प्रयागराज. लोक आस्था का महापर्व ‘छठ’ की परंपरा को सात समन्दर पार पश्चिमी परिवेश की चकाचौंध भी प्रभावित न/न कर सकी है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि से प्रारंभ होकर सप्तमी तिथि पर समापन होने वाले पर्व को सात समन्दर पार भी श्रद्धालु परंपरानुसार मनाते हैं। पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध से लोग प्रभावित हो रहे हो लेकिन आस्था के पर्व को मनाने वाले अब भी बड़ी शिद्दत के साथ परंपरानुसार पालन कर रहे हैं।
सूर्य उपासना का पर्व छठ बिहार, झारखंड, नेपाल एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें न/ न केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। महापर्व के दौरान हिंदू धर्मावलंबी भगवान सूर्य देव को जल अर्पित कर आराधना करते हैं।
बिहार में इस पर्व का खास महत्व है। यह पर्व गंगा तट पर किया जाता है। नदी नहीं होने पर घर के बाहर कुंए और तालाब पर यह पर्व मनाया जाता हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देकर शुरू किया जाता है और चौथे दिन उदयाचल सूर्य की पूजा के बाद पर्व का समापन होता है।
झारखण्ड मूल के कजरू निवासी यहां राजापुर क्षेत्र में रहने वाले नरेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं नेपाल आदि के लोग जहां गए, वहां अपनी संस्कृति को जीवंत किया। यही कारण है कि छठ महापर्व की गूंज अमेरिका के वाशिंगटन डीसी तक है। वाशिंगटन डीसी के साथ मेरीलैंड, वर्जिनिया और न्यू जर्सी तक के लोग छठ व्रत करते हैं। वाशिंगटन डीसी की पोटॉमॅक नदी तट पर छठ की पूजा करते हैं।
उन्होंने बताया कि कल से शुरू हो रहे चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्यौहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है।
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। यह पूजा पुत्र की कामना और समृद्धी के लिये किया जाता है। यह पर्व सब को एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो या गरीब , सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही फल, नारियल ,फूल और चुनरी से ढ़क कर सूर्य अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा, गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं।
शिक्षिका विनीता राय का कहना है यह पर्व साल में दो बार, चैत्र शुक्ल षष्ठी आैर कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथियों को मनाया जाता है। इनमे से कार्तिक की छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार छठ पूजा आैर उपवास मुख्य रूप से सूर्य देव की अाराधना से उनकी कृपा पाने के लिये होता है। एेसी मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा हो जाये तो सेहत अच्छी रहती है, आैर धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं। एेसा भी कहा जाता है कि छठ माई की कृपा से संतान प्राप्त होती। ये व्रत रखने से सूर्य के समान तेजस्वी आैर आेजस्वी संतान के लिये भी रखा जाता है। इस पूजा आैर उपवास से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
उन्होंने बताया कि त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है। पौराणिक कथाआें के अनुसार रामायण काल में भगवान श्रीराम ने अयोध्या वापस आने के बाद सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना की थी। इसी तरह महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना करके पुत्र प्राप्ति करने से भी इस दिन को जोड़ा जाता है। कहते हैं कि कर्ण का जन्म इसी प्रकार हुआ था।
झारखण्ड मूल के कजरू निवासी यहां राजापुर क्षेत्र में रहने वाले नरेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं नेपाल आदि के लोग जहां गए, वहां अपनी संस्कृति को जीवंत किया। यही कारण है कि छठ महापर्व की गूंज अमेरिका के वाशिंगटन डीसी तक है। वाशिंगटन डीसी के साथ मेरीलैंड, वर्जिनिया और न्यू जर्सी तक के लोग छठ व्रत करते हैं। वाशिंगटन डीसी की पोटॉमॅक नदी तट पर छठ की पूजा करते हैं।
उन्होंने बताया कि कल से शुरू हो रहे चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्यौहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है।
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। यह पूजा पुत्र की कामना और समृद्धी के लिये किया जाता है। यह पर्व सब को एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो या गरीब , सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही फल, नारियल ,फूल और चुनरी से ढ़क कर सूर्य अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा, गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं।
शिक्षिका विनीता राय का कहना है यह पर्व साल में दो बार, चैत्र शुक्ल षष्ठी आैर कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथियों को मनाया जाता है। इनमे से कार्तिक की छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार छठ पूजा आैर उपवास मुख्य रूप से सूर्य देव की अाराधना से उनकी कृपा पाने के लिये होता है। एेसी मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा हो जाये तो सेहत अच्छी रहती है, आैर धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं। एेसा भी कहा जाता है कि छठ माई की कृपा से संतान प्राप्त होती। ये व्रत रखने से सूर्य के समान तेजस्वी आैर आेजस्वी संतान के लिये भी रखा जाता है। इस पूजा आैर उपवास से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
उन्होंने बताया कि त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है। पौराणिक कथाआें के अनुसार रामायण काल में भगवान श्रीराम ने अयोध्या वापस आने के बाद सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना की थी। इसी तरह महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना करके पुत्र प्राप्ति करने से भी इस दिन को जोड़ा जाता है। कहते हैं कि कर्ण का जन्म इसी प्रकार हुआ था।
जाने पूजा की विधि, शुभ मुहर्त
बिहार का महापर्व छठ) 11 नवंबर यानि आज से शुरू हो रहा है, छठी मइया की पूजा की शुरुआत चतुर्थी को नहाए-खाय से होती है। इसके अगले दिन खरना या लोहंडा (इसमें प्रसाद में गन्ने के रस से बनी खीर दी जाती है)। षष्ठी (13 नवंबर) को शाम और सप्तमी (14 नवंबर) सुबह को सूर्य देव को अर्घ्य देकर छठ पूजा की समाप्ति की जाती है। इस बार छठ पूजा 11 से 14 नवंबर तक है।
छठ पूजा की सामग्री
पहनने के लिए नए कपड़े, दो से तीन बड़ी बांस से टोकरी, सूप, पानी वाला नारियल, गन्ना, लोटा, लाल सिंदूर, धूप, बड़ा दीपक, चावल, थाली, दूध, गिलास, अदरक और कच्ची हल्दी, केला, सेब, सिंघाड़ा, नाशपाती, मूली, आम के पत्ते, शकरगंदी, सुथनी, मीठा नींबू (टाब), मिठाई, शहद, पान, सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम और चंदन।
छठी मइया का प्रसाद
ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
छठी मइया की पूजा विधि
– नहाय-खाय के दिन सभी वर्ती सिर्फ शुद्ध आहार का सेवन करें।
– खरना या लोहंडा के दिन शाम के समय गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाएं। सबसे पहले इस खीर – वर्ती खाएं बाद में परिवार और ब्राह्मणों को दें।
– छठ के दिन घर में बने हुए पकवानों को बड़ी टोकरी में भरें और घाट पर जाएं।
– घाट पर ईख का घर बनाकर बड़ा दीपक जलाएं।
– व्रती घाट में स्नान कर के लिए उतरे और दोनों हाथों में डाल को लेकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
– सूर्यास्त के बाद घर जाकर परिवार के साथ रात को सूर्य देवता की ध्यान और जागरण करें। इस जागरण में छठी मइया के गीतों को बजाएं।
– सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में सारे वर्ती घाट पर पहुंचे। इस दौरान वो पकवानों की टोकरियों, नारियल और फलों को साथ रखें।
– सभी वर्ती उगते सूरज को डाल पकड़कर अर्घ्य दें।
– छठी की कथा सुनें और प्रसाद का वितरण करें।
– आखिर में सारे वर्ती प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।
छठ पूजा के दौरान वर्तियों के लिए नियम
– वर्ती छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनें।
– छठ पूजा के चारों दिन वर्ती जमीन पर चटाई पर सोएं।
– वर्ती और घर के सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली ना खाएं।
– पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें।
– छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेपुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।
छठ मइया का पूजा मंत्र
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||