नई दिल्ली । कांग्रेस राफेल के नाम पर शोर मचा रही है। इस शोर के बीच वह खुद के राज में खरीदे गए विमानों की अनियमितता दबा देना चाहती है। इस राजनीति से प्रभावित हुए बिना प्रवर्तन निदेशालय इंडियन एयरलाइंस व एयर इंडिया के 111 विमान खरीद मामले में की गई अनियमितता की जांच के मामले में अपने लक्ष्य तक पहुंच चुका है। आरोप है कि यह खरीद 70 हजार करोड़ रुपये में की जानी थी।
इस मामले में एजेंसी जल्द ही आरोप-पत्र दाखिल करेगी। प्रवर्तन निदेशालय की ओर से इस मामले का खुलासा राफेल पर शोर की असली वजह को सामने लाएगा। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के कार्यकाल में एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस के लिए 111 विमानों की खरीदी प्रक्रिया शुरू हुई थी।
शुरूआती दौर में ही इसमें बिचौलिये शामिल हो गए। बताया जाता है कि डील के लिए कुछ लेन-देन भी हो गया। लेन-देन के बाद किन्हीं कारणों के चलते खरीदी नहीं की गई। खरीदी से पहले ही घोटाले की बात सामने आ गयी थी। इस मामले में जांच की शुरुआत पिछले साल 29 मई को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से दर्ज तीन प्राथमिकियों से हुई थी। फिर 2007 के दौरान सीबीआई ने इंडियन एयरलाइंस व एयर इंडिया के विलय की भी जांच की थी। मामले में आरोप है कि उक्त खरीद में पैसे का लेनदेन किया गया।
लेनदेन में एक एनजीओ के बैंक खाते का सहारा लिया गया। हालांकि अभी तक एनजीओ के नाम व लेनदेन में दी गई राशि के परिमाण का खुलासा नहीं हो पाया है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उक्त तीनों प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं। कांग्रेस इन दिनों राफेल पर मुखर होती जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से राफेल पर केंद्र सरकार को लगभग क्लीन चिट दिए जाने के बाद भी कांग्रेसी सुरों में तेजी बताती है कि कांग्रेस इस मुद्दे को आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में भुनाने का प्रयास करेगी। ठीक इसी वक्त इंडियन एयरलाइंस व एयर इंडिया के विमानों की खरीद का मुद्दा राजनीतिक बाजार में आने की संभावना है, जो जिससे राफेल की धार धीरे धीरे कुंद हो जाएगी।