महाशिवरात्रि पर्व पर शिवमय होगी अविनाशी की प्रिय नैमिष भूमि, सजाए गए मंदिर

नैमिषारण्य-सीतापुर। नैमिष तपोभूमि को पुराणों में हिन्दू धर्म के प्रमुख त्रिदेव ब्रम्हा विष्णु महेश के आशीर्वाद की भूमि माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर दैनिक भास्कर आज आपको नैमिष तीर्थ स्थित पौराणिक शिवालयों के महत्व से परिचित करा रहा है। प्राचीन चक्रतीर्थ प्रांगण पर स्थित बाबा भूतेश्वरनाथ महादेव के बारे में पुजारी राजनारायण पांडेय बताते है कि ब्रम्ह वैवर्त पुराण के अनुसार एक बार शिवभक्तो व श्री विष्णु के भक्तो में प्रभु भोलेनाथ व भगवान विष्णु की श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया जोकि इतना बढ़ गया की स्वयं भगवान शिव व प्रभु विष्णु जी को यहाँ आना पड़ा यहाँ विवाद इतना बढ़ गया कि भगवान शिव ने स्वयं द्वारा भगवान विष्णु को दिया हुआ सुदर्शन चक्र अपनी शक्ति से स्वयं में समाहित कर लिया जिस पर वहां उपस्थित सभी शिव व विष्णुभक्त एवम् देवताओं ने शिव जी से विनती की तब शिव जी ने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया तभी से नैमिष तीर्थ में पावन चक्रतीर्थ के निकट बाबा भूतेश्वर नाथ के पार्थिव शिवलिंग की स्थापना हुई। मान्यता है कि बाबा भूतेश्वर नाथ नैमिष तीर्थ में सभी देवो व 88000 ऋषियों के कोतवाल के रूप में भी प्रतिष्ठित है भूतेश्वर नाथ का स्वरूप प्रातः काल बाल रूप में , मध्यान्ह काल रौद्र रूप में व सायं काल दयालु रूप में होता है। इसी कड़ी में अगला शिवालय है देवदेवेश्वर। इस स्थान के प्रबन्धक लालता प्रसाद सैनी के अनुसार देवदेवेश्वर की स्थापना वायुदेव ने भोलेनाथ की आराधना के लिए की थी जिसका वर्णन वायुपुराण में प्राप्त होता है।

ऐसी भी मान्यता है कि एक बार मुगल शासक बाबर जब यहाँ पर आया तो उसने इस दिव्य शिवलिंग को अपनी तलवार से खंडित करने का प्रयास किया है तभी कई मधुमख्खियां या बर्रों ने शिवलिंग से निकलकर बाबर पर हमला बोल दिया जिससे बाबर यहाँ से तुरन्त डर कर भाग गया। तीर्थ में अगला प्रमुख शिवस्थल है रुद्रावर्त धाम। यहां के पुजारी बाबा राम दास बताते थे कि इस कुण्ड में गोमती नदी के अंदर साक्षात् शिव का स्वरूप विद्यमान है जिसके चलते यहाँ पर जो भी भक्त श्रद्धाभाव से शिव का ध्यान कर बेलपत्र , दूध , धतूरा गोमती के जल में अर्पित करता है वो सीधे जल में जाकर प्रभु शिव को प्राप्त हो जाता है एवं यदि कोई भक्त पांच फल पूजन के साथ श्रद्धाभाव से जल में अर्पित करता है तो एक या दो फल प्रसाद रूप में ऊपर आ जाते है बाकी गोमती की जल में ही समां जाते है। इसी कड़ी में बाबा काशी विश्वनाथ व सिद्धेश्वरनाथ तीर्थ के प्रमुख शिव मन्दिर है।

ये है शुभ मुहूर्त

एक मार्च दिन मंगलवार को सूर्योदय सुबह 6.15 बजे और चतुर्दशी तिथि का मान रात्रि 12.17 बजे तक है। धनिष्ठा नक्षत्र भी संपूर्ण दिन रात्रिशेष 3.18 बजे तक, परिघ योग दिन में 10.38 बजे तक और उसके बाद संपूर्ण दिन और संपूर्ण रात्रि पर्यंत शिव योग है।

कैसे करें पूजा अर्चना

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें , भगवान शिव का ध्यान करके व्रत संकल्प लें। इस दिन शिवलिंग का पवित्र जल या दूध से अभिषेक अवश्य करें। शिवलिंग का चंदन से तिलक करें। इसके बाद प्रभु को रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगटटा्, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि शिवप्रिय वस्तुएं अर्पित कर भगवान शिव की आरती करें। पूजा के बाद शिवपुराण, महामृत्युंजय मंत्र या शिव जी के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। इस वृत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। पारण मुहूर्त में महाशिवरात्रि के व्रत का पारण करें।

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