राजस्थान (Rajasthan) के शाजापुर से 3 किलोमीटर दूर ग्राम सापखेड़ा में एक विशेष मंदिर (Temple) बनवाया गया है। इस मंदिर की एक खासियत है, जो सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यह मंदिर घर के बाहर बनाया गया है और इसमें भगवान के रूप में एक महिला की प्रतिमा (Statue) स्थापित की गई है। जिसकी रोज पूजा की जाती है। इस मंदिर में जिस महिला की मूर्ति है उसका नाम गीताबाई हैं। यह मंदिर गीता बाई के परिजनों द्वारा उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में बनवाया गया है। गीता बाई का निधन कोरोनावायरस महामारी के दौरान हुआ था।
क्या है पूरी कहानी
शाजापुर (Shajapur) में एक पति ने अपनी पत्नी के मौत के बाद अपने बेटों के साथ मिलकर अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद में घर के बाहर एक मंदिर बनवाया। पति ने अपनी पत्नी (Wife) की भगवान (God) से तुलना कर, उसे भगवान का दर्जा देने की कोशिश की है और इसी सोच में अपनी पत्नी का एक मंदिर (Temple) बनवा दिया। जिसमें पूरा परिवार मिलकर रोज सुबह शाम पूजा-अर्चना करता है। मंदिर में स्थापित पत्नी की मूर्ति की आरती उतारी जाती है और प्रत्येक दिन भोग लगाया जाता है।
गीताबाई (Geetabai) की मूर्ति को बनने में डेढ़ महीने लगे। जिससे बाद मूर्ति की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गई। बेरछा रोड स्थित सापखेड़ा गांव (Rajasthan) के बना यह मंदिर मेन रोड से ही दिखाई देता है। इस मंदिर की प्रतिमा को परिजन प्रतिदिन साड़ी और ओढ़ा कर रखते हैं। निसंदेह इस मंदिर की तुलना ताजमहल से की जा सकती है। ताजमहल शाहजहां द्वारा अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया गया था, और यह मंदिर भी नारायण सिंह द्वारा अपनी पत्नी की स्मृति में बनवाया गया है।
कोरोना से हुई थी पत्नी की मौत
यह मामला शाजापुर जिला मुख्यालय (Rajasthan) से 3 किलोमीटर दूर खेड़ा गांव (Khera Village) में रहने वाले नारायण सिंह के परिवार का है। पति का पूरा नाम नारायण सिंह बंजारा (Narayan Singh Banjara) और उसकी पत्नी का नाम गीता बाई था। नारायण सिंह की पत्नी गीता बाई की मौत कोरोना महामारी (Covid 19) के दूसरे लहर में 27 अप्रैल को हो गई थी। गीता बाई की मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया पति और उनके बच्चे हताश और अकेले हो गए। नारायण सिंह की पत्नी बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थी और उनका लगाव राजस्थान के रामदेवरा में स्थित बाबा रामदेव मंदिर से था। वह हर साल उस मंदिर में दर्शन के लिए भी जाती थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते उनकी मौत हो गई।
स्मृति में मंदिर बनवाने का लिया फैसला
नारायण सिंह (Narayan Singh) का भी अपनी पत्नी से बेहद लगाव था, और इनके बेटे भी अपनी माँ के मौत के बाद पूरी तरह टूट गए। माँ की मौत के बाद, मौत के तीसरे ही दिन कार्यक्रम के दौरान बेटों ने कहा उनको माँ की बहुत याद आती है। जिसके बाद गीताबाई के पति और बेटों ने मिलकर उनकी स्मृति में घर के बाहर एक मंदिर बनाने का फैसला किया, और उस मंदिर में पत्नी की प्रतिमा को स्थापित करने का निर्णय लिया गया।राजस्थान से बनवाई गई प्रतिमा
पति और बच्चों द्वारा गीता बाई की स्मृति में मंदिर बनवाने के फैसले के बाद पति नारायण सिंह ने अपनी पत्नी की मूर्ति राजस्थान से बनवाई। नारायण सिंह ने गीताबाई की मूर्ति बनाने का काम राजस्थान के अलवर के मूर्तिकार को सौंपा। जिसके लिए 50,000 दिए गए। इस मूर्ति को बनने में करीब डेढ़ महीने का समय लगा। जिसके बाद मूर्ति बनकर तैयार हो गई। बाद में मूर्ति को लाया गया और घर के बाहर बनवाए गए मंदिर में प्रतिमा को विधिवत रूप से स्थापित किया गया।
मंदिर में रोज होती है नियमित पूजा
घर के बाहर बनाए गए मंदिर में स्थापित गीता बाई (Geetabai) की यह प्रतिमा 3 फीट बड़ी है और बेहद ही सुंदर और आकर्षित लगती है। घर के बाहर बने इस छोटे से मंदिर में अब हर रोज सुबह शाम पति नारायण सिंह और उनके बेटे और परिजनों द्वारा नियमित रूप से पूजा अर्चना की जाती है। उन्हें सुबह शाम भोग लगाया जाता है। और प्रतिदिन प्रतिमा को नई साड़ी पहनाई जाती हैं।
बेटों का कहना, माँ अभी भी उनके साथ है
बेटों का कहना है कि हम भी चाहते थे कि, हमारी माँ भले ही इस दुनिया से चली गई हो, लेकिन इस प्रतिमा के तौर पर माँ सदैव उनके साथ रहे। वे कहते हैं कि, बस माँ अब केवल बोलती नहीं है, लेकिन वह अभी भी हमारे साथ है। वही नारायण सिंह भी अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे। उन्हें देवी का स्वरूप मानते थे तथा उनके आचरण और साधारण जीवन शैली की तारीफ करते हुए थकते नहीं है।
धार्मिक प्रवृत्ति की थी गीताबाई
नारायण सिंह बताते हैं कि उनकी पत्नी रोज भजन कीर्तन (Keertan Bhajan) में जाने के साथ साथ प्रतिदिन भगवान की भक्ति करती थी वह पति और बेटों के लिए एक आदर्श हैं। वह उन्हें देवी तुल्य मानते हैं। गीता बाई के बेटे लकी ने बताया की कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मां की तबीयत बहुत बिगड़ने लगी थी लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ और वह परलोक सिधार गई। उनके जाने के बाद से पूरा परिवार टूट गया था। लेकिन वह चाहते थे कि माँ सदैव उनके साथ रहे। जिसके बाद गीता बाई की मौत के तीसरे, दिन यानी 29 अप्रैल को ही मंदिर के लिए उनकी मूर्ति बनाने का ऑर्डर दे दिया गया। खबर साभार : जनज्वार