
देवी सरस्वती का प्रकट उत्सव यानी वसंत पंचमी शनिवार, 5 फरवरी को है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा के साथ ही नई विद्या सीखने की शुरुआत की जा सकती है या कोई व्यक्ति नया कोर्स करना चाहता है तो वह कोर्स की शुरुआत के लिए वसंत पंचमी से कर सकता है। शिक्षा संबंधी कामों की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त माना जाता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार देवी सरस्वती विद्या और बुद्धि की देवी हैं। देवी सरस्वती का वाहन हंस है और हंस का गुण है कि वह दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है। जो लोग देवी सरस्वती की पूजा करते हैं, उन्हें भी देवी की कृपा की से ऐसा ही गुण मिलता है और भक्त बुरे समय में भी सकारात्मक रहता है।
देवी सरस्वती के वाहन हंस से जुड़ी खास बातें
हंस सरस्वती का वाहन है, इस बात में सुखी जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र छिपा हुआ है। हंस को विवेक और बुद्धि का प्रतीक है। हंस दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है। हंस का रंग सफेद होता है। ये रंग पवित्रता और शांति को दर्शाता है। विद्या हासिल करने के लिए पवित्रता सबसे ज्यादा जरूरी है। पवित्रता से ही श्रद्धा और एकाग्रता बढ़ती है। शिक्षा से ज्ञान और ज्ञान से सही-गलत यानी शुद्ध-अशुद्ध को समझने की बुद्धि मिलती है। इसका अर्थ ये है कि जो व्यक्ति पवित्र विचारों वाला है, श्रद्धा और एकाग्रता के साथ विद्या हासिल करने के प्रयास करता है, उसे देवी सरस्वती की कृपा से ज्ञान हासिल हो जाता है।

वसंत पंचमी पर करें देवी सरस्वती की द्वादश नामावली का पाठ
प्रथम भारती नाम द्वितीयं सरस्वती।
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी।।
पंचमं जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा।
सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी।।
नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी।
एकादशं चंद्रकान्तिर्द्वादशं भुवनेश्वरी।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं च: पठेन्नर:।
जिह्वाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती।।
बसंत पंचमी पूजा विधि
- बसंत पंचमी के दिन स्नान-ध्यान के बाद पीले, बसंती या सफेद वस्त्र धारण करें। ध्यान रखना है कि काले या लाल वस्त्र पहनकर माता की पूजा नहीं करनी चाहिए।
- इसके बाद पूरब या उत्तर की ओर मुह कर पूजा प्रारंभ करें।
- पूजा के लिए इस दिन सूर्योदय के बाद ढाई घंटे अथवा सूर्यास्त के बाद ढाई घंटे का ही प्रयोग करना चाहिए।
- इस दिन पूजा में मां सरस्वती को सफेद या पीले पुष्प, सफेद चंदन आदि का अर्पण करें।
- प्रसाद के रूप में दही, हलवा अथवा मिश्री का प्रयोग करें।
- साथ ही केसर मिले हुए मिश्री का भोग लगाना सर्वोत्तम होगा।
- माता सरस्वती का प्रभावशाली मंत्र “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” का जाप कम से कम 108 बार करें।
- मंत्र के जाप के बाद ही प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
बसंत पंचमी व्रत कथा: वैसे तो बसंत पंचमी की कथा अनेक धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित है। लेकिन सबसे अच्छी कथा का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है। वह इस प्रकर है। सृष्टि के आरंभ में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मनुष्य जाति का आवरण किया। लेकिन त्रिदेव अपनी इस सृजन से संतुष्ट नहीं हुए। त्रिदेव को लगता था की इसमें कुछ कमी रह गई है जिसके कारण पूरे ब्रह्माण्ड में शांति थी। भगवान विष्णु और शिव से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल के साथ वेदों का उच्चारण करते हुए पृथ्वी पर छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उस स्थान पर कंपन होने लगा।
फिर उस स्थान पर स्थित वृक्ष से एक अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह प्रादुर्भाव एक चतुर्भुजी सुंदर सी स्त्री की थी, जिनकी एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ से तथास्तु मुद्रा को संबोधित कर रही थी। जबकि अन्य दोनों हाथो में पुस्तक और माला थी। त्रिदेव ने उनका अभिवादन किया और उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया। माता सरस्वती ने त्रिदेव का अभिवादन स्वीकार करते हुए जैसे ही वीणा का मधुरनाद किया, तीनों लोको के सभी जीव-जंतु और प्राणियों को वीणा की मधुरनाद प्राप्त हो गई। समस्त लोक वीणा के मधुरता में भाव-विभोर हो गए। मां की वीणा की मधुरता से समस्त लोक में चंचलता व्याप्त हो गई। इस कारण त्रिदेव ने मां को सरस्वती के नाम से संबोधित किया।