लियाकत मंसूरी
मेरठ। रमजान माह में दूसरे जुमे की नमाज में अकीदतमंदों ने बड़ी संख्या में अदा की। नमाज से पूर्व अपनी तकरीर में मौलाना ने जकात के बारे में बताया। शरीयत में जकात उस माल को कहते हैं, जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल में से उसके हकदारों के लिए निकालता है। इस्लाम की शरीयत के मुताबिक, हर एक समर्पित मुसलमान को साल में अपनी आमदनी का 2.5 प्रतिशत हिस्सा गरीबों को दान में देना चाहिए। शहर काजी जैनुल साजिद्दीन ने बताया, इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान का जकात बांटना वाजिब है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका ढाई फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है जिसे जकात कहते हैं। यानी अगर किसी मुसलमान के पास साल भर तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से ढाई रुपये किसी गरीब या जरूरतमंद को देना जरूरी होता है। बताया कि यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है लेकिन, वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर रिटर्न फाइल करने की तरह ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात निकालकर तकसीम करते हैं। मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आंकलन करते हैं और उसमें से 2.5 फीसदी दान करते हैं। इसके अलावा अगर किन्हीं के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी के रूप में भी कोई संपत्ति होती है तो उसकी वर्तमान कीमत का आंकलन कर उस रकम का ढाई प्रतिशत रकम की भी जकात दी जाती है। असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है। इसलिए कि रमजान में एक नेकी का शवाब कई गुना मिलता है। इस दौरान पुलिस-प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम बनाकर रखे। नमाज के बाद लोगों ने अपने मुल्क में अमनों-अमान व तरक्की के लिए हाथ उठाकर दुआं मांगी। मस्जिदों में चला तकरीरों का दौर रमजान माह के दूसरे जुमे पर नगर की अधिकांश मस्जिदों में क्षेत्र के मुस्लिम बाहुल्य गांवों हर्रा, पांचली, खिवाई, जसड़ व जैनपुर, पिठलोकर, मंढ़ियाई के अलावा करनावल व खेड़ी में लोगों ने मस्जिदों में खुत्बे के बाद जुमे की नमाज अदा की। इस दौरान मस्जिदों में साफ-सफाई के खास इंतजाम किए गए थे। नमाज के दौरान मस्जिदों में तकरीरों का दौर चला। जिनमें लोगों को दीन के प्रति नसीहत देकर दीन से जुड़ने व कुरआन के बताए रास्ते पर चलने का पैगाम दिया गया। नमाज से पहले सभी इमामों ने तकरीर करते हुए इस्लाम मजहब व मोहम्मद साहब की कुर्बानियों के बारे में बताया। खून खराबे की इजाजत नहीं देता इस्लाम तकरीर के दौरान बताया गया कि इस्लाम मजहब खून खराबे की कतई इजाजत नहीं देता। इस्लाम मजहब मोहब्बत के रास्ते पर पैगाम से फैलाया गया है। इसमें कुर्बानी को बड़ा दर्जा दिया गया है। नफरत का जवाब मोहब्बत से दिए जाने की बात बताई गयी। बताया गया कि हमें भी मोहम्मद साहब के बताए रास्ते पर चलकर जिंदगी बसर करनी चाहिए। सभी से भाई चारा मजबूत करने की अपील भी की गयी।