जब भी दो भाइयो की जोड़ी की बात आती है तो सबसे पहले तो हम सबकी जुबान पर बस एक ही नाम आता है और वो नाम है भगवान् श्रीराम और लक्षमण का नाम।प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी के बारे में कई सारे बाते और घटनाएं आती है जो हमारे दिलो में उनके लिए सम्मान पैदा कर देती है लेकिन इस जोड़ी का अंत बड़ा ही दुखद है जिसके बारे में आपको मालूम जरुर होना चाहिए। ये तब की बात है जब भगवान् राम अपना वनवास पूरा करके लौट आये थे और जब वो अयोध्या से ही हर जगह का राजकाज संभालने लगे थे। सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था और लोगो के बीच उनकी एक अच्छी छवि बन चुकी थी।
ऐसे में एक दिन श्रीराम से कुछ वार्तालाप करने के लिए यम खुद आये तो दोनों बाते करने के लिए एक कुटिया में चले गये जहाँ पर बाहर लक्षमण तैनात रहे। उनसे कहा गया कि अन्दर किसी को भी आने ना दे और ये एक राजा का आदेश भी तो था। लक्षमण बाहर खड़े थे और तभी दुर्वासा ऋषि वहाँ आये और राम से मिलने के लिये अन्दर जाने लगे तभी अचानक से लक्षमण ने उन्हें रोक लिया तो गुस्से में दुर्वासा ऋषि ने अयोध्या को ही श्राप देने की चेतावनी दे डाली।
इस धर्मसंकट में फंसकर लक्षमण ने श्रीराम की यम से वार्ता में विघ्न डाल उन्हें सूचना दी और ऐसे में जब बात यहाँ तक आ गयी तो एक राजा के वचन के अनुसार उन्हें लक्षमण को दंड तो देना ही था लेकिन वो लक्ष्मण को कभी भी मृत्य दंड नही दे सकते थे। ऐसी स्थिति में दुर्वासा ऋषि ने उन्हें बताया कि अगर वो लक्ष्मण का त्याग कर दे तो ये मृत्यु के सामान ही होगा और इसलिए राम ने लक्षमण का त्याग कर दिया।
अब ऐसी स्थिति में लक्ष्मण दिन ब दिन व्यस्थित रहने लगे क्योंकि उनकी जान तो अपने बड़े भैया में ही बसी रहती थी और ऐसी स्थिति में लक्ष्मण ने पास की नदी सरयू में जलसमाधि ले ली और प्राण त्याग दिए। दो भाइयो के प्रेम की इस कहानी को अगर आज देश के बच्चो में फैलाया जाए तो वो लोग भी उन्ही की तरह बनेंगे लेकिन वो संस्कार तो मानो खो ही चुके है।