
भास्कर ब्यूरो
बरेली । सामूहिक रूप से त्यौहार मे ख़ुशी बांटना ही ईद हैं। पूरी दुनिया में ईद उल फितर का त्योहार मनाया जाता है किसी भी क्षेत्र में रहता हो, किसी भी कबीले या खानदान से संबंध रखता हो, या किसी भी हैसियत का हो, सभी मुसलमान बिना किसी भेदभाव के सामूहिकता की भावना के साथ इस त्योहार को मानते हैं। ईद का मतलब ही है-ख़ुशी। लेकिन ईद के असली हकदार वही लोग हैं जिन्होंने रमजान के महीने में रोज़े रखकर अलल्हा की इबादत कर फिक्र कर कुरान को पढ़ा और समझकर कुरान की रहनुमाई की।
वही ईद के दिन एक विशेष नमाज़ अदा की जाती है मुसलमान ईदगाह में इकट्ठा होकर यह नमाज़ अदा करते है। यह रोजाना की पांच वक़्त की नमाजों से अलग होती है। अल्लाहताला का यह भी हुक्म है कि इस दिन कोई भूखा ना रहे गरीबों, बेसहारों, मुफलिसों और मिसकीनों के लिए फितरे का इंतज़ाम है। जिससे की गरीबों की मदद हो सके और वो भी अपनी ईद मना सकें। हर वो मुसलमान जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो, इसके लिए अनिवार्य है कि वह अपनी ओर से अपने परिवार के सदस्यों का फितरा अदा करे जिस पर गरीबों का हक़ होता है सदस्य चाहे बालिग या नाबालिग हो।
यहां तक कि नमाज़ से पहले फितरा देना होता हैं।
ईद का गहरा संबंध इबादत से है लेकिन पिछले 2 वर्षों से वैश्विक महामारी के कारण इबादत गाहे सूनी पड़ी है। लोग घरों में नमाज अदा कर रहे दौरान प्रयागराज के नायाब काजी मौलाना मुजाहिद हुसैन रिजवी ने कहा कि जिस तरह जुमे की नमाज घर में नहीं पढ़ी जा सकती ठीक उसी तरह ईद की नमाज घर में अदा नहीं की जा सकती।ईद एक महीने के रोजे पूरे होने की ख़ुशी में अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए मनाई जाती है। ईद का त्यौहार अल्लाह ने रमज़ान के 30 रोजे रखने के इनाम के बदले में दी है।हजरत मोहम्मद ने इसमें दो बातें स्पष्ट रूप से निर्धारित की है यह कि चांद देखने की गवाही उस समय जरूरी होगी जबकि आसमान बिल्कुल साफ ना हो दूसरे यह कि इस स्थिति में खबर पर नहीं बल्कि दो सच्चे और न्याय प्रिय गवाहों की गवाही पर चांद देखने का फैसला किया जाएगा किसी देश में शरई कानून के अनुसार चांद देखने की गवाही और उसकी ऐलान का कर दिया जाता है तो इसको अपनाने में हर्ज बिल्कुल नहीं है मगर शरीयत की यह मांग बिल्कुल नहीं है कि जरूर ऐसा ही होना चाहिए
लोगों को बाटे खुशियां
हम ईद पर सभी को मुबारकबाद देते हैं लेकिन ईद की मुबारकबाद की असली हकदार वह लोग होते हैं जिन्होंने की रमजान के पाक और मुबारक महीने में रोजे रखे और कुरान मजीद की हिदायत को ज्यादा से ज्यादा उठाने की कोशिश फ़िक्र की कुरान को पढ़ा समझा और कुरान की रहनुमाई हासिल करने की कोशिश की अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने कहा है कि अल्लाह के सभी बंधुओं के लिए एक ऐसा साधन बनो जो दयालुता का साधन हो ईद के दिन सभी लोगों में खुशी कायम करो अगर हमने रोजे रखे नमाज पढ़ी स्वस्थ रहें लेकिन अपने आसपास के लोगों और अन्य लोगों को हमें तकलीफ पहुंचाई तो हमारी सारी ही वह बेकार हो गई।
जब तक कि कोई मुसलमान जकात और फितरा अदा नहीं करता तब तक उस मुसलमान की ईद की नमाज अल्लाह की बारगाह में स्वीकार नहीं होती जकात साल में एक बार देना होता है इसके अंतर्गत साढ़े सात तोला सोने से अधिक के मूल्य की कितनी धनराशि है उससे अधिक धन का 2:30 प्रतिशत गरीबों में बांटना ही जकात कहलाता है यदि कोई मुसलमान हर तरह की मदद करता है लेकिन अगर सालाना सदका नहीं करता तो उसकी सारी बातें अल्लाह की बारगाह में अस्वीकार कर दी जाएंगी इसी तरह सभी मुसलमानों को फित्रा अदा करना अनिवार्य है ईद की नमाज पढ़ने से पहले फित्रा अदा करने का आदेश है फित्रा हर मुसलमान को अपने परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर प्रति सदस्य 2 किलो 40 ग्राम गेहूं के मूल्य के बराबर धनराशि गरीबों में देना चाहिए इसमें सबसे पहले आप अपने पड़ोसियों को देखिए कि वह फितरा लेने की स्थिति में है तो पहले देना चाहिए इसके बाद रिश्तेदारों को देखना चाहिए संपूर्ण मानवता की खुशी का दिन है इसलिए खुदा का कोई भी बंदा न रह जाए इसलिए जकात और फितरा बनाया गया है










