वर्ष 2018 :महिलाओं पर विशेष
पटना । बिहार की महिलाओं के लिए वर्ष 2018 कभी गौरवमय रहा तो कभी शर्मसार करनेवाला। इस वर्ष जहां बिहार की बेटियों ने राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का मान-सम्मान बढ़ाया वहीं अपने ही राज्य में कई बेटियों को अपमानित और शर्मसार किया गया। अपने बलबूते पर बिहार की बेटियों ने राज्य सरकार तथा विभिन्न निजी संस्थाओं से भी सम्मान पाया लेकिन इस बीच राज्य के विभिन्न जिलों में महिलाओं के साथ हुई घटनाओं ने पूरे देश में बिहार को लज्जित किया। वर्ष 2018 में हुई घटनाएं तो यही बयां कर रही हैं।
राष्ट्र से राज्य स्तर तक पाया सम्मान
मैथिली, भोजपुरी व मगही में समस्तीपुर की मशहूर गायिका और बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को वर्ष 2018 में राष्ट्रपति से कला व संगीत के क्षेत्र में पद्मभूषण सम्मान मिला। खेल में जमुई जिले की बेटी श्रेयसी सिंह ने ऑस्ट्रेलिया में संपन्न हुई 21वें कॉमनवेल्थ शूटिंग में भारत को गोल्ड दिलाया।
पटना की कवयित्री एवं लेखिका रानी सुमिता को अखिल भारतीय महिला साहित्य सम्मेलन, मेरठ में “महिला साहित्य सृजन सम्मान 2018’ से नवाजा गया। यह पुरस्कार उनके चर्चित कविता संग्रह “सीधी वाली पगडंडी’ के लिए दिया गया। वर्ष 2018 के अंतिम माह में बिहार की महिला का जलवा पंचायत स्तर तक नजर आया। सीतामढ़ी जिले के सोनवर्षा प्रखंड के सिंहवाहिनी की मुखिया रितु जायसवाल को इंटरेक्टिव फोरम आन इंडियन इकोनॉमी ने चैपियंस आफ चेंजर पुरस्कार से नवाजा। रितु को उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने दिल्ली के विज्ञान भवन में सम्मानित किया।
राबड़ी बनीं विधान परिषद में विपक्ष की पहली महिला नेता
उच्च सदन में राजद के सदस्यों की संख्या बढ़ने के आधार पर बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी राज्य विधान परिषद में विपक्ष की पहली नेता बनीं। वहीं समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा कोआर्म्स एक्ट मामले में मंत्रिपद से हाथ धोना पड़ा। खेल, पंचायत स्तर और लेखनी के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाओं ने इस वर्ष बाजी मारी। राजकीय शिक्षक पुरस्कार-2017 से सम्मानित होने वाले 17 शिक्षकों में से सीतामढ़ी,दरभंगा, बेगूसराय, मोतिहारी,सुपौल की पांच महिलाएं शामिल रहीं।
इंटरमीडिएट व निट में रहा बिहार की कल्पना का जलवा
बिहार बोर्ड की दसवीं और 12वीं की परीक्षा में छात्राओं का ही दबदबा रहा। स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड (बीएसईबी)—2018 की परीक्षा के टॉप टेन में जमुई के सिमुताला आवासीय विद्यालय की प्रेरणा राज ने प्रथम और इसी विद्यालय की प्रज्ञा और शिखा कुमारी ने द्वितीय स्थान पाया। बिहार बोर्ड 12वीं 2018 के तीनों स्ट्रीम्स में लड़कियां ही टॉपर रहीं। साइंस में कल्पना कुमारी, आर्ट्स में कुसुम कुमारी और कॉमर्स में निधि सिन्हा ने पहला स्थान पाया। कल्पना ने एनआईआईटी की परीक्षा में पूरे देश में प्रथम स्थान पाया और बिहार का मान बढ़ाया। वर्ष 2018 में कानून की परीक्षा में भी छात्रों ने अपनी पहचान बनायी। बिहार की एक मात्र लॉ यूनिवर्सिटी चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के तीसरे दीक्षांत समारोह में 22 छात्रों को गोल्ड मेडल मिला।
जीविका योजना में हुआ इजाफा
वर्ष 2018 में ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं ने विकास किया। ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री श्रवण कुमार के अनुसार जीविका योजना वर्ष 2018 में अब-तक 81.94 लाख से अधिक परिवार जुड़ चुके हैं। 7.47 लाख समूहों का गठन किया जा चुका है। इसके तहत 5.68 लाख समूहों का बचत खाता खोला गया तथा 5.11 लाख समूहों को बैंकों से ऋण उपलब्ध कराया गया। जीविका के सदस्यों के प्रयास से समाज से कई प्रकार की कुरीतियां भी समाप्त हो रही हैं।
महिलाओं से जुड़ी रहीं वर्ष 2018 की सबसे चर्चित घटनाएं
हालांकि वर्ष 2018 में महिलाओं की उपलब्धियां ज्यादा रहीं, लेकिन कई ऐसी घटनाएं रहीं जिसने बिहार सहित पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और उपलब्धियों पर यह भारी पड़ गयी। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड से लेकर महिला को निर्वस्त्र करने और महिला सिपाही को छुटटी न मिलने पर हुई उसकी मौत ने बिहार में महिलाओं की ख़राब स्थिति को उजागर कर दिया। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम आने पर उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
वर्ष 2018 की सबसे चर्चित घटना भी महिलाओं से ही जुड़ी रही। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड ने बिहार के सभी आश्रय गृह और अल्पावास केन्द्रों की पोल खोल कर रख दी। यह मामला फरवरी 2018 में सामने आया और इस वर्ष के अंत तक भी नहीं सुलझा क्योंकि अब यह सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा है।
फरवरी 2018 को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) की टीम ने बिहार के बालिका आश्रय गृह पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को सौंपी। टीम ने ऑडिट रिपोर्ट में बालिका गृह का रख रखाव सही से नहीं होने और यहां रह रही बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार और दुष्कर्म की शिकायतें कीं। टीम ने इस रिपोर्ट को समाज कल्याण विभाग को दिया, लेकिन यह रिपोर्ट विभाग के निर्देशक को 26 मई को मिली।
31 मई को बालिका गृह को खाली कराते हुए बच्चियों को पटना, मोकामा तथा अन्य बालिका गृहों में शिफ्ट किया गया और सरकार की ओर से पहली प्राथमिकी तीन महीने बाद दर्ज करायी गयी। 2 जून को पुलिस ने मुख्य आरोपी और बालिका गृह के संचालक ब्रजेश ठाकुर समेत एनजीओ से जुड़े 8 लोगों से पूछताछ की और सभी को गिरफ़्तार कर लिया गया। 03 जुलाई को सीबीआई जांच के लिए सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने कई बार सरकार से जवाब मांगा। इसके बाद सरकार के जवाब से निराश होकर मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी है। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लापरवाही बरतने पर बिहार सरकार को कड़ी फटकार भी लगायी। फिलहाल मुख्य आरोपी को पटियाल जेल में रखा गया है और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।
अगस्त 2018 में
भोजपुर जिले के बिहिया शहर में एक महिला को 19 साल के एक युवक की हत्या में शामिल होने के संदेह पर भीड़ के निर्वस्त्र कर घंटों घुमाया और इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। महिला की पहल पर सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के आधार पर 100 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया। इनमें से कुछ को जेल भी भेजा गया। वर्ष 2018 के नवम्बर में बिहार में हुआ दूसरा सिपाही विद्रोह भी महिलाओं के नाम ही रहा। बिहार में महिला सशक्तिकरण की धज्जियां उड़ाने वाली यह घटना पटना की पुलिस लाइन में हुई। यहां डेंगू से पीड़ित महिला सिपाही सविता कुमारी की मौत विभाग से छुट्टी नहीं दिए जाने के कारण हुई।
इससे आक्रोशित पटना पुलिस लाइन के महिला और पुरुष सिपाहियों ने जमकर बवाल काटा। सिपाहियों ने अपने ही अधिकारी के खिलाफ बगावत करते हुए डीएसपी की जमकर पिटाई की। इस पर कार्रवाई करते हुए सरकार ने 167 ट्रेनी सिपाहियों तथा आठ पुराने सिपाहियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया । इसके अलावा 23 पुलिसकर्मियों को निलंबित भी किया गया । साथ ही 300 से 350 अज्ञात प्रशिक्षु सिपाहियों पर भी केस दर्ज किया गया है। फिलहाल घटना की जांच की जा रही है। बिहार में आत्मनिर्भर महिला की परिभाषा को अक्टूबर 2018 में बीएमपी-5 में ट्रेनी महिला सिपाही से हुई छेड़खानी मामले ने असत्य कर दिया। यहां के सूबेदार शंभू शरण राथौड़ के खिलाफ एक प्रशिक्षु महिला सिपाही ने उसके साथ बंद कमरे में बदसलूकी करने का मामला दर्ज कराया था।
पीड़िता के बयान पर धारा 164 के तहत मामला दर्ज कराया गया और सूबेदार पर कार्रवाई की गयी। इस रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्ष 2018 में बिहार में महिलाओं की भूमिका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही रूपों में अहम रही।