— बंगाल भेजने के लिए कछुआ तस्करों ने चुना रेल मार्ग, महिलाओं की है अधिक भागीदारी
— वन विभाग बना मूकदर्शक
गोपाल त्रिपाठी
गोरखपुर। जनपद व इसके आसपास के सीमापवर्ती इलाके कछुआ तस्करी के केंद्र बनते जा रहे हैं। कछुआ तस्करों द्वारा शहर के एक स्थान से कछुओं को इकठ्ठा करके बोरो में भरकर ट्रेनों से दरभंगा, बिहार व बंगाल के लिए खेप भेजा जा रहा है। सूत्रों की माने तो इस धंधे की जानकारी इससे जुड़े सुरक्षा कर्मियों को है लेकिन इनकी जेबें गरम होती रहती हैं ।
पिछले एक दशक से इस कार्य को बिना रोक – टोक के अंजाम दिया जा रहा है। कछुआ तस्करी के इस कारोबार में कुछ निचले तबके के परिवार की महिलाओं को लगाया गया है। ये महिलाएं सुबह से शाम तक पोखरों, तालाबों से लाल रंग का कछुआ को बीनकर लाती है और शहर के एक गोपनीय स्थान पर इसे इकठ्ठा किया जाता है। बताया जाता है कि कछुआ पकड़ने की मजदूरी दो से ढाई सौ रूपये प्रति ब्यक्ति दी जाती है । इस कारोबार में जनपद के साथ– साथ महराजगंज जिले के कुछ गांवों के लोग कछुआ बीनने का कार्य बड़ी तेजी के साथ कर रहे हैं। बन्य जीवों की सुरक्षा का दायित्व बन बिभाग पर है। लेकिन बिभागीय अधिकारी पूरी तरह खामोश हैं। कछुआ तस्करों ने तस्करी के लिए सबसे सुगम मार्ग ट्रेनों को चुना है और इन रास्तो से कछुओं की तस्करी धड़ल्ले से की जा रही है और यहां से भारी खेप ट्रेनों में लादकर कछुओं को बंगाल, बिहार व दरभंगा पहुचाया जा रहा है। कछुओं के मांस, खोपड़ी व चमड़ा तीनो को उपयोग में लाया जाता है। बंगाल में कछुओं का एक बड़ा बाजार भी लगता है। एक कछुए से कम से कम एक हजार से डेढ़ हजार रुपये तक आमदनी होती है। जिसके चलते लाखों रूपये तस्करी का कारोबार तस्करों द्वारा किया जा रहा है।
भारी मात्रा में पकड़ी जा चुकी है कछुओं के खेप
कछुओं को तस्करी हेतु ले जाये जा रहे एक कुंतल कछुए को जीआरपी गोखपुर की टीम ने दरभंगा जाने वाली आम्रपाली एक्सप्रेस ट्रेन की बोगी से मुखबीर की सूचना पर प्लेटफार्म नंबर 5 से 23 नवम्बर 2011 में पकड़ा था। इस दौरान कछुआ तस्करों ने इसका खुलासा करते हुए कहा था कि इन कछुओं को बंगाल ले जाकर 4 से 5 सौ रूपये प्रति कछुए की दर से बेच दिया जाता
है।
कछुओं की तस्करी गंभीर अपराध, डीएफओ
कछुओं की तस्करी के बावत डीएफओ का कहना है कि बन्य जीव (कछुओं ) की तस्करी करना एक गंभीर अपराध है और इस तरह के अपराध में 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।