नई दिल्ली। हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों के चुनावी नतीजे आ रहे हैं। जिसके मुताबिक बीजेपी राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। ताजा रुझानों के मुताबिक, अभी बीजेपी 50 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं, कांग्रेस के खाते में सिर्फ 34 सीटें जाती दिखाई दे रही है। जबकि कांग्रेस हरियाणा में अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वास्त थी। पर अब साफ है कि रुझानों में बीजेपी तीसरी बार बहुमत के साथ सरकार बना रही है। इस बड़े उलटफेर से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। शुरुआती रुझानों में पहले बीजेपी पिछड़ती हुई दिखाई दे रही थी। लेकिन उसके बाद चुनावी नतीजों का आंकड़ा तेजी से बदलते गए। रुझान परिणाम के इस बदलाव से हरियाणा में बीजेपी ने इतिहास रच दिया है। ऐसे में आइए जानते हैं कि कांग्रेस को राज्य में इतना बड़ा झटका कैसे लगा है?
जाट वोटों का ध्रुवीकरण
हरियाणा विधानसभा चुनाव में हुए इस फेरबदल के पीछे का सबसे बड़ा कारण गैर जाटों का ध्रुवीकरण और कांग्रेस के नेताओं का बड़बोलेपन को माना जा रहा है। साथ ही, कांग्रेस इस ध्रुवीकरण का फायदा नहीं उठा पाई। जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ है।
कुमारी शैलजा की नाराजगी
कांग्रेस पार्टी की ओर से कुमारी शैलजा की नाराजगी भी पार्टी को भारी पड़ी। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, भूपेंद्र हुड्डा के समर्थक ने उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणी की थी। जिससे एक खास वर्ग नाराज हो गया था। पार्टी के अंदर शुरू से ही अंदरुनी कलह जारी थी। जिसके चलते भी पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है। जनता में पार्टी की अंदरुनी कलह की खबरें भी खूब फैली। साथ ही, बीजेपी ने भी कांग्रेस के अंदर अंतर्कलह को मुद्दा बनाया था।
पर्ची-खर्ची का मामला बना मुद्दा
बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ पर्ची-खर्ची का मामला उठाया। जिसने युवाओं को भेद दिया और युवा वर्ग का बीजेपी को साथ मिला। इसके अलावा पहलवानों और किसानों का मुद्दा भी उसके लिए फायदेमंद साबित होता नहीं दिखा। राज्य में कांग्रेस अग्निवीर मुद्दों को भी बीजेपी के खिलाफ अपनाया था। लेकिन पर्ची-खर्ची का मामला कांग्रेस पर ही उलटा पड़ गया।
संविधान और आरक्षण का मुद्दा फेल!
संविधान और आरक्षण के मुद्दे को लेकर बीजेपी के खिलाफ जाने वाली कांग्रेस का हरियाणा में कोई दांव नहीं चल सका। इसके अलावा कांग्रेस बीजेपी की रणनीति को तोड़ पाने में भी सफल नहीं हो पाई। बता दें कि, कांग्रेस ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा लोकसभा चुनाव के दौरान चला था। जिसका उसे फायदा भी मिला। लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान उनका यह दांव फेल हो गया। जवान किसान और पहलवान के भी मुद्दें को कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ जमीनी स्तर पर उतराने में विफल रही। चुनावी नतीजे भी इसी ओर से इशारा कर रहे हैं।
सत्ता विरोधी लहर को भी नहीं भुना पाई कांग्रेस
राज्य में बीते दस सालों से बीजेपी की सरकार थी। कांग्रेस लगातार यह मान रही है कि उसे बिना मेहनत किए सत्ता मिल जाएगी। पार्टी के नेता भी मंच से लगातार यह मान रहे थे कि सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस की जीत दिलाने में मददगार साबित होगी। हालांकि, कांग्रेस का यह दांव भी उसी पर उलटा पड़ गया।