भाजपा के अभेद्य गढ़ डीडीहाट को ढहाने के लिए कांग्रेसी अब पूर्व सीएम हरीश रावत को तुरुप का इक्का बनाने की तैयारी कर रहे हैं। दावेदारों व पदाधिकारियों को हरदा का नाम आगे आने से बदलाव की आस है। यदि हरदा यहां से लड़े तो मुकाबला भी रोमांचक रहेगा।
1996 से लगातार पांच बार चुनाव जीत चुके कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल का डीडीहाट गढ़ है। गांव-गांव, घर-घर तक सभी के परिचित और संपर्क रखने वाले चुफाल को अब तक के चुनावों में कांग्रेस से कभी भी बड़ी चुनौती नहीं मिली है। 2017 के चुनाव में अपने ही साथी किशन सिंह भंडारी ने जरूर टक्कर दी।
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए टिकट नहीं मिलने से भंडारी चुफाल के खिलाफ हुए और बागी बनकर चुनाव लड़ा। किशन तब दूसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस तीसरे पर। 1500 वोट से चुफाल को जीत मिली थी।
इधर कांग्रेस इस समय एकजुट होकर चुफाल को घेरने की रणनीति बनाती दिख रही है। कांग्रेस ने इस सीट पर हर बार प्रत्याशी बदला है। स्थानीय प्रत्याशी को लेकर यहां भितरघात भी सामने आता रहा है। वर्तमान में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। ऐसे में हरीश रावत के लिए भी डीडीहाट की ‘पहाड़ीÓ चढऩा बहुत आसान नहीं रहेगा।
मुख्यमंत्री का गृहक्षेत्र है डीडीहाट
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का पैतृक गांव हड़खोला भी डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र में ही पड़ता है। सीएम बनने के बाद धामी ने यहां हेलीपैड से लेकर सड़क-पानी के क्षेत्र में तमाम काम कराए हैं। इस क्षेत्र में लगातार उनकी सक्रियता भी बनी रही। ऐसे में यदि हरदा यहां से लड़े भी तो भाजपा का दुर्ग भेदना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा।