
विश्व महिला दिवस पर विशेष रिर्पोट –
- ग्रामीण अंचलों की महिलाओं को भी है जागरूक करने की जरूरत
- आधी से ज्यादा आबादी की हद घर की चैखट तक ही क्यों
प्रवीण पाण्डेय

मैनपुरी। हद…. घर की चारदीवारी और अधिकार चैका चूल्हा। सुनने में चाहे भले ही अटपटा और अस्वीकार्य सा लगे। मगर ग्रामीण अंचलों में आधी आबादी का कड़वा सच आज भी यही है। सरकारें महिला अधिकारों को लेकर भले ही कुछ भी करें। मगर जमीनी हकीकत इसके बिलकुल अलग है।
आज जब महिला दिवस के मौके पर महिलाओं के अधिकारों को लेकर बात चली है। तो इसे दूर तक ले जाना भी जरूरी है। जनपद में भी यदि 10 फीसदी कामकाजी नारियों को छोड़ दें तो 70 फीसदी महिलाओं की हालत दांतों के बीच जीभ जैसी है। उन्हें घर के अंदर बाहर दोनों ही जगहों पर निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। फैसले की सत्ता पर पुरुषों का कब्जा है। भले ही आज सरकारी नीतियों के चलते सत्ता का विकेंद्रीकरण हो गया है और महिलाएं पद पा गई हो।
लेकिन प्रतिष्ठा आज भी उनसे कोसों दूर है। उनकी जगह उनके पतियों और पुत्रों ने कमान संभाल रखी है। महिला प्रधानों के शौहर खुद को प्रधान का संबोधन सुनकर गदगद हो उठते हैं। बैठक अगर डीएम अथवा सीड़ीओ ने बुलाई हो तो अलग बात है। वर्ना बीडीओ सहित विकास से जुड़े दूसरे अधिकारियों को तो यह प्रधान पति ही निपटा देते हैं। रही बात प्रधानी के बजाय घरेलू कामकाज में समय व्यतीत करने की तो महिलाए अपनी भूमिका से संतुष्ट हैं। बातचीत के बाद जो लफ्जों लुआब निकला वह यही था कि पुरुष सत्तात्मक समाज का अन्जाना खौफ आज भी महिलाओं के सिर पर हावी है। और इस अन्जाने तथा अनचाहे खौफ से निजात पाने में आधी आबादी को अभी और इंतजार करना पड़ेगा।

पुरुष प्रधान समाज में आज भी अपना वजूद तलाश रहीं महिलायें
कभी मां, कभी बेटी, कभी सास, कभी बहू तो कभी पत्नी। जिंदगी के हर मोड़ पर नारी ने अपनी भागीदारी बखूबी निभाई है। पुरुष प्रधान को समाज में अपना अस्तित्व और वर्चस्व कायम कर सुख की ठंडी छांव देने वाली नारी शक्ति बदलते दौर के साथ साथ भले ही परिवर्तन की सीढ़ियां चढ़ती रही हो लेकिन दिल में ममत्व और प्रेम की भावना कतई कम नहीं हुई है। आज विश्व महिला दिवस के माध्यम से भले ही चंद कार्यक्रमों के द्वारा सामूहिक मंचों पर महिलाओं की महिमा का बखान किया जाता है। लेकिन असल जिंदगी में महिला शक्ति की घुटन और पीड़ा से रूबरू होने का वक्त किसी के पास नहीं है।

आज भी गांव की महिलाओं नहीं पता क्या होता है महिला दिवस
गांव की नारी महिला सशक्तिकरण के ककहरे से आज भी अनजान है। खेतों पर घास ले रहीं गांव की महिलाओं से जब महिला दिवस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया कि हमें तो सिर्फ इतना पता है कि दिन में भैंस के लिए घास लानी है और खेतों पर जाना है। और जानवरों के लिए चारा लाना है। तब कहीं जाकर रात को रोटी नसीब होगी। आज भी गांवों की लगभग 70 फीसदी महिलाओं की आबादी या तो गोबर के उपले थाप रही है या फिर खेतों में काम कर रही हैं। महिला हकों के बारे में जागरूकता का प्रतिशत यहां लगभग शून्य है। शायद यही वजह है कि गांवों से संगीन अत्याचार की शिकायतें सबसे ज्यादा आती हैं।
नारी शक्ति ने हर क्षेत्र में मनवाया लोहा
यथार्थ के धरातल पर आकर जब सपने टूटते हैं तब ही उनकी अहमियत का अंदाजा होता है। कुछ ऐसा ही नारी शक्ति के साथ भी है हर दःुख सह कर भी सदैव सुखद अनुभूति कराने वाली महिला शक्ति आखिर आज भी इतनी डरी सहमी सी क्यों है। वह चंचलता वो चपलता बदलते दौर की महिलाओं में आखिर कहां गुम होती जा रही है।

ईओ डा0 कल्पना बाजपेई
नगर पंचायत ज्योती खुड़िया, बरनाहल और कुरावली की ईओ डाॅ0 कल्पना बाजपेई का कहना है कि महिलाओं ने शिक्षा और राजनीति के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में भी अपनी भागीदारी निभाई है। किसी जमाने में घर की चाहरदीवारी के अंदर कैद रहने वाली नारी आज समूचे देश का प्रतिनिधित्व कर रही है। आने वाले समय में महिलाओं के क्षेत्र में और भी ज्यादा नए आयाम स्थापित होंगे और नारी शक्ति का एक नया कीर्तिमान रचेगी।
एकता सिंह महिला थाना इंस्पेक्टर
महिला थाने की इंस्पेक्टर एकता सिंह का कहना है कि कानून को बनाने से ज्यादा जरूरत कानून का पालन करने की है। उन्होंने बताया की महिलाएं डरें नहीं उनकी समाज में बराबर की भागीदारी है। भले ही आज हम महिलाओं के हकों की बात करते हांे लेकिन सच तो यह है कि आधी से ज्यादा महिला आबादी को अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षण संस्थाओं में कानून का पाठ भी पढ़ाया जाए। महिलाएं जब शिक्षित होगी तो उन्हें अपना अधिकार पाने के पूरे अधिकार होंगे।
शिवानी मिश्रा महिला कल्याण अधिकारी मैनपुरी
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला कल्याण अधिकारी शिवानी मिश्रा ने कहा की की महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं चाहे वह रक्षा क्षेत्र हो या शिक्षा। शिवानी मिश्रा ने सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं जैसे कि वन स्टॉप सेंटर की विस्तृत जानकारी दी 1090 1098 112 टोल फ्री नंबर के बारे में भी विस्तार से बताया।
डा0 कुसूम मोहन प्रधानाचार्य सुदिती ग्लोबल एकेडमी
सुदिती ग्लोबल एकेडमी की प्रधानाचार्य डा0 कुसूम मोहन का कहना है कि महिलाओं की आर्थिक स्थिति में पुराने समय की अपेक्षा बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। आज की महिलाएं निर्भीक, जिज्ञासु, महत्वाकांक्षी और कुशल नेतृत्व की धनी है। समाज को सही दिशा देने में महिला शक्ति अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रही है। प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है। एक महिला होने के नाते मुझे नारी शक्ति पर गर्व है।
महेन्द्र बहादुर सिंह, जिलाधिकारी मैनपुरी
डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने बताया कि जहां महिला जनप्रतिनिधि है। वहां बैठक में उनको ही आमंत्रित किया जाता है और उन्हीं की बात को तवज्जो भी दी जाती है। उनके पतियों को मीटिंगो में बुलाने अथवा गांव के विकास से संबंधित उनके किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस संबंध में अगर कोई शिकायत मिलती है तो नियमानुसार कार्यवाई की जाएगी।










