सत्ता की डगर कठिन : तेजस्वी यादव के सामने खड़ी हैं सियासत की सबसे कठिन चुनौतियाँ…कैसे पार लगाएंगे नैया

Tejashwi Yadav: बिहार की राजनीति का रंगमंच फिर सज चुका है. 2025 विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं, और इस पूरे सियासी ड्रामे के केंद्र में हैं 35 वर्षीय नेता तेजस्वी यादव, जो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वारिस और महागठबंधन के प्रमुख चेहरा है… लेकिन इस बार तेजस्वी के लिए राह उतनी आसान नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए (NDA) के साथ-साथ कई नई और पुरानी चुनौतियां उनके रास्ते में दीवार बनकर खड़ी हैं. 

1. ‘जन सुराज’ की चुनौती: प्रशांत किशोर का सियासी तूफान

बिहार के सियासी पंडितों की नज़र इस समय राघोपुर सीट पर टिकी है. यह वही सीट है, जिसने कभी लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की विरासत को संभाला, और अब तेजस्वी यादव की राजनीतिक पहचान बन चुकी है, लेकिन इस बार एक नया तूफान उठ चुका है- प्रशांत किशोर (PK), जो अब राजनीतिक रणनीतिकार से प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं. PK ने अपने ‘जन सुराज’ अभियान की शुरुआत राघोपुर से की है और जल्द ही वहीं से चुनाव लड़ने की संभावना जताई है. हालांकि उन्होंने अभी औपचारिक रूप से उम्मीदवार बनने का ऐलान नहीं किया है, लेकिन उनकी मौजूदगी ने तेजस्वी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. 

तेजस्वी ने राघोपुर से 2015 और 2020, दोनों में जीत दर्ज की थी. पिछली बार उन्होंने बीजेपी के सतीश कुमार (यादव उम्मीदवार) को 38,174 वोटों से हराया था. अगर इस बार भी बीजेपी सतीश कुमार को उतारती है, तो यादव वोटों में बंटवारा तय है . ऐसे में प्रशांत किशोर को ग़ैर-यादव वोटों का फायदा मिल सकता है. 

2- AIMIM का मुस्लिम वोट बैंक पर वार

तेजस्वी की राजनीति का सबसे मजबूत स्तंभ रहा है M-Y फैक्टर (मुस्लिम-यादव गठजोड़)… लेकिन अब इसी गठजोड़ में दरार डालने की तैयारी में हैं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM… 2020 में AIMIM ने सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में 5 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. अगर इस बार AIMIM अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारती है, तो यह मुस्लिम वोटों के बिखराव की वजह बन सकता है और सीधा नुकसान तेजस्वी यादव को होगा. तेजस्वी के लिए यह एक पैराडॉक्स (विरोधाभास) है. मुस्लिम वोट जो अब तक उनकी ताकत थे, AIMIM के कारण कमजोरी बन सकते हैं.

3- घर के अंदर की लड़ाई: परिवार में कलह और महत्वाकांक्षा

तेजस्वी यादव की चुनौतियां केवल बाहरी नहीं हैं. घर के भीतर भी सियासी तनाव बढ़ रहा है. उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव, बहन रोहिणी आचार्य, और यहां तक कि सांसद बहन डॉ. मीसा भारती के बीच मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं. डॉ. मीसा भारती फिलहाल पटना के पास पाटलिपुत्र सीट से सांसद हैं और बेहद महत्वाकांक्षी मानी जाती हैं. राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले समय में वह भी तेजस्वी की राजनीतिक स्थिति को चुनौती दे सकती हैं. परिवार के अंदर की यह हलचल पार्टी के भीतर भ्रम और असंतोष पैदा कर सकती है- खासकर तब, जब चुनावी माहौल में एकजुटता सबसे ज़रूरी हो. 

4- कांग्रेस की दुविधा: समर्थन या संदेह?

महागठबंधन में कांग्रेस की भूमिका अहम मानी जाती है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने अभी तक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है. कांग्रेस की यह हिचकिचाहट महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े करती है. इस असमंजस का असर जमीनी स्तर पर पड़ सकता है, जहां समर्थकों को स्पष्ट दिशा चाहिए. राजनीतिक संदेश साफ़ है – अगर सहयोगी दल ही नेतृत्व पर भरोसा न दिखाएं, तो जनता को कैसे यकीन दिलाया जाएगा?

5- सीट बंटवारे की रस्साकशी

तेजस्वी यादव को अपने सहयोगी दलों- CPI(ML), झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), और विकासशील इंसान पार्टी (VIP)- के साथ सीट बंटवारे की पेचीदा बातचीत करनी है. हर पार्टी ज्यादा सीटें चाहती है, हर नेता अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में दबदबा बनाना चाहता है. यह सियासी सौदेबाजी महागठबंधन की एकता को कमजोर कर सकती है. जहां एक तरफ एनडीए एकजुट होकर मैदान में उतरने की रणनीति बना रहा है, वहीं महागठबंधन के अंदरूनी मतभेद तेजस्वी के लिए बड़ी सिरदर्दी बन सकते हैं. 

6- M-Y फैक्टर: ताकत भी, सीमा भी

तेजस्वी यादव की राजनीति पूरी तरह मुस्लिम-यादव गठबंधन पर टिकी रही है – यह RJD की पारंपरिक पहचान है, लेकिन 2025 के बिहार में सिर्फ यह गठजोड़ काफी नहीं होगा. नई युवा पीढ़ी, महिला मतदाता और पिछड़े वर्गों में विकास की राजनीति की मांग बढ़ रही है. अगर तेजस्वी इस सीमित जातीय राजनीति से आगे नहीं बढ़े, तो वह अपने पिता लालू प्रसाद यादव की छवि से बाहर नहीं निकल पाएंगे. उनके लिए सबसे बड़ा इम्तिहान यही है – क्या वह परंपरा और नवाचार के बीच संतुलन बना पाएंगे? 

2020 से 2025 तक का सफर और भाग्य की कसौटी

2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन केवल 12,768 वोटों (0.03%) से हार गया था. कई विश्लेषकों ने इसे ‘बदकिस्मती’ कहा, जबकि कुछ ने ‘एनडीए की रणनीतिक जीत’… 2025 में सवाल वही है- क्या तेजस्वी यादव इस बार किस्मत को मात दे पाएंगे? या फिर छह सियासी रोडब्लॉक उनकी रफ्तार थाम देंगे?

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