पीड़ादायक सिरदर्द होता है, जो आमतौर पर सिर के एक हिस्से में महसूस होता है। यह दर्द टेम्पोरल या फ्रंटल साइड, यानी सिर के किसी खास हिस्से में केंद्रित होता है और पूरे सिर में नहीं फैलता। माइग्रेन अटैक के दौरान मरीज को संभालना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में इसे कैसे नियंत्रित किया जाए, इसके लिए डॉक्टर कई सुझाव देते हैं। उन्होंने कहा कि वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखना, उचित आहार लेना, और तनाव को कम करना माइग्रेन को रोकने के लिए आवश्यक है। कई बार लोग अधिक कार्यभार के चलते खाना-पीना छोड़ देते हैं या नींद पूरी नहीं कर पाते, जिससे माइग्रेन की संभावना बढ़ जाती है।
माइग्रेन के शुरुआती लक्षणों में सिर के एक हिस्से में दर्द और आंखों के पीछे दर्द महसूस होना शामिल है। यदि ऐसे लक्षण नजर आएं तो सबसे पहले आंखों की जांच करानी चाहिए, ताकि अन्य कारणों को दूर किया जा सके। इसके बाद इलेक्ट्रोलाइट संतुलन की जांच की जाती है। यदि सब कुछ सामान्य हो, तो यह माना जाता है कि मरीज को माइग्रेन का अटैक है। इसका इलाज केवल दवाओं से ही नहीं, बल्कि जीवनशैली में सुधार से भी संभव है। विशेषज्ञों ने बताया कि माइग्रेन के उपचार में नेप्रोक्सन और नैक्सडोम जैसी दवाएं प्रभावी हो सकती हैं, लेकिन इन्हें केवल डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए।
इसके साथ ही पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम भी माइग्रेन को नियंत्रित करने में मददगार होते हैं। उन्होंने बताया कि लगातार बैठे रहने से मस्तिष्क में सीएसएफ (सिरब्रोस्पाइनल तरल) का प्रवाह प्रभावित हो सकता है, जिससे सिरदर्द की संभावना बढ़ जाती है। तनाव और अधिक काम शरीर पर दीमक की तरह असर करते हैं, जिससे माइग्रेन, डायबिटीज, और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जीवनशैली में सुधार, जैसे लंबे समय तक एक ही स्थिति में न बैठना और स्क्रीन टाइम को कम करना, भी माइग्रेन को रोकने में सहायक हो सकता है।