साल 1971, दिसंबर का महीना और तारीख थी 4…भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका था। आज का बांग्लादेश तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं, युद्ध चरम स्तर पर था। परिणाम सबको पता है। महज 13 दिनों में ही पूर्वी पाकिस्तान का नाम दुनिया के नक्शे से मिट गया और बांग्लादेश नाम से एक नया देश दुनिया के नक्शे में नजर आने लगा।
पाकिस्तानी सेना भारत के सामने घुटने टेक चुकी थी। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध की शुरुआत के दूसरे ही दिन भारतीय नौसेना ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया था जिससे न केवल पाकिस्तान बल्कि अमेरिका की भी हेकड़ी निकल गई थी। पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण कराची बंदरगाह तबाह हो चुका था। बंदरगाह पर बने ऑयल डिपो में लगी आग सात दिन तक धधकती रही और हजार कोशिशों के बाद भी वह बुझाई नहीं जा सकी। हमला इतना जबरदस्त था कि जब तक पाकिस्तानी सेना एक्टिव हुई तब तक तबाही सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी। भारतीय सेना की पाकिस्तान पर इस कार्रवाई का नाम था ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’…
ऑपरेशन ट्राइडेंट
ट्राइडेंट का अर्थ होता है ‘त्रिशूल’…त्रिशूल यानी भगवान शिव का संहारक हथियार। ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ (Operation Trident) ने भगवान शिव के त्रिशूल की तरह ही पाकिस्तान की नौसेना का विनाश किया था। पाकिस्तान के विनाश की गाथा लिखने का प्लान बनाया था तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल एसएम नंदा ने। इसको लेकर, एडमिरल नंदा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने पहुंचे थे और पूछा था कि यदि हम भारतीय सीमा के बाहर जाकर कराची पर हमला करेंगे को कोई मसला तो नहीं होगा? इस पर इंदिरा गांधी ने कहा था कि एडमिरल, इफ देयर इज वार, देयर इज वार। मतलब अगर लड़ाई है तो लड़ाई है। एडमिरल को अपना जवाब और पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने का मौका मिल चुका था।
फिर क्या था, एडमिरल एसएम नंदा ने कराची पर हमले की योजना बनाई और 1 दिसंबर को 3 युद्धक जहाजों- INS निपात, INS वीर और INS निर्घट को कराची की ओर कूच करने का आदेश दे दिया गया। इसी दौरान पाकिस्तानी अफसरों ने कराची जाने वाले सभी व्यापारिक जहाजों को शाम होने के बाद और सुबह होने से पहले बंदरगाह से 75 मील दूर रहने की चेतावनी जारी कर दी थी। इसका मतलब यह था कि इस दौरान पाकिस्तान की ओर से भारत के रडार पर जो भी युद्धपोत नजर आएगा, उसके पाकिस्तानी होने की संभावना होगी।
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के कई सैन्य अड्डों पर बमबारी कर दी। इसके बाद भारत भी युद्ध का ऐलान कर देता है। 4 दिसंबर की रात भारतीय नौसेना का दल कराची से महज 40 किलोमीटर दूर था, तभी रडार पर एक हलचल महसूस होती है। यह हलचल पाकिस्तानी युद्धपोत PNS खैबर की थी, जो भारतीय नौसेना की तरफ बढ़ रहा था। रात ठीक 10 बजकर 40 मिनट पर INS निपात पर मौजूद स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव INS निर्घट को अपना रास्ता बदलने और पाकिस्तानी युद्धपोत पर हमला करने का आदेश देते हैं। जैसे ही PNS खैबर इंडियन नेवी की रेंज में आता है। INS निर्घट उस पर मिसाइल दाग देता है।
अपनी तरफ आ रही मिसाइल को PNS खैबर ने लड़ाकू विमान समझते हुए उस पर एंटी एयरक्राफ्ट गन से गोलियां बरसाईं। लेकिन मिसाइल नहीं रुकी और सीधे PNS खैबर पर लगी। इससे खैबर हिल गया और बॉयलर रूम में भीषण आग लग गई। उसमें मौजूद जवानों को पता ही नहीं चला कि हमला कहां से हुआ। इसके तुरंत बाद ही INS निर्घट को खैबर पर एक और मिसाइल दागने का आदेश मिला। खैबर पर मौजूद पाकिस्तानी नौसेना के जवान कुछ सोच पाते कि तभी 11 बजकर 20 मिनट पर दूसरी मिसाइल चली और खैबर डूब गया। इस हमले में पाकिस्तानी नौसेना के 222 जवान मारे गए।
इसके बाद INS निपात का सामना एक अज्ञात पोत से होता है। INS निपात ने पलक झपकते ही इस पर भी मिसाइल दाग दी। इससे पाकिस्तानी पोत में आग लग गई। बाद में पता चला कि यह पोत MV वीनस चैलेंजर था, जो अमेरिका से हथियार लेकर पाकिस्तान जा रहा था। इसी बीच भारतीय नौसेना के INS निपात ने पाकिस्तान के PNS शाहजहां पर भी मिसाइल दागी। इससे वह भी तबाह हो गया।
अब बारी INS वीर की थी। INS वीर ने पाकिस्तानी PNS मुहाफिज पर मिसाइल दागी, जिससे मुहाफिज तुरंत डूब गया और उसमें मौजूद 33 जवानों की मौत हो गई। इसी बीच INS निपात कराची बंदरगाह की तरफ बढ़ता चला गया। कराची बंदरगाह पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसके एक तरफ पाकिस्तानी नौसेना का हेडक्वार्टर था और दूसरी तरफ तेल भंडार…INS निपात को रडार में किमारी तेल टैंक दिखाई देता है। INS निपात ने बंदरगाह की ओर दो मिसाइल दागी। एक मिसाइल चूक गई, लेकिन दूसरी सीधे तेल के टैंक में जाकर लगी। जबरदस्त विस्फोट हुआ। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि आग की लपटों को 60 किमी की दूरी से भी देखा जा सकता था। तेल भंडार पर लगी आग लाख कोशिशों के बाद भी बुझाई नहीं जा सकी और 7 दिनों तक धधकती रही।
नौसेना की इस वीरता को याद करने के लिए भारत सरकार ने हर साल 4 दिसंबर को नौसेना दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की और साल 1972 से शुरू यह खास दिवस हर साल पूरे गर्व के साथ मनाया जा रहा है। भारतीय नौसेना ही नहीं हर भारतवासी के लिए यह गौरव का दिन है।