
बसंत पंचमी का ब्रज में एक अलग ही महत्व है। बसंत पंचमी के दिन से ब्रज में 40 दिवसीय होली के रंगोत्सव का आगाज हो जाता है। इस रंगोत्सव की शुरुआत शनिवार को भगवान श्री बांके बिहारी मंदिर से होगी। बसंत पंचमी के दिन श्री बांके बिहारी मंदिर में भक्तों के ऊपर अबीर गुलाल उड़ाया जाएगा। मंदिर में अबीर-गुलाल के बादल छाएंगे और देशभर से आने वाले भक्त अपने आराध्य के प्रसाद रूपी गुलाल में सराबोर होकर धन्य होंगे। पांच फरवरी शनिवार को बसंत पंचमी के पर्व पर शृंगार आरती के बाद बांके बिहारी मंदिर में ठाकुरजी बसंती पोशाक धारण कर प्रतीकात्मक रूप से भक्तों संग गुलाल की होली खेलेंगे। मंदिर के सेवायत गोस्वामियों द्वारा चांदी के थालों में लाल, हरा, बसंती, गुलाबी और पीले रंग का गुलाल भक्तों पर डाला जाएगा।
मंदिर के सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि बसंत पंचमी से ही श्रीबांकेबिहारी महाराज के कपोलों (गालों) पर गुलाल लगाकर और कमर में गुलाल का फेंटा बांधकर तैयार कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि वसंत पंचमी से ही मंदिर में होली के गायन के साथ ही ब्रज में 40 दिन का होली उत्सव भी प्रारंभ हो जाता है। छोटू गोस्वामी ने बताया कि पंचमी के दिन सर्वप्रथम बांके बिहारी महाराज को गुलाल अर्पित करने के साथ ही होलिकोत्सव के औपचारिक शुभारंभ की परंपरा हरित्रयी के सुनाम से विख्यात स्वामी हरिदास जी, हित हरिवंश जी एवं हरि राम व्यास जी के समय से ही चली आ रही है।
हर वर्ष की तरह भक्तों के साथ होली खेलेंगे भगवान
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी भगवान बांके बिहारी बसंत पंचमी के दिन अपने भक्तों के साथ गुलाल की होली खेलेंगे और बृज में चालीस दिवसीय होली का शुभारंभ करेंगे। बता दें कि बसंत पंचमी के दिन ठाकुर जी की तीनों आरतियों में भक्तों पर गुलाल बरसाया जाएगा। मंदिर के सेवायत इस दिन भगवान बसंती रंग की पोशाक धारण कराएंगे। बृज में पंचमी के दिन से सवा महीने तक ठाकुरजी के गालों पर प्राकृतिक फूलों का बना हर्बल गुलाल लगाया जाएगा। कान्हा की नगरी के सभी प्रमुख मंदिरों में होली के पद और रसिया का गायन शुरू हो जाएगा।
हरिदास जी ने किया था परंपरा का शुभारंभ
भक्तिकाल के उस स्वर्णिम दौर में रसिक संतजनों के आग्रह पर संगीत सम्राट स्वामी हरिदास जी पद गायन के माध्यम से अक्सर महोत्सवों की शुरुआत करते थे। उस समय में संत व भक्तों ने समन्वय स्वरूप एक साथ मिलकर माघ शुक्ला पंचमी से चैत्र कृष्णा द्वितीया तक मदनोत्सव के नाम से एक उत्सव मनाना आरंभ किया गया। जिसे अब वसंतोत्सव या होली आगमन उत्सव भी कहा जाता है। समूचे ब्रज मंडल में सवा माह तक चलने वाले इस रंगीले-रसीले महापर्व का प्रारंभिक पदगान हरिदास जी ने किया और बिहारी जी के कपोलों पर गुलाल लगाया था। तभी से प्रतीक रूप में वही परंपरा अब तक चली आ रही है।