पाकिस्तान सरकार खरीदेगी दिलीप कुमार और राजकपूर की हवेली, इतनी लगाई कीमत

आज़ादी के बाद हुए बंटवारे में बहुत से लोग भारत से पाकिस्तान गए थे तो बहुत से लोग पकिस्तान से भी भारत आये थे. उनमे से दो शख्सियत ऐसी है जिन्होंने अपना नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में लिख कर अपने नाम को अमर कर दिया. वो दो शख्सियत और कोई नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा ले प्रसिद्ध और लीजेंड फिल्म अभिनेता राज कपूर और दिलीप कुमार उर्फ़ युसूफ खान हैं. लेकिन जब वो पाकिस्तान से भारत आये तो उनकी पुश्तैनी हवेलिया पकिस्तान में वीरान रह गई. जिन्हे वो अक्सर याद किया करते थे क्योंकि उनका बचपन उन हवेलियों की चार दीवारों के बीच में बीता थी. तो वहीं अब उन हवेलियों से जुडी एक बड़ी खबर सामने आयी है.

बता दें पाकिस्तान की खैबर पख्तूनख्वा सरकार ने दिग्गज बॉलीवुड अभिनेताओं दिलीप कुमार और राज कपूर के पैतृक घरों की कीमत तय कर दी है. इसमें दिलीप कुमार के घर की कीमत 80,56,000 रुपये, जबकि राज कपूर के पैतृक घर की कीमत 1,50,00,000 तय की गई है. दरअसल, सितंबर महीने में प्रधानमंत्री इमरान खान के गृह राज्य की सरकार ने टूटे- फूटे हालत में मौजूद इन ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के लिये पैतृक घरों को खरीदने का फैसला किया था.

जिसके बाद पेशावर के प्रमुख इलाकों में स्थित इन दो इमारतों को पाकिस्तान सरकार ने राष्ट्रीय विरासत घोषित किया है. पेशावर के उपायुक्त मुहम्मद अली असगर ने कम्युनिकेशन एंड वर्क्स डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के बाद दिलीप कुमार के चार मरला में बने घर की कीमत 80.56 लाख रुपये निर्धारित की है जबकि राज कपूर के छह मरला के घर की कीमत 1.5 करोड़ रुपये लगाई गई है.

मारला क्षेत्र की पैमाइश के लिये पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश में इस्तेमाल होने वाला परंपरागत मानक है. एक मारला को 272.25 वर्ग फीट या 25.2929 वर्गमीटर के बराबर माना जाता है. पुरातत्व विभाग ने प्रांतीय सरकार से इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों को खरीदने के लिये दो करोड़ रुपये जारी करने का अनुरोध किया था. इन्हीं इमारतों में भारतीय सिनेमा के दिग्गज कलाकारों दिलीप कुमार और राज कपूर का जन्म हुआ था और विभाजन से पहले उनकी शुरुआती परवरिश भी वहीं हुई थी. 

अभिनेता दिलीप कुमार का करीब 100 वर्ष पुराना पैतृक घर भी इसी इलाके में मौजूद है. हालांकि यह घर जर्जर हालत में है और 2014 में तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया था. खान ने कहा कि इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों के मालिकों ने कई बार इसे तोड़कर कमर्शियल प्लाजा बनाने की कोशिश की लेकिन ऐसे सभी प्रयासों को रोक दिया गया क्योंकि पुरातत्व विभाग इनके ऐतिहासिक महत्व के कारण इन्हें संरक्षित और हमेशा के लिए संजो कर रखना चाहते हैं.

हालांकि, कपूर हवेली के मालिक अली कादर ने कहा था कि वह इमारत को ध्वस्त नहीं करना चाहते थे. अली ने दावा किया कि इस ऐतिहासिक इमारत की रक्षा और संरक्षण के लिए उन्होंने पुरातत्व विभाग के अधिकारियों से कई बार संपर्क किया जोकि एक राष्ट्रीय गौरव है. इमारत के मालिक ने इसे सरकार को बेचने के लिए 200 करोड़ रुपये की मांग की है.

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