आपने अक्सर सुना होगा दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं. जो ज़िन्दगी में मिली तरक्की से भी खुश नहीं होते और अच्छी खासी चल रही ज़िन्दगी में एकदम से कोई यू टर्न ले लेते हैं. अब बाद में उनकी मेहनत और किस्मत पर निर्भर होता है कि इससे या तो उनकी ज़िंदगी सुधर जाती है. या फिर पूरी तरह से बिगड़ जाती है. एक ऐसा ही वाकया हम आपके लिए आज लेकर आये हैं. जो आपको हैरान कर देगा. ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने 10 लाख रुपये प्रति वर्ष कमाने वाला बीटेक पास सीनियर इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर ‘ड्रैगन फ्रूट’ की बागवानी शुरु कर दी. जिससे आज वह प्रति वर्ष लाखों रुपये मुनाफा कमा रहे हैं. जंगला निवासी रमन सलारिया ने 4 कनाल में नॉर्थ अमेरिका के प्रसिद्ध फल ‘ड्रैगन फ्रूट’ का बाग तैयार किया है.
बता दें ड्रैगन फ्रूट स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के चलते काफी प्रसिद्ध है और इसकी देश-विदेश में काफी मांग है. इसकी कीमत की बात करें तो यह आम लोगों की पहुंचे से बाहर है, क्योंकि भारत में इसकी पैदावार काफी कम मात्रा में होती है.
तो इसी बीच अब इसकी पैदावार माझा क्षेत्र के पठानकोट में शुरू हो चुकी है. जहां पहली बार में पैदावार कई क्विंंटल हुई है. रमन ने बताया कि वह 15 वर्षों से जेके सीआरटी नाम के मुंबई-चाइना ज्वाइंट वैंचर बेस्ड कंपनी में बतौर सीनियर इंजीनियर काम कर रहा था. दिल्ली मेट्रो के कंस्ट्रक्शन का काम कर रही कंपनी उन्हें प्रति वर्ष 10 लाख रूपए की सैलरी देती थी.
रमन सलारिया ने बताया कि वह नौकरी तो इंजीनियरिंग की करते थे पर उनकी रूचि किसानी में थी. इस दौरान उनकी मुलाकात दिल्ली पूसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में काम कर रहे एक दोस्त से हुई. जिसके बाद दोस्त विजय शर्मा ने ड्रैगन फ्रूट के बारे उसे बताया. तो रमन ने इंटरनेट से इसके बारे में जानकारी ली. फिर दोस्त के साथ 2 बार गुजरात जाकर उसने ‘ड्रैगन फ्रूट’ के फार्म पर भी विजिट किया. इसके बाद किसान पिता भारत सिंह ने भी उनका साथ दिया.
रमन सलारिया अपने सफर के बार में बताते हैं कि उन्होंने गुजरात से पौधे की कटिंग खरीदी. पठानकोट आकर 4 कनाल में इस रोपा गया. एक साल में डेढ़ लाख का मुनाफा भी कमाया. सलारिया ने बताया कि ‘ड्रैगन फ्रूट’ का बीज या पौधा नहीं लगाया जा सकता. मार्च में इसकी रोपाई होती है. जुलाई में फूल फूटकर फलों में तब्दील होता है और अक्टूबर अंत या सितंबर के पहले हफ्ते तक इसके फल पक जाते हैं. यानी लगाने के आठ महीने में ही यह फल देता है. लेकिन पूरी तरह से तैयार होने में इसे तीन साल लगते हैं.
रमन के मुताबिक इस पौधे को पानी की बेहद कम जरूरत होती है. पंजाब के माझा जोन का वातावरण इसके लिए अनुकूल है. ज्यादा पानी से पौधा गल जाता है. अच्छी पैदावार को सिंचाई के लिए ‘ड्रिप इरिगेशन’ बढ़िया विकल्प है. सलारिया ने बताया कि 3 साल बाद पौधा अपनी पूरी क्षमता के साथ फल देता है
रमन सलारिया ने बताया कि आम दुकानों पर यह फल नहीं मिलता. बड़े कारपोरेट स्टोर पर ही यह उपलब्ध है. इसके प्रति फल की कीमत 4 से 500 रुपये है. जिसके चलते यह आम आदमी की पहुंच से बाहर है. वह पठानकोट में लोगों को 2 से 300 रुपये में बेच रहे हैं. इसकी अच्छी पैदावार होने पर और कम दाम में इसे बेचा जाएगा. इसका एक पौधा 3 साल में जवान हो जाता है. फिर उसकी कलम काटकर नया पौधा उगाया जा सकता है या फिर इसे बेचकर भी कमाई की जा सकती है.