
गुटखा, खैनी, बीड़ी, सिगरेट आदि के साथ-साथ अनियमित दिनचर्या ने कैंसर जैसी घातक बीमारी के ग्राफ को बढ़ा दिया है. सही समय पर कैंसर का पता चल जाए तो मरीज की जान बचाई जा सकती है. वहीं लापरवाही या अनदेखी मौत को भी दावत दे सकती है. ताजनगरी में कैंसर मरीजों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. एसएन मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों के मुताबिक 10 साल में मुंह, गला और ब्रेस्ट (छाती) कैंसर के मरीजों की संख्या आगरा में दो गुना बढ़ी है. इसके साथ ही फेफड़े और गुदा कैंसर के मरीजों की संख्या भी बढ़ी है. मुंह और गले के कैंसर की सबसे बड़ी वजह खानपान, धूम्रपान और तम्बाकू मंजन करना है.
एसएनएमसी की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुरभि मित्तल ने बताया कि आगरा में पुरुषों में मुंह, गले और फेफड़ों के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह तंबाकू का सेवन और धूम्रपान का सेवन करना है. इसके साथ ही महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर तेजी से बढ़ रहा है. ब्रेस्ट कैंसर के मामलों ने महिलाओं के बच्चेदानी के मुंह के कैंसर को भी पीछे छोड़ दिया है. इसके साथ ही महिलाओं में फैफड़ों और पित्ताशय की थैली में कैंसर के मामले भी सामने आ रहे हैं.
डॉ. मित्तल बताती हैं कि हर साल एसएनएमसी के कैंसर डिपार्टमेंट में 1500 नए मरीज आ रहे हैं. ओपीडी में हर दिन 60 से 70 मरीज आते हैं. इसके साथ ही हर दिन 30 से 40 कैंसर मरीज कीमोथेरेपी कराने आते हैं. हम बीते 5 साल की बात करें तो 7500 से ज्यादा मरीज पंजीकृत हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि प्रारंभिक स्थिति में जो भी कैंसर मरीज यूनिट में आ गए. वे उपचार के बाद ठीक हुए हैं और अब ऐसे मरीज स्थिर हैं.
60% से ज्यादा आए मुंह व गले के कैंसर के मरीज
आगरा जिला अस्पताल में भी कैंसर की ओपीडी और डे केयर यूनिट शुरू की गई है. जिला अस्पताल कैंसर ओपीडी के नोडल प्रभारी व कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. भूपेंद्र चाहर ने बताया कि अब तक 110 मरीज कैंसर के आए हैं. इनमें सबसे ज्यादा 60% मरीज मुंह और गले के कैंसर के हैं. इनमें युवा भी शामिल हैं. इन मरीजों में अधिकतर तंबाकू खाते थे या अन्य धूम्रपान करते थे.
उन्होंने आगे बताया कि इसकी वजह से मुंह में हुए शुरुआती छाले पर इन्होंने ध्यान नहीं दिया. धीरे-धीरे कैंसर बढ़ता चला गया. इसके बाद यहां ब्रेस्ट कैंसर के मरीज और फिर खाने की नली और अन्य तरह के कैंसर के मरीज आए हैं. अस्पताल यहां आने वाले कैंसर के मरीज तीसरी और चौथी स्टेज पर आ रहे हैं. इसलिए उपचार में भी देरी हो रही है.
एसएनएमसी के दंत और जबड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्र यादव ने बताया कि हमारे डिपार्टमेंट की ओपीडी में 8 से 10% मरीज ओरल कैंसर के आते हैं. यह मरीज तीसरी या चौथी स्टेज में हमारे यहां आते हैं. इसके बाद इन्हें कैंसर का उपचार कराने का परामर्श दिया जाता है. आगरा और उसके आसपास के क्षेत्र में लोग तम्बाकू, खैनी के साथ अन्य धूम्रपान भी खूब करते हैं. यहां पुरुष, युवा और महिलाएं तम्बाकू के मंजन का उपयोग भी खूब करते हैं. तम्बाकू का मंजन ओरल कैंसर बढ़ा रहा है.
एसएनएमसी में तमाम ऐसे मरीज आ रहे हैं. जिन्हें बड़ी आंत का कैंसर है. कोलोन का कैंसर पेट से जुड़ी दिक्कतों की वजह से होता है. इसके लक्षण इरिटेबल बाउल सिंड्रोम , बवासीर और कब्ज भी रहना है. आम बोलचाल में इसे गुदा या गुदाद्वार का कैंसर भी कहते हैं. यह फाइबर युक्त भोजन न करने, बिना चोकर वाला आटा खाने और कम मात्रा में पानी पीने से होता है.
कैंसर रोग विशेषज्ञों का कहना है कि एसएनएमसी या अन्य कैंसर यूनिट में मरीज तीसरी या चौथी स्टेज में पहुंच रहे हैं. इससे उपचार में भी दिक्कत होती है. यदि कैंसर मरीज दूसरी स्टेज पर हमारे पास आ जाएं तो उसका इलाज सर्जरी या कीमो की मदद से करके ठीक किया जा सकता है. ब्रेस्ट कैंसर के तीसरी स्टेज में पहुंचने वाले मरीज के उपचार के बाद ठीक होने की गुंजाइश 50 से 60% होती है. बच्चेदानी के कैंसर में मरीज तीसरी स्टेज में उपचार से 80% तक ठीक हो जाता है. इसी तरह से तीसरे स्टेज में मुंह के कैंसर के मरीज आने पर उसके बचाव की गुंजाइश 30 से 40% रहती है.