लुंबिनी नेपाल : यहीं से भगवान बुद्ध की कथा आरम्भ होती है, बताया जाता है कि महारानी महामाया देवी एक बार अपने ससुराल कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर से अपने मायका देवदह जो जनपद महाराजगंज में स्थित है, जा रही थी उसी यात्रा के दौरान रानी माया देवी ने बुद्ध को लुंबिनी में जन्म दिया था। शायद इसीलिए लुंबिनी में भगवान बुद्ध के बजाय माया देवी की अधिक मान्यता है।
लुंबिनी को 1997 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। वर्तमान में मायादेवी मंदिर के नाम पर यहाँ एक बाड़ है जिसके भीतर प्राचीन मंदिर के अवशेष बचे हैं। कई चीनी बोद्ध विद्वानों द्वारा लिखित साहित्यों में इन अवशेषों बारे में विस्तार से भगवान बुद्ध के जन्म की भी पुष्टि करतें हैं। फाहियान व हुएन सांग दोनों ने अपने साहित्यों में इस मंदिर का उल्लेख किया है। यहाँ स्थित अशोक स्तम्भ और शिलालेख जिस पर इस स्थल को राजकुमार सिद्धार्थ की जन्मभूमि दर्शाया गया है।
माया देवी मंदिर के पास पुष्करणी अर्थात पवित्र तालाब हैं, यह एक पवित्र तालाब माना जाता है। यह वही तालाब है जहाँ सिद्धार्थ के जन्म के समय माया देवी ने स्नान किया था। इसलिए बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है। तालाब के बगल मे ही एक विशाल बोधिवृक्ष है जो बौद्ध भिक्षुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।