वह ऋषि जिसने बचपन से नहीं देखी स्त्री, पिता ने रखा सबसे छिपाकर, जब पहली बार स्त्री से मिले तो..

हिंदू धर्म ग्रंथों में कई महान और तपस्वी ऋषि-मुनियों का जिक्र देखने को मिलता है। आज हम आपको एक ऐसे ऋषि से मिलाने जा रहे हैं जिन्हें बचपन से ही स्त्रियों से दूर रखा गया था। लेकिन एक दिन उनका सामना पहली बार सुंदर स्त्री से हो गया। फिर जो हुआ वह आप सोच भी नहीं सकते हैं। इस कहानी का जिक्र वाल्मीकि रामायण में भी पढ़ने को मिलता है।

वह ऋषि जिसने बचपन से नहीं देखी स्त्री

त्रेतायुग की बात है। यहां विभाण्डक नाम के एक महातपस्वी ऋषि हुआ करते थे। वे बेहद कठोर तपस्या करते थे। इसे देखकर देवताओं को डर लगने लगा। कहीं ये कोई ऐसा वैसा वरदान न मांग ले। ऐसे में इन्द्र ने उनकी तपस्या भंग करने स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी को भेजा। उर्वशी का सौन्दर्य देख विभाण्डक पिघल गए। उन्होंने तपस्या छोड़ सुंदरी संग मिलन किया जिससे ऋष्यश्रृंग (श्रृंगी ऋषि) का जन्म हुआ।

बेटे को पैदा करते ही उर्वशी स्वर्गलोक लौट गई। इससे ऋषि विभाण्डक का दिल टूट गया। फिर उन्होंने प्रण लिया कि वह अपने पुत्र पर कभी स्त्री का साया नहीं पड़ने देंगे। वे बेटे ऋष्यश्रृंग को घने जंगल में पालने लगे। बचपन से जवानी तक ऋष्यश्रृंग ने किसी स्त्री को नहीं देखा। उन्हें तो ये भी नहीं पता कि वह कैसी दिखती है। वह सोचते सिर्फ दुनिया में पुरुष ही होते हैं।

पहली बार स्त्री देखी तो हुआ यह

इस बीच अंगदेश में अकाल पड़ गया। इसके राजा रोमपाद को कुलगुरु ने सलाह दी कि आप अपने राज्य में ऋष्यश्रृंग को ले आएं। यह अकाल समाप्त हो जाएगा। राजा ने अपनी सबसे सुंदर देवदासी को ये काम दिया। देवदासी चोरी चुपके ऋष्यश्रृंग के पास चली गई। उसका रंग रूप देख ऋष्यश्रृंग पगला गए। वह जोश से भर उठे। उन्होंने देवदासी का दिल खोलकर स्वागत किया। देवदासी उन्हें अंगदेश ले गई जहां ऋष्यश्रृंग के कदम पड़ते ही भारी बारिश हो गई। इससे अकाल खत्म हो गया।

शाम को जब पिता विभाण्डक आए तो ऋष्यश्रृंग ने उन्हें पूरी कहानी बताई। इससे ऋषि विभाण्डक बहुत नाराज हुए। वे अंगदेश जाकर राजा रोमपाद को श्राप देने लगे। लेकिन राजा ने अपनी बेटी शांता का विवाह ऋष्यश्रृंग से कर उनका क्रोध शांत कर दिया। बता दें कि शांता अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्री थी। राजा रोमपाद उनके मित्र थे। उनसे उन्होंने शांता को गोद लिया था।

राजा दशरथ से है कनेक्शन

अयोध्या के राजा दशरथ के पास तीन रानियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकई थी। लेकिन फिर भी उन्हें कोई संतान नहीं हो रही थी। ऐसे में अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया। इस यागत को ऋष्यश्रृंग ने ही किया था। इसके बाद उन्हें चार बेटें श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न प्राप्त हुए।

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