मृदुला घई की कविता ‘बेटी’ : जन्मा एक पत्थर ने.. एक पत्थर का टुकड़ा

बेटी

जन्मा एक पत्थर ने I

एक पत्थर का टुकड़ा II

मुर्झाया सबका मुखड़ा I

बस एक ही दुखड़ा II

गहरी टीस I

जमानेकीरीस II

हुआ कुछ ना दुआसेI

माँगा था बेटा खुदा सेII

पर आई लड़की कम्बखत I

फुट गई किस्मत II

समय ने ली करवट I

हटी दिल की सलवट II

पत्थर से बनी परी I

किलकारियों की लगी झड़ी II

पायल की झंकार I

हंसी की खनकार II

चहकता घर द्वार I

उसी की पुकार  II

नन्हे नन्हे पावंI

प्यार की छावंII

नाजो का पलना I

बचपन का ढलना II

संभालना – फिसलना I

निभायादस्तुर II

किया खुद से दुर I

फिर जन्मा एक पत्थर ने II

एक पत्थर का टुकड़ा I

मुर्झाया हर मुखड़ा II

उमड़ा वाही दुखड़ा I

हायये कैसा व्यापार हुआ  II

कैसा ये दुराचार हुआ I

ना जाने कितने पैगामदिए II

भर भर पैसे थाम दिये I

फिर भी, एक दिन II

डायन का इल्जाम हुआ I

परी का सपना खाक हुआ II

दिल का दुकड़ा राख हुआ I

एक एहसास हुआ II

लाड़ दिया, प्यार दिया I

पैसासिर से वार दिया II

ना शिक्षा दी, ना ज्ञान दिया  I

कच्ची उम्र में ब्याह दिया II

हाय ये क्या किया I

दिल, दहला दिया II

विचार-विमर्श कियाI

खूब संघर्ष कियाII

नए पंख उगे I

सपने जगे II

उड़ान मिलीI

शान बढ़ी II

ना कष्ट सहा I

न पत्थर रहा II

जीवन ललक I

नई झलक II

मांगी अब बेटी खुदा मे I

उसकी सदा से II

जीवनसचांरI

सुखी संसार II

परियो सा प्यार I

बेटी से ही महकता घर द्वारII

सुश्री मृदुला घई,

अपर केन्द्रीय भविष्य निधि आयुक्त (मुख्यालय),
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,
श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार

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